देश की सबसे पुरानी कांग्रेस पार्टी के दिग्गज नेता एक-एक कर पार्टी छोड़ रहे हैं. कांग्रेस रुपी पेड के पत्ते एक-एक कर झर रहे हैं और कांग्रेस की डालियां सूनी पडती जा रही हैं. हाल ही में महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल होने के बाद अब कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ को लेकर अटकलों का बाजार गर्म है.
लेकिन सवाल है कि क्या ये विसंगति है? क्या ये कांग्रेस के स्थाई पतन के संकेत हैं? क्या ऐसा पहले और बाकी दलों के साथ नहीं हुआ है? वर्ष 2016 से 2020 के बीच हुए चुनावों के दौरान कांग्रेस ने 170 विधायक गंवा दिए. वहीं बीजेपी ने 18, बीएसपी और टीडीपी ने 17, एनपीएफ और वाईएसआरसीपी ने 15, एनसीपी ने 14, सपा ने 12 और आरजेडी ने 10 विधायक खो दिए. आरएलडी से 2, सीपीआई और डीएमके से 1-1 विधायकों ने अपना पाला बदल लिया था.
हम ज्यादा नहीं दो बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों बीजेपी और कांग्रेस पर ही यहां विस्तार से बात करेंगे.
कांग्रेस के किन बड़े नेताओं ने बदला पाला?
कांग्रेस के किन बड़े नेताओं ने बदला पाला?
बीते 10 वर्ष में कांग्रेस छोड़ने वाले नेताओं की फेहरिस्त काफी लंबी है. इसमें कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्रियों में अमरिंदर सिंह, दिगंबर कामत, एसएम कृष्णा, विजय बहुगुणा, एन किरण रेड्डी, एनडी तिवारी, जगदम्बिका पाल और पेमा खांडू शामिल जैसे बड़े नाम शामिल हैं.
⦁ उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने मई 2016 में बीजेपी का दामन थामा.
⦁ 1999 से 2004 तक कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहे एसएम कृष्णा ने 2017 में कांग्रेस छोड़कर बीजेपी जॉइन की.
⦁ आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री किरण कुमार रेड्डी ने साल 2023 में कांग्रेस से इस्तीफा दिया. किरण कुमार रेड्डी अविभाजित आंध्र प्रदेश के अंतिम मुख्यमंत्री थे. किरण रेड्डी ने बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया.
⦁ उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता नारायण दत्त तिवारी भी 2017 में बीजेपी के साथ हो लिए. 18 अक्टूबर 2018 को नई दिल्ली उनका निधन हो गया.
⦁ अरुणाचल के मुख्यमंत्री पेमा खांडू भी एक वक्त में कांग्रेसी नेता थे. दिसंबर 2016 में पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल (पीपीए) के 32 विधायकों के साथ वो भाजपा में शामिल हुए थे.
⦁ कांग्रेस से दिग्गज नेताओं के पार्टी छोड़ने के क्रम में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे का नाम भी शामिल है. उन्होंने सितंबर, 2017 में कांग्रेस का साथ छोड़ा था. साल 2019 में राणे बीजेपी में शामिल हो गए थे.
⦁ पंजाब की सियासत में अहम भूमिका निभाने वाले कांग्रेस के दिग्गज मुख्यमंत्री रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने साल 2021 पंजाब लोक कांग्रेस का गठन किया और विधानसभा चुनावों में सभी 117 सीटों से चुनाव लड़ा. इसके बाद उन्होंने साल 2022 में पीएलसी पार्टी बनाई और फिर बीजेपी में इसका विलय कर लिया.
⦁ अशोक चव्हाण भी कांग्रेस के कई पूर्व मुख्यमंत्रियों की उस लिस्ट में शामिल हो गए हैं जिन्होने बीजेपी का दामन थाम लिया है. 13 फरवरी 2024 को चव्हाण बीजेपी में शामिल हो गए. उधर 14 फरवरी को ही भारतीय जनता पार्टी ने महाराष्ट्र में होने वाले आगामी राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार भी बना दिया.
किस-किस और बड़े कांग्रेस नेता ने छोड़ी पार्टी
कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं कांग्रेस से बाहर अपना राजनीतिक भविष्य कहीं बेहतर दिख रहा है. बीजेपी कांग्रेस छोडने वाले नेताओं की पहली पसंद है क्योंकि वो पिछले 10 साल से सत्ता में है और 2024 के लोक सभा चुनावों में भी कोई और दल या समूह उसे सत्ता से बेदखल करने की स्थिति में फिलहाल दिखाई नहीं दे रहा. ऐसे में अब कमलनाथ और उनके बेटे नकुल नाथ और कांग्रेस नेता मनीष तिवारी के बारे में बीजेपी में शामिल हो सकने की चल रही चर्चाओं पर राजनीतिक गलियारों में खूब बात हो रही है. इससे पहले भी कांग्रेस के बड़े चेहरे या तो कांग्रेस से अलग हो गए या दूसरी पार्टियों के साथ हो गए हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया
दिग्गज कांग्रेस नेता रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मार्च 2020 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. वो कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए थे. उस दौरान मध्य प्रदेश में सिंधिया समर्थक कई विधायकों ने पाला बदला, जिससे कमलनाथ सरकार गिर गई थी. फिलहाल, सिंधिया नरेंद्र मोदी कैबिनेट में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं.
जितिन प्रसाद
राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाने वाले जितिन प्रसाद जून 2021 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए थे. उस दौरान वह यूपी में कांग्रेस के शीर्ष ब्राह्मण चेहरे थे.
अल्पेश ठाकोर
कांग्रेस से विधायक रहे अल्पेश ठाकोर ने जुलाई 2019 में राज्यसभा उपचुनाव में पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ मतदान करने के बाद पार्टी छोड़ दी थी. कुछ दिनों बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए. राधापुर से उपचुनाव के लिए मैदान में उतारे अल्पेश चुनाव हार गए. लेकिन साल 2022 में हुए चुनाव में उन्होंने गांधीनगर दक्षिण से जीत हासिल की.
सुष्मिता देव
अगस्त 2021 में महिला कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सुष्मिता देव ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. बाद में वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गईं. सितम्बर 2021 में टीएमसी ने उन्हें राज्यसभा भेज दिया और 2023 तक वह संसद के उच्च सदन की सदस्य रहीं. वर्तमान में वह तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं.
आरपीएन सिंह
पूर्व केंद्रीय मंत्री आरपीएन सिंह जनवरी 2022 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गए थे. उन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पार्टी का साथ छोड़ा था. हाल ही बीजेपी ने उन्हें राज्यसभा चुनाव के लिए यूपी से अपना उम्मीदवार बनाया है.
अश्विनी कुमार
पूर्व केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार ने पंजाब विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले फरवरी 2022 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था. अश्विनी कुमार यूपीए सरकार के दौरान केंद्रीय कानून मंत्री रह चुके हैं.
सुनील जाखड़
पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष रहे सुनील जाखड़ ने मई 2022 में पार्टी छोड़ दी थी. तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की आलोचना करने के लिए नेतृत्व द्वारा कारण बताओ नोटिस मिलने के बाद उन्होंने यह कदम उठाया था. बीजेपी में शामिल होने के बाद जुलाई 2023 में पार्टी ने उन्हें पंजाब इकाई का प्रमुख बना दिया.
हार्दिक पटेल
गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने मई 2022 में ही कांग्रेस छोड़ दी. राहुल गांधी हार्दिक को 2019 में पार्टी में लेकर आए थे. त्याग पत्र देने के बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए थे.
अनिल एंटनी
पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के दिग्गज नेता एके एंटनी के बेटे अनिल एंटनी ने जनवरी 2023 में पार्टी छोड़ दी. इसके बाद वह बीजेपी में शामिल हो गए. इस दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा की थी. वर्तमान में वह भाजपा के राष्ट्रीय सचिव के साथ-साथ राष्ट्रीय प्रवक्ता भी हैं.
मिलिंद देवड़ा
14 जनवरी 2024 को महाराष्ट्र से दिग्गज नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मिलिंद देवड़ा ने कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद वह शिवसेना में शामिल हो गए. कांग्रेस से आने वाले मिलिंद देवड़ा को शिवसेना ने राज्यसभा चुनाव के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है.
कपिल सिब्बल
कांग्रेस के कद्दावर नेता रहे और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल भी पार्टी छोड़ने वालों की सूची में शामिल हैं. सिब्बल ने मई 2022 में कांग्रेस से इस्तीफा दिया था. बाद में वह समाजवादी पार्टी के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीतकर राज्यसभा पहुंचे.
गुलाम नबी आजाद
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और गांधी परिवार के करीबी रहे गुलाम नबी आजाद ने अगस्त, 2022 में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता और सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे गुलाम नबी आजाद बीजेपी में शामिल नहीं हुए, उन्होंने अपनी पार्टी बना ली.
नेताओं को बीजेपी में शामिल होने का मिला इनाम
कांग्रेस से बीजेपी में शामिल कांग्रेस नेताओं को इनाम भी भरपूर मिला है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार गिराने में कामयाब रहे सिंधिया को केंद्रीय मंत्री बनाया गया, जबकि जितिन प्रसाद यूपी में बीजेपी सरकार में मंत्री हैं. आरपीएन सिंह को हाल ही में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया है. दो अन्य पूर्व मुख्यमंत्री, शिवसेना से नारायण राणे और बाबूलाल मरांडी भी हाल के वर्षों में बीजेपी में शामिल हुए हैं. राणे केंद्रीय मंत्री हैं और मरांडी, बीजेपी नेता के रूप में झारखंड के पहले सीएम हैं, जिन्हें राज्य इकाई प्रमुख के रूप में पार्टी का चेहरा बनाया गया है.
असम, मणिपुर और त्रिपुरा में पूर्वोत्तर के मुख्यमंत्रियों हिमंत बिस्वा सरमा, बीरेन सिंह और माणिक साहा की एक अलग कहानी है. कांग्रेस ने सरमा को सीएम बनाने के अपने वादे का सम्मान नहीं किया और तरुण गोगोई को बरकरार रखा. हालांकि पाला बदलने और 2021 में बीजेपी के दोबारा चुने जाने का इंतजार करने के बाद सरमा सीएम बनने में सफल रहे.
बीरेन सिंह ने भी कांग्रेस से किनारा कर लिया. उन्होंने 2017 में बीजेपी को बहुमत हासिल करने की इंजीनियरिंग में मदद की. उन्हें सीएम बनाया गया. मणिपुर में लगातार हिंसा के बाद उन्हें हटाने की जोरदार मांग के बावजूद वह सीएम बने हुए हैं.
माणिक साहा को सीएम बनने का मौका नहीं मिला क्योंकि त्रिपुरा में माणिक सरकार के तहत सीपीआई-एम का कार्यकाल लंबा था. हालांकि, 2023 में बीजेपी में शामिल होने और बिप्लब कुमार देब के उत्तराधिकारी बनने के बाद उनकी किस्मत बदल गई.
कहा जा सकता है कि बीजेपी में शामिल होने वाले कांग्रेस नेताओं की लंबी सूची में से हिमंत बिस्वा सरमा और सिंधिया को सबसे अधिक फायदा हुआ है. विमानन और इस्पात मंत्रालयों का प्रभार संभालने के अलावा, सिंधिया ने 2023 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनावों में कई समर्थकों के लिए टिकटों का प्रबंधन किया.
क्या पहली बार हो रहा है कांग्रेस से पलायन
कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बनाने वाले नेताओं की लंबी फेहरिस्त है. इतिहास से लेकर अब तक कई बार कांग्रेस में टूट हुई है और इससे अलग पार्टी का गठन किया गया है. चलिए जानते हैं कि अब तक कांग्रेस पार्टी कितनी बार टूट चुकी है.
मोतीलाल नेहरू ने सबसे पहली बार कांग्रेस को तोड़ा था. उन्होंने चितरंजन दास के साथ मिलकर नई पार्टी का गठन किया, जिसे स्वराज पार्टी का नाम दिया गया.
सुभाषचंद्र बोस ने 1939 में अखिल भारतीय फारवर्ड ब्लाक के नाम से अलग पार्टी बनाई.
जेबी कृपलानी ने 1951 में कांग्रेस से हटकर अलग पार्ट बनाई. उन्होंने किसान मजदूर प्रजा पार्टी के नाम से नई पार्टी का गठन किया था.
इसके बाद एनजी रंगा ने हैदराबाद स्टेट प्रजा पार्टी की स्थापना की.
वर्ष 1956 में सी राजगोपालाचारी ने कांग्रसे छोड़ा और इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया.
वर्ष 1959 में कांग्रेस में सबसे बड़ी टूट हुई थी. उस समय बिहार, राजस्थान, गुजरात और ओडिशा में कांग्रेस में टूट हुई थी.
1964 में केएम जार्ज केरल में कांग्रेस को तोड़ा और केरल कांग्रेस के नाम से नई पार्टी बनाई.
1967 में चौधरी चरण सिंह कांग्रेस से अलग होकर भारतीय क्रांति दल के नाम से अलग पार्टी बनाई, बाद में इसी पार्टी को लोकदल के नाम से जाना गया.
पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस ने 12 नवंबर 1969 को पार्टी से बर्खास्त कर दिया, जिसके बाद इंदिरा गांधी ने कांग्रेस (आर) के नाम से नई पार्टी का गठन किया, जिसे बाद में कांग्रेस (आई) नाम से जाना गया. वर्तमान में यही पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बनी.
वीपी सिंह ने 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के खिलाफ हो गए और उन्होंने जनमोर्चा के नाम से अपनी नई पार्टी बनाई.
वर्ष 1999 के आसपास कांग्रेस में फिर से बगावत हुई और शरद पवार ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, ममता बनर्जी ने तृणमूल कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस, जनता कांग्रेस, बीजू जनता दल का जन्म हुआ. इसके साथ ही जम्मू कश्मीर में मुफ़्ती मुहम्मद सईद ने पीडीपी का गठन कर लिया.
क्या बीजेपी भी कभी हुई पलायन का शिकार
ऐसा नहीं है कि बीजेपी से नेताओं का मोह भंग नहीं हुआ है. बीजेपी में भी कभी नाराज़गी के चलते और कभी बेहतर भविष्य को लेकर नेताओं ने राहें अलग कर ली हैं.
कल्याण सिंह
कभी उत्तर प्रदेश में बीजेपी का पर्याय समझे जाने वाले कल्याण सिंह अपने जुझारूपन की बदौलत राजनीति की बुलंदियों पर पहुंचे तो उनके अक्खड़ी मिजाज ने सियासत के इस सूरमा को कई बार अपनी पार्टी से ही भिडा दिया. 2009 के लोकसभा चुनाव में बुलंदशहर सीट से प्रत्याशी की सीट बदलने की मांग पर अड़े कल्याण सिंह ने तब बीजेपी छोड़ दी जब पार्टी नेतृत्व ने उनकी नहीं सुनी. जनवरी 2010 में जनक्रांति पार्टी के गठन का एलान किया और उसके संरक्षक बने. 2014 का लोकसभा चुनाव नजदीक आने पर बीजेपी को अपने पुराने नगीने की जरूरत महसूस हुई . बीजेपी में उनकी वापसी हुई और चार सितंबर 2014 को उन्होंने राजस्थान के गवर्नर के रूप में शपथ ग्रहण की.
शंकर सिंह वाधेला
मुख्यमंत्री न बनाए जाने पर शंकर सिंह वाधेला ने केशु भाई पटेल की सरकार के खिलाफ बगावत कर सितंबर 1995 में विद्रोह का बिगुल फूंक दिया. 1996 में वाधेला ने बीजेपी से अलग हो राष्ट्रीय जनता पार्टी बनाई. बाद में वो कांग्रेस में शामिल हो गए.
जसवंत सिंह
जसवंत सिंह 2014 के चुनाव में बाड़मेर लोकसभा सीट से लोकसभा का उम्मीदवार बनना चाह रहे थे लेकिन वसुंधरा राजे सिंधिया ने इस उम्मीदवारी पर ब्रेक लगा दिया. ऐसे में जसवंत सिंह बगावत पर उतर आए उन्होने अपनी पार्टी के नेताओं के मान-मनौव्वल को नही माना और निर्दलीय चुनाव लड़े. इस चुनाव में उन्हें हार मिली. चुनाव हारने के बाद जसवंत सिंह दिल्ली आ गए और एक तरह से एकांतवास में चले गए. कुछ दिन बाद खबर आई कि जसवंत सिंह रात को बाथरूम में गिर गए और उन्हें इतनी गंभीर चोट लगी कि वे कोमा में चले गए.
मानवेंद्र सिंह
लेकिन मामला यहीं तक नहीं रुका. बाद में जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह भी बागी हो गए. मानवेंद्र सिंह ने ऐलान किया कि वे बाड़मेर के पचपदरा में स्वाभिमान रैली इसलिए रखी गई क्योंकि जसवंत सिंह के परिवार का कहना था कि वसुंधरा राजे ने उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाई है इस रैली में मानवेंद्र सिंह बस इतना ही बोल पाए -कमल का फूल एक ही भूल. बाद में मानवेंद्र सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए.
यशवंत सिन्हा
अप्रैल 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार की तीखी आलोचना करने वाले वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने बीजेपी से अपना नाता तोड़ लिया. 1977 बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के प्रधान सचिव रहे यशवंत सिन्हा ने 1984 में आईएएस की नौकरी छोड बीजेपी का हाथ थामा और सक्रिय राजनीति में शामिल होने का फैसला किया. अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वो वित्त और विदेश मंत्री रहे.
कीर्ति आज़ाद
पूर्व क्रिकेटर कीर्ति आज़ाद ने अपने पिता बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आज़ाद के नक्शेकदम पर चलते हुए बीजेपी में शामिल होकर राजनीति में प्रवेश किया. तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली को खुलेआम निशाना बनाने के लिए उन्हें 23 दिसंबर 2015 को बीजेपी से निलंबित कर दिया गया था. वह 18 फरवरी, 2019 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और 2019 के चुनाव में धनबाद लोकसभा क्षेत्र से लड़े लेकिन चुनाव हार गए. आज़ाद बाद में अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए.
शत्रुघ्न सिन्हा
अभिनेता से नेता बने शत्रुघ्न सिन्हा पटना साहिब लोकसभा क्षेत्र से सांसद थे, जब उन्होंने मोदी सरकार की मुखर आलोचना के बाद बीजेपी छोड़ दी थी. 2019 के आम चुनाव में उन्हें बीजेपी ने टिकट देने से इनकार कर दिया और 6 अप्रैल, 2019 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए. मार्च 2022 में, सिन्हा अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए और आसनसोल लोकसभा क्षेत्र के लिए उपचुनाव में चुनाव लड़ा.
नवजोत सिंह सिद्धू
16 सालों तक क्रिकेट में लंबी पारी खेलने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू 2004 में BJP में शामिल हुए थे. तब उन्होंने अरुण जेटली को अपना राजनीतिक गुरु माना. अमृतसर लोकसभा सीट के लोकसभा टिक्ट को लेकर फिर उन्हीं की वजह से बीजेपी से उनकी नाराजगी भी बढ़ती गई. सिद्धू की नाराजगी को देखते हुए बीजेपी ने उनकी नाराजगी दूर करने की कोशिश करते हुए राज्यसभा का सदस्य बनाया, लेकिन फिर भी सिद्धू की नाराजगी कम नहीं हुई. 2017 में सिद्धू ने अचानक राज्यसभा सदस्यता के साथ-साथ बीजेपी से भी इस्तीफा दे दिया. कुछ दिन तो सिद्धू अपना एक अलग मोर्चा बनाने के लिए प्रयास करते रहे लेकिन 2017 में फिर कांग्रेस में शामिल हो गए.
बाबुल सुप्रियो
लोकप्रिय गायक बाबुल सुप्रियो मार्च 2014 में बीजेपी में शामिल हुए. 2019 में, उन्होंने आसनसोल विधानसभा सीट जीतने के बाद बीजेपी छोड़ दी. बंगाल में ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली सरकार के मुखर आलोचक, उन्होंने 18 सितंबर, 2021 को टीएमसी में शामिल होकर एक आश्चर्यजनक बदलाव किया. टीएमसी में शामिल होने से पहले, उन्होंने बीजेपी के प्रति अपना असंतोष सार्वजनिक किया था और घोषणा की थी कि वह राजनीति छोड़ देंगे. वह वर्तमान में ममता सरकार में सूचना प्रौद्योगिकी और इलेक्ट्रॉनिक्स और पर्यटन विभाग संभालते हैं.
जगदीश शेट्टर
हालांकि जगदीश शेट्टर बीजेपी में फिर वापस आ गए हैं, लेकिन बीजेपी के वरिष्ठ नेता, एक बार मुख्यमंत्री और छह बार के विधायक, नाराज जगदीश शेट्टार ने अप्रैल 2023 में कर्नाटक विधानसभा से इस्तीफा दे दिया. साढ़े तीन हफ्ते बाद होने वाले राज्य चुनाव के लिए संकट में फंसी बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और वो कांग्रेस में शामिल हो गए.
गौतमी तडिमल्ला
अभिनेता-राजनेता गौतमी तडिमल्ला ने अक्टूबर 2023 को 25 साल का रिश्ता खत्म करते हुए बीजेपी छोड़ दी. 23 अक्टूबर को लिखे एक पत्र में, तडिमल्ला ने व्यक्तिगत संकट के दौरान पार्टी के नेतृत्व से समर्थन की कमी का हवाला देते हुए अपनी निराशा व्यक्त की. बाद में वो अखिल भारतीय अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईएडीएमके) से जुड़ गई.
विजयशांति
तेलंगाना की पूर्व सांसद और अभिनेत्री विजयशांति, ने नवंबर, 2023 में बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था. बाद में वो एआईसीसी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की उपस्थिति में कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गईं.
अशोक कुमार दोहरे
अशोक कुमार दोहरे 2014 में उत्तर प्रदेश के इटावा से बीजेपी सांसद चुने गए थे. वह 29 मार्च, 2019 को कांग्रेस में शामिल हो गए. उन्होंने यह कहते हुए बीजेपी छोड़ दी थी कि पार्टी अनुसूचित जाति से संबंधित अपने सांसदों के बीच असंतोष की बढ़ती आवाज से जूझ रही है.
सावित्री बाई फुले
सावित्री बाई फुले ने अपना राजनीतिक करियर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) से शुरू किया लेकिन बाद में बीजेपी में शामिल हो गईं. 2014 के चुनाव में वह बीजेपी की सीट से बहराइच लोकसभा क्षेत्र से चुनी गईं. 6 दिसंबर, 2018 को फुले ने बीजेपी पर "समाज को विभाजित करने और आरक्षण के मुद्दे पर पर्याप्त कदम नहीं उठाने" का आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया. वह मार्च 2019 में पार्टी नेताओं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा की उपस्थिति में कांग्रेस में शामिल हुईं. बाद में उन्होने कांग्रेस से भी किनारा कर लिया.
स्वामी प्रसाद मौर्य
समाजवादी पार्टी में अकसर अपने हिन्दु विरोधी बयानों के लिए सुरखियों में रहने वाले, पांच बार विधायक रहे स्वामी प्रसाद मौर्य जनता दल, बहुजन समाज पार्टी से होते हुए जून 2016 में बीजेपी में शामिल हो गए. वह उत्तर प्रदेश सरकार में श्रम, रोजगार मंत्री के रूप में कार्यरत थे, जब उन्होंने 11 जनवरी, 2022 को कैबिनेट पद और बीजेपी छोड़कर समाजवादी पार्टी का हाथ थाम लिया. अब एक बार फिर उनका मन समाजवादी पार्टी से भर गया है.
उदित राज
उदित राज 23 फरवरी 2014 को बीजेपी में शामिल हुए और उत्तर पश्चिम दिल्ली से लोकसभा सदस्य चुने गए. जब उन्हें 2019 का आम चुनाव लड़ने के लिए टिकट से वंचित कर दिया गया, तो उन्होंने बीजेपी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए.
गद्दाम विवेकानंद
नवंबर 2023 में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य, गद्दाम विवेकानंद ने पार्टी छोड़ने का फैसला लिया. गद्दाम विवेकानंद तेलंगाना बीजेपी की घोषणापत्र समिति के प्रमुख थे. उन्होंने यह कहते हुए कांग्रेस का दामन थाम लिया कि राज्य में मुख्यमंत्री केसीआर के शासन को समाप्त करने के लिए बदलाव की आवश्यकता थी.
चंद्र बोस
2023 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पोते चंद्र बोस ने बीजेपी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी ने वादा किया था कि वो नेताजी की विचारधारा को आगे बढाएंगें. लेकिन उन्होंने इस पर कोई भी कदम नहीं उठाए. चंद्र बोस 2016 में बीजेपी में शामिल हुए थे. उन्होंने ममता बनर्जी के खिलाफ चुनाव लड़ा था.
विनोद शर्मा
जुलाई 2023 में बिहार के बीजेपी प्रवक्ता विनोद शर्मा ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. विनोद शर्मा ने कहा कि मणिपुर में बीजेपी की सरकार है लेकिन 80 दिन तक वहां कुछ नहीं किया गया. विनोद शर्मा ने कहा कि सीएम एन बिरेन सिंह के खिलाफ कोई एक्शन नहीं हुआ इससे वो आहत हैं और पार्टी छोड़ रहे हैं.
2022 में पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी में नेताओं की टूट का सिलसिला चला. बैरकपुर से बीजेपी सांसद और प्रदेश उपाध्यक्ष अर्जुन सिंह ने टीएमसी का दामन थाम लिया. इसके अलावा भी चुनावों के आसपास मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, तेलांगना, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडू और कर्नाटक जैसे राज्यों में बीजेपी अपने नेताओं के पलायन का दंश सह चुकी है.
पलायन हो कर आ रहे नेताओं से खतरा
बीजेपी ने अपनी स्थापना से अब तक हमेशा अपने चाल चरित्र और चेहरे के बारे में संवेदनशीलता दिखाई है. कहीं ऐसा न हो कि दूसरी पार्टी से आने वाली नेताओं की भीड में बीजेपी का चेहरा ही गुम जाए. इसका एक संकेत हाल ही में कमलनाथ के बीजेपी में शामिल होने कि चर्चाओं के समय दिखा. बीजेपी नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा ने कहा कि “कमलनाथ सिखों की हत्या के दोषी हैं. उन्होंने गुरुद्वारे में आग लगाई थी, इसीलिए उनके लिए बीजेपी के दरवाजे कभी नहीं खुलेंगे”. कमलनाथ का 1975 में इमरजेंसी, जिसे बीजेपी लोकतंत्र की हत्या बताती आई है, में रोल के चलते बीजेपी में इस राए को रखने वालों की कमी नहीं है कि किसी के लिए भी पार्टी के दरवाज़े इस लिए नहीं खोले जाने चाहिए क्योंकि उससे छोटा चुनावी लाभ हो सकता है.
अगर ऐसा होता है तो इससे बीजेपी की छवी और मुल्यों की हार भी होना तय है. भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की बात करने वाली बीजेपी में महाराष्ट्र में चर्चित कथित घोटालों में से एक आदर्श घोटाले के सबसे बड़े आरोपी अशोक चव्हाण के कांग्रेस से शामिल होने पर भवें तनना स्वाभाविक है. आदर्श हाउसिंग सोसाइटी के मामले में नाम सामने आने के बाद साल 2010 में चव्हाण को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. आदर्श हाउसिंग सोसायटी साउथ मुंबई के कोलाबा में बनी थी, जिसमें कारगिल के नायकों और शहीदों के परिवारों को फ्लैट दिए जाने थे.
भवें तनना तब भी स्वभाविक है जब 2017 में मुंबई में एक मुशायरे में पैगम्बर मुहम्मद साहब की शान में ये गाना गाने वाले कि “जो नहीं है मुहम्मद का हमारा हो नहीं सकता”. नारा ए तकबीर का नारा लगाने वाले, बीजेपी और आरएसएस की सोच को अपनी टीवी डिबेटस में गलत करार देने वाले प्रमोद कृष्णम बीजेपी से नज़दीकी बढ़ाते हुए दिखें.
ऐसे में बीजेपी और आरएसएस समर्थकों का ये डर भी स्वाभाविक है कि कहीं ऐसे नेताओं की बीजेपी से नज़दीकियां बीजेपी का चरित्र तो नहीं बदल देंगीं. सर्मथक ये जानते हैं की चुनावी राजनीती कि अपनी मजबूरियां होती हैं लेकिन वो बीजेपी को ये भी चेता रहें हैं कि ज़रा पगड़ी संभाल के.
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