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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

इमरान खान की पाकिस्तान में गिरफ्तारी और बवाल मचाते प्रदर्शनकारी... जानें किस ओर जा रहा पाक

पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को गिरफ्तार कर लिया गया है. इस्लामाबाद हाईकोर्ट से इमरान खान की गिरफ्तारी हुई है. इधर, इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने दावा किया कि वकील की पिटाई की गई जबकि इमरान खान को कॉलर पर हाथ डालकर ले जाया गया. पीटीआई ने एक वीडियो भी ट्विटर हैंडल से जारी किया है. इसके बाद पाकिस्तान में भारी बवाल हो रहा है.

इमरान खान की गिरफ्तार के कई कारण हैं, एक तरफ जहां वे सेना पर अटैक कर रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ उनकी पॉपुलरिटी बढ़ती जा रही थी. काफी समय से इमरान खान को गिरफ्तार करने की कोशिश की जा रही थी. लेकिन उनके समर्थक उनके बचा रहे थे. उनके ऊपर हमला भी किया गया था.

अभी कुछ समय पहले जब आईएसआई पर उन्होंने हमला किया कि वे मारने की कोशिश कर रहे हैं, ये भी सेना पर आलोचना उनकी गिरफ्तारी की एक बड़ी वजह बनी. पाकिस्तान के हालात काफी खराब है. अरेस्ट का मतलब है कि मौजूदा सरकार हालात को काबू में नहीं कर पाएगी. एक वजह कि काफी अनपॉपुलर है. सपोर्ट बेस काफी कम हो गया है. चुनाव भी आने वाला है.

क्यों इमरान खान की हुई गिरफ्तारी

ऐसे में ये देखना है कि पूरी चुनौती से किस तरह सरकार पार पाती है. क्या सेना खुद सत्ता में आएगी? क्या होगा ये इस वक्त कहना जल्दबाजी होगी. लेकिन मौजूदा सरकार अगर बनी रहे, तो ये बेहतर होगा. इमरान खान हद से ज्यादा रेड लाइन को क्रॉस कर रहे थे. ये एक बड़ा फैसला है. हालांकि, शुरू में तो ये विरोध को रोकने के लिए कर्फ्यू और धारा 144 लगा सकते हैं. हमने देखा कि ऐसे वक्त में असमाजिक तत्व भी एक्टिव हो जाते हैं.

पाकिस्तान के अंदर तो पहले से ही आतंकी संगठन एक्टिव हैं, जैसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान. इसके अंदर भी कई गुट सक्रिय हैं. एक वजह ये भी है इनके ऊपर सख्ती करने की. इसके बाद दमन की नीति अपनाई जा सकती है. जिस तरह के महंगाई बढ़ती जा रही है उसके बाद ऐसा लगता है कि कहीं लूट-मार न होने शुरू हो जाए. आखिर पाकिस्तान उधार के पैसे से कब तक चलेगा? कोई वहां पर निवेश करने को तैयार नहीं है. लोकल कंपनियां भी बंद हो गईं.  

लोग खुले में सो रहे हैं. हालात काफी बुरे हैं. ऐसे में मुझे लगता है कि सेना खुद सत्ता हासिल कर सकती है या फिर इस सरकार को कठपुतली बनाकर पीछे से अपना काम कर सकती है.

किस ओर पाकिस्तान

एक तरफ जहां आसिफ अली जरदारी और बिलावल भुट्टो पर निशाना साध रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ नवाज शरीफ और शहबाज शरीफ को निशाने पर लिया, कि वे भ्रष्टाचार में संलिप्त रहे. जबकि पाकिस्तान की सेना पर भी इमरान खान हमलावर रहे.  पाकिस्तान में सेना सबसे शक्तिशाली है. उसी के हाथ में सत्ता रहती है. निर्वाचित सरकार के हाथ में ज्यादा ताकत नहीं रहती है. दूसरी बात ये भी है सेना के खिलाफ इमरान खान ने काफी एक्सपोज कर दिया है. 

सेना के खिलाफ एक माहौल बनता जा रहा है. हमने ये भी देखा है कि जब सेना एक बार सत्ता में आ जाती है, सेना को जब सत्ता की आदत हो जाती है, तो मुल्क भले ही बर्बाद क्यों न हो जाए, वो नहीं छोड़ते, जैसा कि सूडान में देखने को मिला. ऐसे में पाकिस्तान के मौजूदा हालात और खराब होंगे, क्योंकि न तो कोई पॉलिटिकल लीडर है न की समझदारी है.

पहले अरब देश भी पाकिस्तान को पैसा देते थे. इनके इस्लामिक एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद करते थे. अब वो एजेंडा उस तरह का रहा नहीं हैं तो वहां से उनको पैसा मिल नहीं पा रहा है. सऊदी अरेबिया भी पाकिस्तान से नाराज है क्योंकि उसने 22 देशों का एक एयरलाइन्स बनाया था यमन के खिलाफ जिसमें पाकिस्तान ने ज्वाइन नहीं किया. इस वजह से वो भी पाकिस्तान के खिलाफ है और खुश नहीं है. ये जो देश हैं अगर ये पाकिस्तान को बीच-बीच में आर्थिक तौर पर 1 से 2 बिलियन डॉलर का मदद कर भी देते हैं तो मुश्किल से एक या दो महीने तक पाकिस्तान का काम चल सकता है. पहले इनको रेमिटेंसेस से पैसे आ जाते थे जो अब वहां से भी कम आ रहा है. उद्योग है नहीं पाकिस्तान में बहुत ज्यादा तो..हालात बहुत खराब है.

अब क्या होगा ये कहना तो बहुत मुश्किल है लेकिन नजर नहीं आता कि कैसे इस स्थिति से बाहर निकलेगा और ये अपराइजिंग की शक्ल लेता चला जा रहा है. ऐसे में ये होगा कि इनके यहां जो आतंकवादी शक्तियां है वो आतंकवाद फैलाने लगती हैं. पहले से फैला भी रहे हैं. उनके पास हथियार भी है और वो इस स्थिति का फायदा उठाएंगे. पाकिस्तान में पॉलिटिकल इंस्टीट्यूशन नहीं हैं. चूंकि आपको डेमोक्रेसी चलाने के लिए राजनीतिक संस्थाओं की जरूरत होती है. फ्री मीडिया होनी चाहिए. न्याय प्रणाली स्वतंत्र होनी चाहिए. चुनाव आयोग स्वतंत्र होना चाहिए ये सब कुछ है ही नहीं इनके पास. जो संस्थाएं हैं वहां पर सिर्फ वैसे ही लोग भरे पड़े हैं जो सेना को सपोर्ट करते हैं. अब ये देखना है कि आगे क्या होता है.

(यह आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)

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