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ब्लॉग: विराट कोहली ने क्यों कहा- क्रिकेट मेरे खून में है?
क्रिकेट मेरे खून में है. ये कोई ‘ओवर स्टेटमेंट’ या बड़बोलापन नहीं है ये विराट कोहली की मन:स्थिति का सटीक उदाहरण है. विराट कोहली ने दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना होने से पहले ये बात इसलिए कही क्योंकि वो कुछ दिनों की छुट्टी के बाद लौट रहे हैं.
क्रिकेट मेरे खून में है. ये कोई ‘ओवर स्टेटमेंट’ या बड़बोलापन नहीं है ये विराट कोहली की मन:स्थिति का सटीक उदाहरण है. विराट कोहली ने दक्षिण अफ्रीका के लिए रवाना होने से पहले ये बात इसलिए कही क्योंकि वो कुछ दिनों की छुट्टी के बाद लौट रहे हैं. उन्होंने साफ किया कि इन छुट्टियों में भी वो खुद को दक्षिण अफ्रीका के दौरे के लिए तैयार कर रहे थे. बात साफ है कि विराट कोहली दक्षिण अफ्रीका के दौरे के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं.
इस मानसिक रूप से तैयार होने का किसी भी खेल में बड़ा महत्व है. जिसकी तरफ विराट कोहली ने इशारा किया भी, क्योंकि जिन परिस्थितियों, जिस मौसम के डर की बात चल रही है वो मानसिक स्थिति पर ही निर्भर करता है. अगर खिलाड़ी अपनी घरेलू परिस्थितियों में ही ‘मेंटली’ मैदान में मौजूद नहीं है तो उसके लिए यहां भी रन बनाना या अच्छा प्रदर्शन करना मुश्किल होगा. जरूरत इस बात की है कि खिलाड़ी अपना स्वाभाविक खेल खेलें, खुद को मानसिक तौर पर मैदान में मौजूद रखें, चुनौतियों का सामना करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहें और दूसरे देश की परिस्थितियों के हिसाब से खुद को ढालने की कोशिश करें, इसके बाद वही मौसम, वही परिस्थितियां आपको अपने मनमुताबिक लगने लगेंगी.
विराट की इन बातों पर अगर गौर किया जाए तो यही टेस्ट क्रिकेट की खूबसूरती भी है. ये ना तो पहली बार हो रहा है और ना ही आखिरी बार कि भारतीय टीम किसी विदेशी दौरे पर गई है या कोई विदेशी टीम भारतीय दौरे पर आई हो. विदेश की तेज पिचें और अपने यहां की स्पिन पिचें, टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में दर्ज हैं. साथ ही टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में दर्ज हैं वो खिलाड़ी जिन्होंने खुद को मानसिक तौर पर इन चुनौतियों के लिए ढाला और महान बने. विराट कोहली उसी महानता की तरफ कदम बढ़ाने की बात कर रहे हैं.
पूरे साल चलता रहेगा इम्तिहान का दौर
पिछले कुछ समय में चीफ कोच रवि शास्त्री और कप्तान विराट कोहली ने इस दिशा में काम किया है. उन्हें पता है कि विदेशी दौरे में चुनौतियां किस तरह आएंगी. वैसे भी साल 2018 में भारतीय टीम को दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उसके घर में खेलना है. तीनों ही देशों का मौसम और वहां की पिचें भारत से काफी अलग हैं. इन तीनों ही देशों में टेस्ट मैचों में भारतीय टीम के रिकॉर्ड्स भी अच्छे नहीं रहे हैं.
दक्षिण अफ्रीका के इस दौरे में टीम इंडिया को 3 टेस्ट, 6 वनडे और 3 टी-20 मैचों की सीरीज खेलनी है. टेस्ट सीरीज शुरूआत 5 जनवरी को केपटाउन में पहले टेस्ट से होगी. दूसरा टेस्ट मैच सेंचुरियन में और तीसरा मैच जोहानिसबर्ग में खेला जाना है. भारतीय टीम ने पिछले करीब 25 साल में दक्षिण अफ्रीका में टेस्ट सीरीज नहीं जीती है. फिर भी कुछ बातें हैं जो विराट कोहली के बयानों से ‘पॉजिटिव अप्रोच’ की तरफ ले जाती हैं. बशर्ते टीम इंडिया के बल्लेबाज दक्षिण अफ्रीका की पिचों को हव्वा मानने की बजाए वहां खड़े होकर गेंदबाजों का सामना करने की हिम्मत दिखाएं.
कठिन गेंदबाजी ‘अटैक’ के खिलाफ भी जीता है भारत
2006 का वो मैच बहुत अहम इस लिहाज से माना जा सकता है जब राहुल द्रविड़ की कप्तानी में टीम इंडिया ने जोहानिसबर्ग टेस्ट में दक्षिण अफ्रीका को 123 रनों से हराया था. भारतीय टीम ने पहली पारी में 249 और दूसरी पारी में 236 रन ही बनाए थे लेकिन क्रीज पर संघर्ष किया था. उस मैच में वीवीएस लक्ष्मण और सौरव गांगुली का संघर्ष क्रिकेट प्रेमियों को याद होगा. उस मैच में जीत के हीरो श्रीशांत थे, जिन्होंने शानदार गेंदबाजी की थी.
ये वही सीरीज है जिसे सौरव गांगुली की ‘कमबैक सीरीज’ के तौर पर याद किया जाता है. दक्षिण अफ्रीकी गेंदबाज खतरनाक थे, इसी टेस्ट मैच के बाद गांगुली ने कहा था कि ‘इट्स बेटर गेटिंग हर्ट रादर दैन गेटिंग आउट’ यानि विकेट पर एकाध बार चोट लगना आउट होने से बेहतर है.
तब मखाया एंतिनी, आंद्रे नेल, शॉन पॉलक और जैक कैलिस थे अब मॉर्ने मॉर्कल, डेन स्टेन, फिलेंडर जैसे गेंदबाज हैं. मुकाबला तब भी मुश्किल था आज भी मुश्किल है. उसे चुनौती भरा बनाने के लिए सकारात्मक सोच चाहिए. विराट कोहली के साथ साथ पूरी टीम को ये भरोसा रखना होगा कि क्रिकेट उनके खून में है, तभी वो टीम इंडिया तक पहुंचे हैं.
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राजेश कुमार
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