प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन किया जाना है. लेकिन कांग्रेस समेत विपक्ष की तरफ से 19 दलों का विरोध करने के पीछे एक बड़ी वजह इसका उद्घाटन पीएम की जगह राष्ट्रपति से कराया जाना चाहिए था. इसके अलावा, जिस दिन ये कार्यक्रम रखा गया है, उस दिन को लेकर भी एतराज है. हमारी तरफ से ये कहा जा रहा है कि देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति जो महिला हैं और आदिवासी समाज से आती हैं, आप उन्हें आमंत्रित कीजिए. राष्ट्रपति के संवैधानिक पद की मर्यादा का ध्यान रखते हुए इस नए संसद भवन का उद्घाटन उनसे कराइये. सभी कांग्रेस समेत 19 राजनीतिक दलों की मांग है. इस पूरी बात में हमारी तरफ से इस कार्यक्रम का कहीं कोई विरोध नहीं किया गया है.
जहां तक इस कार्यक्रम के जरिए विपक्षी एकजुटता का देशभर में संदेश देने की बात है तो बहुत से भविष्य में ऐसे मुद्दे आएंगे. हो सकता है कि कभी 19 पार्टी साथ खड़े होंगे तो 15 दल होंगे. लेकिन बात ये है कि ये संविधान से जुड़ा हुआ, संवैधानिक पद, प्रथम नागरिक, महिला आदिवासी राष्ट्रपति... के सम्मान से जुड़ा सवाल है. 19 दल एक साथ हैं, ये देश की बात हो रही है. भविष्य में बहुत से मुद्दे आएंगे, किसान का मुद्दा आएगा, जंतर-मंतर पर बैठी बेटियों का मुद्दा आ रहा है, मणिपुर जल रहा है. प्राथमिकताएं हैं पीएम मोदी को याद दिलाना.
हर विरोध को पीएम मोदी से जोड़ना गलत
मैं अगर बेरोजगारी का विरोध कर रही हूं, तो आप ये कहेंगे कि मोदी जी का विरोध है, तो ठीक है ये विरोध ही होगा. आप कहेंगे कि अगर मैं गरीबी का विरोध कर रही हूं तो वो भी मोदी जी का विरोध कर रही हूं. मैं महंगाई और बढ़ते रसोई गैस के सिलेंडर का विरोध कर रहा हूं तो कहा जाएगा कि मोदी जी का विरोध कर रही हूं. देश के लोकतंत्र में जो अन्याय हो रहा है उसे सीधे मोदी जी से जोड़ना गलत है.
जंतर-मंतर पर बैठी बेटियां न्याय मांग रही हैं और बीजेपी के सांसद ने जो उत्पीड़न किया है आप कहेंगे मोदी जी का विरोध कर रहे हैं. मोदी जी उस सांसद के साथ खड़े हैं. सरकार उस सांसद के साथ खड़ी है. फिर ये कहना कि मोदी का विरोध... मैं पूछना चाहती हूं कि ये मोदी है क्या... मोदी तब तक हैं जब तक वे उच्च संवैधानिक पद पर हैं. द्रौपदी मुर्मू जी जब बीजेपी में थीं, वो एक उम्मीदवार थीं. लोकतंत्र के इस चुनाव में कांग्रेस ने भी मारग्रेट अल्वा को उतारा. वे अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय से आने वाली कर्नाटक की एक महिला को चुनाव में उतारा. लोकतंत्र की परंपरा यानी चुनाव को जिंदा रखा.
संवैधानिक मर्यादा का रखना था ध्यान
उसके बाद जब राष्ट्रपति जीत गईं तब भी हमने बधाई दी. सोनिया गांधी की द्रौपदी मुर्मू जी के साथ बहुत सी एतिहासिक तस्वीरें हैं. उनको बधाई दीं. अब वो देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर हैं. अब हम ये नहीं मान रहे कि कहां से थीं और क्या उनका बैकग्राउंड था. इससे पहले जब राष्ट्रपति पद पर रामनाथ कोविंद जी थी, वे दलित समुदाय से थे. जब संसद भवन की नींव रखी गई उस वक्त भी उनका अपमान किया गया. उन्हें नहीं बुलाया गया.
लेकिन ये था कि जब संसद बन जाएगी तो संसद की नींव में जो पत्थर रहेगा, उद्घाटन होगा उसमें अब जो आदिवासी समाज की प्रथम महिला राष्ट्रपति हैं, उनको आमंत्रित किया जाएगा. अब दूसरी बार उस संवैधानिक पद पर बैठे हुए प्रथम नागरिक का अपमान कर रहे हैं और हमें कह रहे हैं कि मोदी जी का विरोध कर रहे हैं.
आज मोदी जी हैं, कल कोई और था, उससे पहले मनमोहन सिंह जी थे और कल कोई और आएगा. लोग आते-जाते रहेंगे लेकिन संवैधानिक पद की गरिमा बनी रहनी चाहिए. लेकिन हमने ये देखा कि ये सरकार लगातार लोकतंत्र की हत्या करती है. संविधान की हत्या करती है. संवैधानिक पदों की लगातार अपमान करती है.
कार्यक्रम को खुद बनाया विवादित
ये देश 140 करोड़ लोगों से चल रहा है, उन्हें इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए. इसमें मजदूर है, किसान है, युवा और बेरोजगार है, दलित-आदिवासी और अल्पसंख्यक है. ये देश सबका है. और वो 19 राजनीतिक दल ने आज एक सुझाव दिया है, वो एक मांग कर रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट भी ये मामला पहुंचा है.
हमने ये नहीं कहा कि आपने कांग्रेस अध्यक्ष को क्यों नहीं बुलाया या किसी राजनीतिक दल के नेता को क्यों नहीं बुलाया. हम बहिष्कार इसलिए कर रहे हैं क्योंकि देश की प्रथम नागरिक राष्ट्रपति और उप-राष्ट्रपति जो संरक्षक हैं, गार्जियन हैं इस संसद की... उनके समर्थन में जब राष्ट्रपति जी ही नहीं जाएंगे तो हमारा फैसला है. लोकतंत्र है, आजादी है, ले लिया हमने अपना फैसला. आप अपना फैसला कर लीजिए. सावरकर जो कि एक विवादित व्यक्ति रहे, उनके जन्मदिन वाले दिन संसद भवन का उद्घाटन कर खुद अपने आपको विवादों में ले आए हैं. सावरकर की तस्वीरें गोड्से के साथ हैं, जिन्होंने महात्मा गांधी की हत्या की.
दोहरे मापदंड नहीं चलेंगे. ये गांधी का देश है. संविधान और लोकतंत्र से जो परंपराएं हमारी है उसे जिंदा रखने के लिए हम अंतिम समय तक लड़ेंगे. उद्घाटन होने तक हम कहीं इस सम्मान को ठेस न आए वे हम प्रयास करते रहेंगे.
पार्टियां फैसला लेने को स्वतंत्र
इस देश में आजादी है, ऐसे में सभी पार्टियों को ये अधिकार है कि वे खुद इस पर अपना फैसला ले सकती हैं. विपक्षी दल हमारा सम्मान करें, हम उनका सम्मान करेंगे. दरअसल बात ये है कि कर्नाटक की हार डबल इंजन की मोदी सरकार की हार के बाद ये इतना बौखला गए हैं कि छवि बचाने के लिए विदेश दौरे पर पहुंच जाते हैं.
नए संसद भवन के उद्घाटन पर तो राजनीति खुद इन्होंने शुरुआत की है. हमारा तो छोटा सा सुझाव था. लेकिन आपने संवैधानिक पदों पर बैठे राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति को नहीं बुलाया. सावरकर के जन्मदिन वाले दिन इस कार्यक्रम का आयोजन रखा. हमारा छोटा सा सुझाव था. आप उसे तर्कों के साथ स्वीकार करते या फिर तर्क देकर अस्वीकार करते. लेकिन आपका घमंड इस तरीके का है कि आप बौखला गए हैं. आप संवैधानिक जवाब नहीं दे पा रहे हैं कि क्यों चुनी हुई देश की प्रथम नागरिक जहां पक्ष-विपक्ष बैठता है, वो उन सबकी संरक्षक हैं, उनके लिए होना चाहिए था. लेकिन ये बौखलाकर कुछ भी बोल रहे हैं.
ये संसद देश के पैसों से मजदूरों ने बनाया है. इस संसद में हम जाते भी रहेंगे और हम इस संसद में खड़े होकर इस आने वाले सत्र में बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की आय दोगुनी होना, एमएसपी पर कानून आना, जंतर-मंतर पर न्याय मांग रही बेटियां या फिर मणिपुर की आग हो... हम इन सब पर बीजेपी की सरकार को याद दिलाएंगे. सिर्फ उद्घाटन में राष्ट्रपति को नहीं बुलाए जाने के चलते नहीं जा रहे हैं. ये विरोध यहीं तक है.
[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]