पीएम मोदी ने दिवाली मनाने के लिए आखिर 'नौशेरा के शेर' की धरती को ही क्यों चुना ?
कश्मीर वादी के जिस नौशेरा सेक्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कल जवानों के साथ अपनी आठवीं दिवाली मनाई,उस नौशेरा का इतिहास शहादत से भरपूर है और सरहद का ये इलाका रणनीतिक रुप से भी भारत के लिए आज भी उतना ही महत्वपूर्ण समझा जाता है. जवानों के बीच बोलते हुए मोदी ने वैसे तो तमाम शहीदों को याद किया लेकिन ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जिक्र उन्होंने कई बार किया क्योंकि अगर वे नहीं होते, तो शायद 1948 में ही नौशेरा भारत के हाथ से निकल जाता. भारत के सैन्य इतिहास में ब्रिगेडियर उस्मान वीर गति को प्राप्त होने वाले अब तक के सबसे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी हैं. नौशेरा के झंगड़ मे उसी चट्टान पर उनका स्मारक बना हुआ है जहाँ दुश्मन द्वारा दागे गए तोप के गोले से वे शहीद हुए थे.उन्हें आज भी 'नौशेरा का शेर' कहकर ही याद किया जाता है.
पाकिस्तान की आतंकी हरकतों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए हमारी सेना ने 2016 में नियंत्रण रेखा के पार जाकर सर्जिकल स्ट्राइक करके कुछ आतंकी कैम्प तबाह कर दिए थे.वह सेना की बेहद साहसिक व अभूतपूर्व कार्रवाई थी और खुद पीएम ने ही इसकी हरी झंडी दी थी.लेकिन मोदी ने उस पूरी कार्रवाई पर इतनी गहराई से नज़र रखी हुई थी,इसकी जानकारी सेना के शीर्ष अफसरों के अलावा शायद किसी को भी नहीं रही होगी.लेकिन जब मोदी ने जवानों के बीच ये रहस्य खोला तो वे भी हैरान हुए बगैर नहीं रह सके.उन्होंने उस वक़्त नौशेरा में तैनात सैनिकों के पराक्रम की तारीफ़ करते हुए याद दिलाया कि "सर्जिकल स्ट्राइक में यहां की ब्रिगेड ने जो भूमिका निभाई, वह हर देशवासी को गौरव से भर देता है.मैंने उस दिन तय किया था कि सभी लोग सूर्यास्त से पहले लौट आएं.अपने आखिरी सैनिक की सुरक्षित रूप से घर वापसी सुनिश्चत करने के लिए मैं उस दिन लगातार फोन पर ही संपर्क में रहा.सर्जिकल स्ट्राइक के बाद यहां अशांति फैलाने के कई प्रयास हुए और हो रहे हैं, लेकिन हर बार आतंकवाद को मुहंतोड़ जवाब मिलता है.मैं मानता हूं कि यह अपने आप में बड़ी प्रेरणा है."
हालांकि सामरिक विश्लेषक मानते हैं कि पाकिस्तान को कड़ा संदेश देने के लिए ही मोदी ने इस बार दिवाली मनाने के लिए 'नौशेरा के शेर' की धरती को ही चुना. दरअसल,अपने छात्र-जीवन में एनसीसी के कैडेट होने के नाते सेना के प्रति उनका लगाव भी कुछ अलग किस्म का है,इसीलिये वे अपनी हर दिवाली जवानों के साथ ही मनाते आ रहे हैं.लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि पीएम मोदी ने भारतीय सेना को बेचारगी वाली हालत से बाहर निकालकर उसे आत्मनिर्भर बनाने में अहम भूमिका निभाई है,जो पिछले इतने सालों में कोई सरकार नहीं कर पाई थी.
चूंकि हमारी सेनाएं रक्षा तकनीक हासिल करने के लिए अब तक विदेश पर ही निर्भर रहा करती थीं,इसलिये उनकी खरीद में भी करोड़ों रुपये के घोटाले हुआ करते थे,फिर चाहे वो बोफोर्स तोप हो,ऑगस्टा वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर हो या फिर पनडुब्बी खरीदने का सौदा हो.हर खरीद में भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं.
लेकिन पिछले साढ़े सात साल में इसे मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि ही समझा जाना चाहिये कि अब देश के रक्षा बजट का करीब 65 फीसदी हिस्सा देश के भीतर हो रही खरीद पर ही खर्च हो रहा है.सरकार ने ये भी तय किया है कि रक्षा क्षेत्र से जुड़े दो सौ से ज्यादा साजो-सामान और उपकरण अब देश के भीतर ही खरीदे जाएंगे और अगले कुछ महीनों में इसमें कुछ और वस्तुएँ भी जुड़ने वाली हैं. इससे न सिर्फ़ हमारा डिफेंस सेक्टर मजबूत होगा बल्कि नए हथियारों और उपकरणों के निर्माण के लिए भी निवेश बढ़ेगा. दस साल पहले कोई सोच भी नहीं सकता था कि अर्जुन टैंक और तेजस जैसे लाइट एयरक्राफ्ट भारत में ही बनने शुरु हो जाएंगे लेकिन आज वे बन रहे हैं.सेना की ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियां को अब स्पेशलाइज्ड इक्विपमेंट बनाने का जिम्मा सौंपा गया है,जो एक अहम फैसला है.
शायद इसीलिये मोदी ने नौशेरा के जवानों के जरिये देश की तीनों सेनाओं को ये अहसास कराया है कि वे दिन गए जब उन्हें हथियारों या अन्य उपकरणों के लिए विदेश का मुंह ताकना पड़ता था और उसकी खरीद के लिए अपनी ही सरकार के आगे मिन्नतें करनी पड़ती थीं.पहले ये मान लिया गया था कि हमें जो कुछ भी मिलेगा, विदेशों से ही मिलेगा. हमें तकनीक हासिल करने के लिए उस देश के आगे झुकना भी पड़ता था और उन्हें ज्यादा पैसे भी देने पड़ते थे.यानी एक अफसर जो फाइल शुरू करे वो रिटायर हो जाए, लेकिन काम तब भी नहीं पूरा होता था.ऐसे में जरूरत के समय हथियार आपाधापी में खरीदे जाते थे और यहां तक कि स्पेयर पार्ट्स के लिए हम विदेश पर निर्भर थे. लेकिन अब ये तस्वीर काफी हद तक बदल चुकी है.
अब बात करते हैं उस 'नौशेरा के शेर ' की जिनकी कुर्बानी को याद करना पीएम मोदी सिर्फ भूले ही नहीं बल्कि नौशेरा की उस धरती को वीर वसुंधरा बताते हुए इतिहास के इस तथ्य का उल्लेख भी किया कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का अधिकांश समय इसी भूमि पर बिताया था.दरअसल,आजादी मिलने के बाद भी ब्रिगेडियर उस्मान का नाम सुनकर पाकिस्तानी फौज खौफ खाती थी. उनके डर से ही पाकिस्तान ने उन पर 50 हजार रूपये का इनाम रख दिया था,जो 1948 में बहुत बड़ी रकम होती थी.वे न सिर्फ हिन्दुस्तानी फौज के ताज थे, बल्कि उनकी वतन परस्ती की मिसाल आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है.
ब्रिगेडियर उस्मान की जीवनी लिखने वाले मेजर जनरल वीके सिंह के मुताबिक भारत-पाक विभाजन के वक़्त "मोहम्मद अली जिन्ना और लियाक़त अली दोनों ने कोशिश की कि उस्मान भारत में रहने का अपना फ़ैसला बदल दें. इसके लिए उन्हें तुरंत पदोन्नति देने का लालच भी दिया गया लेकिन वे अपने फ़ैसले पर क़ायम रहे और शहीद होने तक मातृभूमि की सेवा में जुटे रहे."
लेकिन उनकी एक और भी बड़ी मिसाल के किस्से सुनाए जाते हैं जिससे पता लगता है कि वे ऐसे देशभक्त थे ,जिनके लिए हमेशा अपने मज़हब से पहले देश ही था.उनकी जीवनी के अनुसार नौशेरा पर हमले के दौरान उन्हें बताया गया कि कुछ क़बाइली एक मस्जिद के पीछे छिपे हुए हैं और भारतीय सैनिक पूजास्थल पर फ़ायरिंग करने से झिझक रहे हैं.जब ब्रिगेडियर उस्मान को ये पता लगा तो उन्होंने कहा कि अगर मस्जिद का इस्तेमाल दुश्मन को शरण देने के लिए किया जाता हैतो वो पवित्र नहीं है. उन्होंने तुरंत उस मस्जिद को ध्वस्त करने के आदेश दे दिए. ऐसे जांबाज़ राष्ट्रभक्त पर भला क्यों फ़ख्र क्यों न किया जाए?
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