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पीएम मोदी के चुनावी रणनीतिकार आखिर क्यों बनना चाहते हैं विपक्ष के झंडाबरदार ?

एक जमाना था जब सिर्फ बीजेपी में ही नहीं बल्कि देश की राजनीति में प्रमोद महाजन को सबसे बड़ा रणनीतिकार समझा जाता था,जिन्होंने केंद्र की सत्ता से कांग्रेस को उखाड़ फेंकने में चाणक्य की हर नीति का इस्तेमाल करते हुए साल 1996,98 और 1999 में बीजेपी को सत्ता की दहलीज़ तक पहुंचाया.लेकिन वक़्त से तकरीबन छह महीने पहले लोकसभा चुनाव कराने की पार्टी के बड़े नेताओं की जिद ऐसी भारी पड़ी कि साल 2014 के चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी.

उसके बाद प्रमोद महाजन का दुनिया से असमय चले जाना,सिर्फ उनके परिवार के लिए ही नही, बल्कि समूचे संघ परिवार और बीजेपी के लिए एक भयानक हादसे और बड़े झटके से कम नहीं था.वह इसलिये कि तब पार्टी में उस रिक्त स्थान को भरने की काबिलियत वाला कोई और दूसरा राष्ट्रीय स्तर का नेता किसी को दिख ही नहीं रहा था.3 मई 2006 को तकरीबन साढ़े 56 बरस की उम्र में जब महाजन इस दुनिया से विदा हुए,तब बीजेपी के दूसरी पंक्ति के नेताओ में एकमात्र लोकप्रिय चेहरा सिर्फ नरेंद्र मोदी ही थे,जो उस वक़्त गुजरात के मुख्यमंत्री थे.

उसके बाद देश के सियासी नक्शे पर अचानक एक नया नाम उभरता है,जो साल 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी की तरफ से पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के लिए चुनावी रणनीति तैयार करने और उसमें सफल होने की गारंटी भी देता है.ये नाम था प्रशांत किशोर का, जिनकी कंपनी आइपैक ने पहली बार में ही इतना बड़ा हाथ मारा कि उन्हें मोदी के लिए समूचे चुनावी-अभियान की रणनीति तैयार करने का जिम्मा मिल गया. प्रशांत ने महज़ साल भर पहले ही अपने दो दोस्तों के साथ मिलकर ये कंपनी बनाई थी और उसे पहला असाइनमेंट ही इतना बड़ा मिल गया, जिसके बारे में खुद उन्होंने भी सोचा नहीं था.

वैसे भी महाजन के चले जाने के बाद बीजेपी में ये पहली बार ही हुआ था, जब पूरे चुनाव-अभियान का जिम्मा किसी नई प्रचार कंपनी को दिया गया हो. देश की राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था, जबकि उस अभियान के दौरान राजनीतिक रणनीति बनाने के अलावा आधुनिक तकनीक और सोशल मीडिया का इतना जबरदस्त तरीके से इस्तेमाल किया गया हो.

ज़ाहिर है कि उस चुनाव में बीजेपी को बड़ी कामयाबी हासिल हुई और उसे सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों की बैसाखी की भी जरूरत नहीं पड़ी.लेकिन प्रशांत किशोर बहुत ज्यादा दिनों तक बीजेपी की आंख का तारा नहीं बन सके और कड़वाहट ऐसी उभरी कि जल्द ही दोनों की राहें अलग हो गईं हालांकि उसके बाद उन्होंने अलग-अलग राज्यों में दूसरे दलों के साथ मिलकर विधानसभा चुनावों में उनके लिए चुनावी रणनीति तैयार की और सच ये भी है कि उन्हें ज्यादातर इसमें कामयाबी ही मिली. फिर भले ही वो पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह को दोबारा सत्ता में लाना हो या बिहार में जेडीयू व लालू प्रसाद यादव की आरजेडी वाले गठबंधन के चेहरे नीतीश कुमार को सीएम बनवाना हो.उधर,आंध्र प्रदेश में जगह मोहन रेड्डी के मुख्यमंत्री बनने का सपना पूरा करना हो या फिर पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का किला बचाना हो,इन सबमें प्रशांत ने उनकी उम्मीदों को पूरा कर दिखाया.

लेकिन अब वही प्रशांत किशोर दावा कर रहे हैं कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को हराना मुमकिन है और इसके लिए वे अपना फार्मूला भी निकाल लाये हैं.उनका कहना है कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्षी मोर्चा बनाने की जरूरत है, जिसमें वे अपनी मदद देने के लिए तैयार हैं.चूंकि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को आम चुनाव का सेमी फाइनल समझा जा रहा है, लिहाज़ा,इस सुरते-हाल में प्रशांत के इस दावे पर विपक्षी दल भी आसानी से यकीन करने को फिलहाल तो तैयार नहीं दिखते.

हालांकि प्रशांत ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा है कि इसके लिए थोड़े से समायोजन और थोड़े से बदलाव की जरूरत है. अगर कोई दल टीएमसी, कांग्रेस या कोई अन्य दल, बाकी दलों को इकट्ठा करता है, अपने संसाधनों का इस्तेमाल करता है और नए सिरे से रणनीति शुरू करता है तो विपक्ष 250 से 260 सीटों तक पहुंच सकता है, ये अभी के नंबर के हिसाब से है. सिर्फ पार्टियों के साथ आने से काम चलने वाला नहीं है. आपको सही तरीके से एक संगठन बनाने की जरूरत है.

वैसे साल 2019 के लोकसभा चुनाव-नतीजों का हर सीट के हिसाब से विश्लेषण किया जाए,तो प्रशांत किशोर ने उसी नब्ज़ को पकड़ते हुए ये दावा किया है.दरअसल,पिछले चुनाव में तकरीबन 200 सीटें ऐसी थीं, जहां बीजेपी और कांग्रेस के बीच कांटे का मुकाबला था औऱ बीजेपी उम्मीदवार ने बहुत कम वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर प्रशांत का आकलन है कि हो सकता है बीजेपी इसे जीत ले और फिर 2024 में हारे. उन्होंने कहा कि कोई भी पार्टी जो बीजेपी को हराना चाहे, उसके पास कम से कम 5 से 10 साल का विजन होना चाहिए. यह पांच महीने में नहीं हो सकता,इसलिये कि व्यक्ति नहीं हमारे देश में मजबूत विपक्ष की आवश्कता है

बीजेपी को हराने के फॉर्मूले का खुलासा करते हुए प्रशांत कहते हैं कि इसके लिए उत्तर और पश्चिम की 100 सीटें जीतना जरूरी है. मैं 2024 के लिए एक विपक्षी मोर्चा बनाने में मदद करना चाहता हूं, जो 2024 में मजबूत लड़ाई दे सके. अगर आप बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तेलंगाना, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल की करीब 200 सीटें भी जीत लें तब भी आप बीजेपी को हरा नहीं सकते. अपनी पॉपुलारिटी के दम पर बीजेपी 50 ऑड सीट्स जीतने में सफल होगी. बाकी की 350 सीटों पर बीजेपी स्वीप कर रही है. अब सवाल ये है कि विपक्षी एकता के झंडाबरदार बनने के लिए प्रशांत किशोर इतने आतुर क्यों हैं और इसमें वे खुद के लिए किस भूमिका का सपना पाले हुए हैं? 

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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