तकरीबन 52 बरस पहले साल 1970 में हिंदी फिल्म आई थी- 'सफर'. उसमें गीतकार इंदीवर के लिखे और मुकेश के गाये एक गाने ने धूम मचा दी थी. उस गीत के बोल थे-


"जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे


तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे.


देते ना आप साथ तो, मर जाते हम कभी के


पूरे हुए हैं आप से, अरमां जिन्दगी के


हम ज़िन्दगी को आपकी सौगात कहेंगे


तुम दिन को अगर..."


हालांकि वो गीत उस फ़िल्म के दो मुख्य किरदारों की आशिकी पर फिल्माया गया था लेकिन इतने बरसों बाद अब वही गाना हमारे दो पड़ोसी दुश्मन मुल्कों की दोस्ती को सच करता हुआ दिखा रहा है.


इधर हम लोग अपने पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के भंवर में उलझे हुए हैं तो उधर हमारे ये दो पड़ोसी दुश्मन मुल्क रिश्तों की नई पींगे बढ़ाने में कुछ ऐसे लगे हुए हैं, जो आने वाले दिनों में अन्तराष्ट्रीय स्तर पर एक बड़े खतरे का संकेत दे रहे हैं. ये तो किसी से छुपा नहीं है कि पाकिस्तान और चीन न तो हमारे सगे हैं और न ही वे भारत को अपना दोस्त मानते हैं. दरअसल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपने चीन दौरे से पहले फिर से कश्मीर का राग अलापना शुरु कर दिया है. बीजिंग में शीतकालीन ओलंपिक खेलों की शुरुआत चार फरवरी को हो रही है,उसके उद्घाटन समारोह में हिस्सा लेने के लिए इमरान चीन जा रहे हैं. हालांकि अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने शिनजियांग में अल्पसंख्यकों पर हुए अत्याचार के मुद्दे को लेकर इस उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया है.


इमरान खान ने अपनी चीन यात्रा से पहले शनिवार को इस्लामाबाद में चीनी पत्रकारों से मुलाकात की और उन्हें खुलकर इंटरव्यू देते हुए कश्मीर के बहाने भारत पर निशाना साधने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. भारत की कूटनीति ही नहीं बल्कि अमेरिका भी इस तथ्य से बखूबी वाकिफ़ है कि पाकिस्तान पिछले कुछ साल से चीन की गोद में बैठा हुआ है और उसके इशारों पर नाचने के लिए मजबूर भी है. लेकिन पाकिस्तान की ये करतूत अमेरिका के मुकाबले भारत के लिए इसलिये ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि वह हमारा न सिर्फ बिल्कुल नजदीकी पड़ोसी है, बल्कि अफगानिस्तान में काबिज़ तालिबानी सरकार का भी वो सबसे बड़ा खैरख्वाह है और चीन भी उसके इस 'खेल' का सबसे अहम भागीदार है.


चीन अपने स्वार्थ की खातिर दौलत के दम पर एक साथ दो ऐसे मुल्कों की मदद कर रहा है जो भारत के लिए सामरिक रणनीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण हैं और इसमें एक जरा-सी चूक भी हमारे लिए बहुत बड़ी आफ़त झेलने की वजह बन सकती है. लिहाज़ा हमारे कूटनीति विशेषज्ञ भी ये जानते हैं कि इस्लामाबाद और बीजिंग की बढ़ती हुई नजदीकियां दक्षिण एशिया क्षेत्र में कोई तूफान लाने का कारण बन जाये तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.


इमरान खान इस हक़ीक़त से बेहद अच्छी तरह से वाकिफ़ हैं कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा पहले भी था, आज भी है और आगे भी रहेगा.चूंकि ये कोई विवाद ही नहीं है लेकिन पाकिस्तान इसे दो मुल्कों के बीच विवाद बनाने के लिए अपनी तरफ से भरसक कोशिश करके नाकामयाब हो चुका है.लेकिन सच ये भी है कि पाकिस्तान का हुक्मरान चाहे जो भी रहा हो,वह कश्मीर को लेकर अन्तराष्ट्रीय कानून की वकालत करने से कभी बाज नहीं आया. मकसद ये है कि इसमें कोई तीसरा पक्ष आ जाए,ताकि वो उसे कश्मीर का कुछ हिस्सा दिलवा सके,जो कि सपने में भी कभी संभव नहीं हो सकता.


चीनी पत्रकारों से बातचीत में इमरान खान ने भी उसी लाइन पर आगे बढ़ते हुए कहा कि "यह हमारा साझा नजरिया है कि दक्षिण एशिया में स्थायी शांति इस क्षेत्र में एक रणनीतिक संतुलन बनाए रखने पर निर्भर है और सीमा प्रश्न और कश्मीर विवाद जैसे सभी लंबित मुद्दे बातचीत और कूटनीति के जरिए और अंतरराष्ट्रीय कानून के नियमों के मुताबिक हल किए जाने चाहिए.”


इमरान खान के इस बयान में छुपे गहरे सियासी व रणनीतिक मायनों को समझना होगा. वे जानते हैं कि इस वक़्त भारत और पाकिस्तान के द्विपक्षीय रिश्तों में कश्मीर मुद्दे एवं सीमापार आतंकवाद को लेकर खटास है और भारत इन दोनों ही मसलों पर कभी झुकने नहीं वाला.लेकिन ऐसा बयान देकर चीन को खुश रखना भी उनकी मजबूरी है क्योंकि सारा आर्थिक फायदा तो वहीं से होना है.


पुरानी कहावत है कि शराब से भी ज्यादा नशा दौलत का होता है,जो एक भाई को दूसरे से अलग कराने में ज्यादा देर नहीं लगाता.कुछ वही हाल इन दिनों इमरान खान का भी है. चीन के शिनजियांग प्रांत में वहां रहने वाले मुसलमानों के साथ चीनी सरकार ने जो बर्ताव किया है, उसे लेकर अमेरिका समेत तमाम पश्चिमी देशों ने उसकी तीखी निंदा भी की है और उसी वजह से इन ओलिम्पिक खेलों का बहिष्कार भी किया है. लेकिन एक इमरान हैं,जिन्होंने पैसा पाने के लालच में चीन को एकतरफा क्लीन चिट दे दी है.


खान ने बीजिंग यात्रा से पहले इस्लामाबाद में शनिवार को चीनी पत्रकारों को दिए साक्षात्कार में साफतौर पर कहा कि “उइगर मुसलमानों के साथ सलूक को लेकर पश्चिम के देशों में चीन की काफी आलोचना हुई है, लेकिन हमारे राजदूत वहां गए और उन्होंने सूचना भेजी कि यह असल में सच नहीं है.” अशांत क्षेत्र शिनजियांग को लेकर चीन को क्लीन चिट देते हुए खान ने जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन पर पश्चिमी देशों की "चयनात्मक चुप्पी" पर भी सवाल उठाया.


लेकिन पाकिस्तान के ही प्रतिष्ठित अखबार ‘डॉन’ के मुताबिक, पाकिस्तान ने "अधिक निकटता और रिश्तों" की वजह से उइगर मुसलमानों के साथ हुए सलूक के संबंध में बीजिंग के पक्ष को स्वीकार कर लिया है. दरअसल पिछले साल जुलाई में चीनी पत्रकारों को दिए इंटरव्यू के दौरान खान ने चीन द्वारा उइगर मुसलमानों के मानवाधिकारों के हनन के आरोपों पर पाकिस्तान की चुप्पी को लेकर हो रही आलोचना को नज़रअंदाज़ कर दिया था. तभी से ये माना जा रहा था कि पाकिस्तान ने लालचवश इस गंभीर मुद्दे पर भी चीन के आगे अपने घुटने टेक दिये हैं.


दरअसल,बेतहाशा कर्ज़ में डूबे और मुफ़लिसी के दलदल में फंसे पाकिस्तानी अवाम के लिए इमरान खान का ये चीन दौरा इसलिये भी अहम है कि वे राष्ट्रपति शी जिनपिंग और अन्य अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे, जिनमें द्विपक्षीय रिश्तों की स्थिति के अलावा 6000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के समक्ष आ रही परेशानियों पर चर्चा होगी. लेकिन उससे भी ज्यादा अहम ये है कि पाकिस्तान की गिरती अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए इमरान खान चीन से कर्ज देने और पाकिस्तान में निवेश करने के लिए अपना खाली कटोरा उसके आगे रखेंगे.


ऐसी सूरत में इमरान खान के पास हमारे सदाबहार गायक मुकेश के इन बोलों को दोहराने का सिवा और बचता ही क्या है-


"जो तुमको हो पसंद वही बात कहेंगे


तुम दिन को अगर रात कहो, रात कहेंगे."



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