इमरान खान की सरकार गिरने के बाद पाकिस्तान में राजनीतिक जबर्दस्त उथल-पुथल है. शहबाज शरीफ नए प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. लेकिन आप सबने ध्यान दिया होगा कि पाकिस्तानी में इतनी राजनीतिक हलचल के बावजूद भारत का रुख बहुत संयमित है, या कह लीजिए कि भारत ने एक तरह से चुप्पी साध रखी है. दरअसल पाकिस्तान को लेकर विदेश नीति में पीएम मोदी ने चुपचाप एक ऐसा बदलाव कर दिया है जिस पर लोगों का ज्यादा ध्यान नहीं गया. वो बदलाव है पाकिस्तान की अनदेखी करने का यानी इग्नोर करने का. इस बात कर गौर करिए कि पिछले 3 सालों में मोदी ने भारत समेत दुनिया के बड़े-बड़े मंचों पर पाकिस्तान के बारे में बात करना ही बंद कर दिया है. इस अनदेखी से पाकिस्तान परेशान है.
सत्ता गंवाने से पहले इमरान खान ने पीएम मोदी और भारत की विदेश नीति की जमकर तारीफ की थी. अचानक जिस तरह उनका भारत प्रेम जागा था, उसे लेकर भारत ही नहीं पाकिस्तान में भी लोग आश्चर्यचकित थे. क्योंकि आजाद भारत के इतिहास में आज तक किसी भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को भारत की तारीफ करते नहीं सुना गया था. भारत के खिलाफ 3 साल तक जहर उगलने वाले इमरान खान यूं ही भारत की तारीफ नहीं कर रहे थे, इसके पीछे मोदी सरकार की बड़ी सफलता छिपी हुई है. दरअसल इमरान खान अपने ही देश में राजनीतिक तौर पर घिर गए थे. कोई उनके साथ नहीं था. अंतर्राष्ट्रीय समुदाय भी उनमें विश्वास खो चुका था, उन पर किसी को विश्वास नहीं था. ऐसे में वो मोदी की तरह अवाम से सीधे बात कर अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे थे. लेकिन उनका ये हथकंडा काम न आया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले आठ सालों में अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में वो कद बनाया है जो इमरान खान सोच भी नहीं सकते. मोदी की गिनती आज अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, ब्रिटेन के पीएम बॉरिस जॉनसन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन जैसे नेताओं के साथ होती है. मोदी का इतना बड़ा कद होने की वजह से ही रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत एक अलग कूटनीतिक रुख अपनाने में कामयाब हो सका है. भारत उन चुनिंदा देशों में है जिसने यूक्रेन पर आक्रमण के बाद रूस और उसके राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की स्पष्ट रूप से निंदा नहीं की. भारत रूस-यूक्रेन युद्ध पर संयुक्त राष्ट्र में वोटों के दौरान दूर रहने वाला एकमात्र क्वाड देश है. क्वाड का अर्थ है क्वाड्रीलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग'. इस ग्रुप में भारत के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका भी है. इमरान खान ने इस बात का जिक्र अपनी तकरीरों में भी किया वो भी पाकिस्तानी अवाम के सामने. वो खुले आम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति की तारीफ कर रहे थे.
इमरान खान ने एक इंटरव्यू में कहा कि “ हिंदुस्तान की फॉरेन पॉलिसी की वजह से आप सिर्फ देख लें कि हिंदुस्तान के पासपोर्ट की क्या इज्जत है और पाकिस्तान के पासपोर्ट की क्या इज्जत रही है. जब आप एक खुद्दर कौम होते हैं कि लोग आपकी इज्जत करते हैं. हमने क्या किया, कभी एक ब्लॉक में गए कभी किसी और ब्लॉक में चले गए. “इमरान खान का कहना बिल्कुल सही है. भारत एक खुद्दार और मजबूत लोकतांत्रिक देश है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समने अमेरिका या रूस को खुश करने से ज्यादा जरूरी अपने अपने देश का हित है. लेकिन पाकिस्तान में ऐसा नहीं है. वहां की विदेश नीति तय करने में में वहां की सरकार से ज्यादा सेना का हाथ होता है. जनता का हित तो बहुत दूर की बात है.
इमरान खान बार-बार नरेंद्र मोदी को उकसाते हैं ताकि मोदी उनकी बातों का जवाब दे लेकिन मोदी एक मंझे हुए खिलाड़ी हैं जो उनके झांसे में नहीं आ रहे. इमरान खान मोदी से बात करने के लिए इतने बेकरार थे कि फरवरी में जब वो रूस गए तो वहां उन्होंने मोदी से डिबेट करने तक की इच्छा जता दी. यही नहीं पिछले दो महीनों में जबसे विपक्ष ने उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की बात की तबसे वो मोदी और भारत के कई बार गुणगान करते नजर आए. ये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तरह की रणनीति ही है कि उन्होंने अपनी तारीफ का सीधे कोई जवाब नहीं दिया. विदेश मंत्रालय ने भी एक–आध औपचारिक बयानों से ज्यादा कुछ नहीं कहा. दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समझ चुके हैं कि किसी को चोट पहुंचाने के लिए उसके बारे कुछ कहने से ज्यादा अच्छा उसकी अनदेखी करना. पाकिस्तान को इग्नोर करने से न उसे बारे में कोई बात होगी और न वो किसी बड़े अंतर्राष्ट्रीय मंच पर चर्चा का विषय बनेगा.
ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान से बात नहीं करना चाहते। उन्होंने आगे बढ़कर खुद कई बार कोशिश की है. जब 2018 में इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बने थे तब पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हें बधाई देते हुए दोनों देश के बीच संबंधों को और मजबूत करने पर काम करने की अपील की थी. लेकिन पाकिस्तान से उन्हें धोखे के सिवाय अब तक कुछ नहीं मिला. इमरान खान के पीएम बनने के बाद फरवरी 2019 में पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंक की ऐसी घटना को अंजाम दिया, जिससे पूरे देश की आत्मा को छलनी-छलनी कर दिया. पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी हमले में हमारे 40 जवान शहीद हो गए थे. इस घटना से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शांति प्रयासों को बड़ा झटका लगा था. मोदी ने सख्त नेतृत्व दिखाते हुए पुलवामा हमले के 12 दिन के भीतर ही बदला ले लिया. भारत ने पाकिस्तान के बालाकोट में आतंकियों के ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर जैश के करीब 300 आतंकी मार गिराए थे. इस घटना के बाद मोदी समझ चुके थे कि पाकिस्तान से किसी और अंदाज में ही निपटना होगा क्योंकि बातचीत की भाषा वो समझ नहीं रहे थे.
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और इमरान खान दोनों 2019 में बिश्केक में SCO ससम्मेलन में गए थे तब पीएम मोदी ने इमरान से बात करना तो दूर, उनके पास बैठना भी गंवारा नहीं समझा. जितनी भी तस्वीरें आई उसमें उन्होंने वो पाकिस्तानी डेलीगेशन से कोसों दूर दिखे. साफ था कि भारत किसी भी मंच पर पाकिस्तान के साथ नहीं दिखना चाहता था. इसके बाद जो भी अंतर्राष्ट्रीय मंच मिला वहां पाकिस्तान के उकसाने के बावजूद भारत ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
अगस्त 2019 को मोदी सरकार ने वो कर दिखाया जिसकी पाकिस्तान के कभी कल्पना भी नहीं की थी. उन्होंने भारत की जनता से जो वादा किया था वो पूरा कर दिखाया. मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर उसे केंद्र शासित प्रदेश बना दिया औऱ फिर उसे दो हिस्सों में बांट दिया- जम्मू-कश्मीर और लद्दाख. पाकिस्तान को ये बात पसंद नहीं आई. लेकिन मोदी सरकार ने इसकी परवाह नहीं की. उन्होंने पाकिस्तान की किसी बात का जवाब ही नहीं दिया. इमरान अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से चीख-चीख कर भारत के इस कदम की आलोचना करते रहे. लेकिन उनकी बात पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया. 2019 में संयुक्त राष्ट्र की जनरल असेंबली के भाषण में मोदी ने पाकिस्तान का नाम एक बार भी नहीं लिया. जबकि इमरान खान की हर बात में भारत का जिक्र था.
PMO और विदेश मंत्रालय की एक बड़ी उपलब्धि यह भी रही कि उन्होंने उन देशों को अपना दोस्त बनाया जो परंपरागत रूप से पाकिस्तान के दोस्त रहे थे. भारत ने कश्मीर में दर्जे में बदलाव किया और पाकिस्तान के दोस्तों को भी इस मुद्दे पर मनाने में सफल रहा कि यह उनके लिए कितना जरूरी था. दरअसल, इमरान खान ने प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत को इस्लामिक देशों के जरिए घेरने की कोशिश की लेकिन मोदी सरकार ने पाकिस्तान के दोस्तों सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत, बहरीन, ओमान जैसे खाड़ी देशों को अपने पाले में कर लिया. भारत के अनुच्छेद 370 को खत्म करने के बाद वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय के कूटनीतिक प्रयासों का असर यह रहा कि कई मुस्लिम देशों के नेता भारत के दौरे पर आए और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की. यही नहीं कश्मीर में भारत की उपस्थिति का विरोध कर रहे पाकिस्तान को तब और बड़ा झटका लगा जब इस्लामाबाद के दोस्त यूएई ने कश्मीर में अरबों डॉलर के निवेश का ऐलान कर दिया. इन निवेश प्रस्तावों से पाकिस्तान के उस दावे की हवा निकल गई कि भारत कश्मीर में हिंसा कर रहा है और मानवाधिकारों का उल्लंघन कर रहा है.
वैसे मोदी सरकार ने इमरान खान को उनके शासनकाल के शुरुआती महीनों में ही कूटनीतिक रूप से बड़ा झटका दे दिया था. सऊदी अरब के नेतृत्व वाले जिस ओआईसी के बल पर पाकिस्तान अब तक कूदता रहता था, वहां पहली बार भारत की एंट्री हो गई. पाकिस्तान के लिए यह करारा झटका इसलिए भी था क्योंकि वो हमेशा से इस प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करता था. बड़ी बात यह थी कि पाकिस्तान जो कि इस संगठन का संस्थापक सदस्य भी है, इस बैठक में शामिल नहीं था. भारत को न्योता मिलने से बौखलाए पाकिस्तान ने ओआईसी के इस कार्यक्रम का विरोध किया था.
ये बात गौर करने लायक है कि मुस्लिम आबादी के लिहाज से दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मुल्क भारत न तो OIC का सदस्य है और न ही उसे संगठन ने पर्यवेक्षक राष्ट्र का दर्जा दिया है. थाइलैंड और रूस जैसे कम मुस्लिम आबादी वाले देशों को भी OIC के पर्यवेक्षक का दर्जा मिला हुआ है. लेकिन 20 करोड़ मुस्लिम आबादी वाले भारत को यह दर्जा नहीं है. ऐसे में OIC की बैठक में भारत का जाना एक बड़ी कूटनीतिक जीत थी.
नरेंद्र मोदी जब 2014 में प्रधानमंत्री बने थे तब पूरी दुनिया की नजर इस बात पर थी कि क्या पीएम मोदी भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में बदलाव ला पाएंगे. क्या दोनों देशों में दोस्ती और शांति की स्थापना हो पाएगी? मोदी ने अपने शपथ ग्रहण समारोह में चौंकाते हुए भारत के सभी पड़ोसी देशों के राष्ट्राध्यक्षों के अलावा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को भी बुलाया था. कूटनीति की दुनिया में इस फैसले से हलचल मच गई थी. 2014 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति नवाज शरीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण समारोह में हिस्सा लेने के लिए दिल्ली आए. शांति का हाथ बढाने के लिए इसे मोदी की बड़ी पहल के तौर पर देखा गया. साल 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक और ऐसा कदम उठाया जिसने पूरी दुनिया को चौका दिया. पीएम मोदी सभी प्रोटोकॉल तोड़ते हुए अफगानिस्तान से वापस आते हुए अचानक पाकिस्तान की धरती उतर गए. वहां उन्होंने नवाज शरीफ को उनके जन्मदिन की बधाई दी और नवाज शरीफ की नातिन की शादी में शरीक हुए. ये बात इसलिए और ज्यादा चौकानेवाली थी क्योंकि उनसे ठीक पहले प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह अपने दस साल के कार्यकाल में एक बार भी पाकिस्तान नहीं गए थे.
मोदी की इतनी कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान ने उनकी पीठ पर खंजर घोंप दिया।18 सितंबर 2016 को जम्मू-कश्मीर के उरी की सैनिक छावनी पर पाकिस्तान समर्थक आतंकियों ने हमला कर दिया था जिसमें 19 जवान शहीद हो गए. मोदी का दिल टूट गया. जिस नवाज शरीफ को पीएम मोदी ने सुधरने का इतना मौका दिया, दोस्ती का हाथ बढ़ाया, उसी ने इतना बड़ा विश्वासघात किया. पीएम मोदी ने इस आतंकी हमले का बदला लेने के लिए सेना को खुली छूट दे दी. भारतीय सेना ने 28-29 सितंबर 2016 की रात एलओसी पार कर पाकिस्तान के आतंकी ठिकानों पर सर्जिकल स्ट्राइक कर दी जिसमें 38 आतंकी और 2 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए थे. इस घटना के बाद मोदी का मन उचट गया. वो पाकिस्तान कभी नहीं गए. वो समझ गए कि पाकिस्तान से बातचीत करने का तब तक कोई फायदा नहीं है जब तक वो आतंकी गतिविधियों रोक नहीं लगाता.
पाकिस्तान में नवाज शरीफ के बाद इमरान खान प्रधानमंत्री बने लेकिन स्थितियां बहुत नहीं बदली. मोदी समझ गए कि पाकिस्तान से निपटने का सबसे अच्छा तरीका है कि उनसे बात न करके अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से बात की जाए. मोदी का ये फॉर्मूला रंग लाया. आज पूरी दुनिया में पाकिस्तान अलग थलग पड़ चुका है. दुनिया के सबसे शक्तिशाली माने जाने वाले शख्स यानी अमेरिकी राष्ट्रपति के पद पर चुने जाने के बाज जो बाइडन ने दुनिया के जिन नेताओं से सबसे पहले बात की उनमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शामिल थे. इमरान खान इंतजार करते रह गए लेकिन उन्हें बाइडन का फोन नहीं आया. पाकिस्तान में इस बात को काफी अहमियत दी गई.
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से भारत और पाकिस्तान में शीर्ष स्तर पर कोई बात नहीं हो रही है. और फिलहाल पाकिस्तान में जिस तरह की राजनीतिक अस्थिरता है उसमें दोनों देशों के बीच बातचीत और भी ज्यादा मुश्किल लग रही है. पाकिस्तान में इमरान खान के बाद शहबाज शरीफ पीएम बनेंगे लेकिन उससे भी बहुत ज्यादा उम्मीद लग नहीं रही. उन्होंने पीएम बनने से पहले ही कह दिया है कि भारत से बात तभी हो सकती है जब वो पहले कश्मीर मुद्दा सुलझाए. ऐसे में दोनों देशों के बीच बातचीत के जरिए कब मसला सुलझेगा ये कहना मुश्किल है. इसलिए फिलहाल पीएम मोदी की पाकिस्तान को इग्नोर करने की नीति ही सबसे कारगर दिखाई दे रही है. भारत को इसके अच्छे परिणाम मिले हैं और उम्मीद है कि आगे भी अच्छे नतीजे ही देखने को मिलेंगे.
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