देश के बारह करोड़ किसान बेसब्री से बुधवार का इंतजार कर रहे हैं. मोदी सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक होनी है और इसमें तय होना है कि स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों को किस तरह और किस हद तक पूरा किया जाएगा. देश भर में मानसून आ गया है, छा गया है. खरीफ की बुआई शुरु हो चुकी है. एक करोड़ हेक्टेयर से ज्यादा में बुआई हो चुकी है. लेकिन अभी तक खरीफ की फसलों के लिए केन्द्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानि एमएसपी की घोषणा नहीं की है. आमतौर पर मानसून के केरल में दस्तक देने के एक पखवाड़े के भीतर यानि करीब 15 जून तक खरीफ के एमएसपी की घोषणा कर दी जाती है. किसान भी इसका इंतजार करता है क्योंकि जिस फसल पर एमएसपी में बढ़ोत्तरी होती है उसी के उत्पादन की तरफ किसान झुकता है. तो एमएसपी की घोषणा में देरी से सीधे सीधे यह एक नुकसान है जो किसान को हो रहा है. दूसरी आशंका है कि सरकार क्या वास्तव में एमएसपी पर पचास फीसद मुनाफे की दर लागू करेगी या दाएं बाएं कर जाएगी. हालांकि प्रधानमंत्री ने हाल ही में उनसे मिलने आए किसानों से कहा है कि उनकी सरकार लागत का डेढ़ गुना किसानों को देकर अपने चुनावी वायदे को पूरा करेगी. यहां पेंच यह है कि कृषि विभाग से लेकर नीति आयोग और वित्त मंत्रालय जिस फार्मूले की बात कर रहा है उसके हिसाब से किसान को स्वामीनाथन कमेटी के अनुरुप लाभ नहीं मिल सकेगा जिसकी बात मोदी सरकार करती रही है.


दरअसल भारत में केन्द्र सरकार का कृषि मूल्य और लागत आयोग 23 तरह की फसलों की एमएसपी तय करता है. यह खरीफ और रबी के लिए होती है. यहां तीन तरह के पैमाने हैं जिनके आधार पर एमएसपी तय की जाता है . एक , ए टू- इसमें खाद, पानी, बिजली, डीजल, कीटनाशक, बुआई कटाई की मजदूरी आती है. दो , ए टू प्लस एफ एल- इसमें ए टू के साथ साथ किसान और उसके परिवार के सदस्यों की तरफ से की गयी मजदूरी शामिल होती है जिसे फैमिली लेबर कहा जाता है. तीन सी टू- इसमें ए टू और एफ एल के साथ साथ कृषि भूमि का किराया, ट्रैक्टर थ्रेशर आदि मशीनों का किराया और ब्याज की रकम भी शामिल होती है. स्वामीनाथन कमेटी ने किसानों को सी टू पर पचास फीसद मुनाफा दिए जाने की सिफारिश की थी जिसे बीजेपी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अपने घोषणा पत्र में शामिल किया था. यह बात भी जानना जरुरी है कि ए टू प्लस एफएल से करीब 38 फीसद ज्यादा होती है सी टू की कीमत. अब देखना दिलचस्प रहेगा कि सरकार ए टू प्लस एफ एल पर पचास फीसद ज्यादा की एमएसपी देती है या सी टू पर पचास फीसद ज्यादा एमएसपी की घोषणा करती है.


2018-19 के वित्तीय बजट में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इस साल खरीफ से किसानों को लागत से डेढ़ गुना ज्यादा यानि एमएसपी पर पचास फीसद मुनाफा देने की एमएसपी लागू की जाएगी. अब इसके लिए फार्मूला क्या होगा इसके लिए नीति आयोग की तरफ से किसानों से, किसान संगठनों से और अर्थशास्त्रियों से बात की गई. नीति आयोग ने तीन सिफारिशें केन्द्र सरकार को की हैं. एक, राज्यों पर किसानों से फसलें एमएसपी पर लेने का काम छोड़ दिया जाए. अगर एमएसपी से दाम कम होते हैं तो केन्द्र सरकार राज्य सरकारों को वित्तीय मदद दे. दो, मध्यप्रदेश सरकार जैसी भावांतर योजना. यहां एमएसपी और बाजार के दाम के अंतर की पूर्ति केन्द्र सरकार करे. तीन , निजी व्यापारियों को एमएसपी पर किसानों से उपज खरीदने के कहा जाए. बदले में इस व्यापरियों को निर्यात की इजाजत दी जाए, इसमें आ रही दिक्कतें दूर की जाए, आय कर में छूट दी जाये, मंडी टैक्स खत्म किया जाए और कुछ अन्य तरह की रियायतें भी दी जाए. नीति आयोग का कहना है कि तीसरा विकल्प अगर अपनाया जाए तो केन्द्र और राज्य सरकारों की बहुत बड़ा सिरदर्द खत्म हो जाएगा, साथ ही उपज के भंडारण की समस्या भी समाप्त होगी और इसमें होने वाला खर्चा भी बचेगा .


केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में बनी तीन मंत्रियों की कमेटी को ऐसी सिफारिशें नीति आयोग ने भेजी हैं. इस पर कमेटी की राय क्या है यह बुधवार को पता लगेगा जब आर्थिक मामलों की कैबिनेट कमेटी में इसे रखा जाएगा और फिर मंत्रिमंडल की बैठक में रखा जायेगा. ऐसी संभावना बताई जा रही हैं और प्रधानमंत्री मोदी भी इसके संकेत दे चुके हैं. नीति आयोग का कहना है कि अगर किसानों को कुल लागत यानि सी टू पर पचास फीसद मुनाफा दिया गया तो किसानों की आय 24 फीसद तक बढ़ जाएगी. मोदी सरकार का इरादा 2022 तक किसानों की आय दुगुना करने का है और इस दिशा में यह 24 फीसद बड़ा महत्वपूर्ण योगदान देगा. लेकिन इसके साथ ही नीति आयोग ने सावधान किया है कि ऐसा करने पर कृषि जिंसों के दाम 15 फीसद तक बढ़ जाएंगे. बाजार में जरुरी कृषि जिंसों के दाम में इजाफा होगा और महंगाई दर में बढ़ोतरी होगी. अगर ऐसा हुआ तो रिजर्व बैंक को ब्याज दर में कमी नहीं करने का बहाना मिल जाएगा और इससे मध्यम वर्ग नाराज होगा. चुनावी साल में ऐसी नाराजगी का जोखिम क्या सरकार उठाने को तैयार होगी. नीति आयोग का यह भी कहना है कि अगर फसलों के दाम एमएसपी से 25 फीसद कम हो गये तो उसकी भरपाई के लिए सरकार को करीब 45 हजार करोड़ किसानों को देने होंगे. दिलचस्प बात है कि बजट में खरीफ से एमएसपी बढ़ाने की घोषणा करने वाली सरकार ने 45 हजार करोड़ का कोई प्रावधान बजट में किया ही नहीं है.


कुल मिलाकर सरकार के सामने सबसे बड़ी दुविधा यही है कि अगर वह ए टू प्लस एफ एल पर पचास फीसद मुनाफे की बात करती है तो इसमें कुछ भी नया नहीं होगा. अभी जिन 23 फसलों पर एमएसपी दी जा रही है उसमें से 14 पर पहले ही ए टू प्लस एफ एल से पचास फीसद ज्यादा किसानों को मिल रहा है. गेहूं पर तो किसानों को पिछले साल ही ए टू प्लस एफ एल पर 112 फीसद ज्यादा मिल रहा है. इसी तरह चना पर 78 फीसद ज्यादा, दाल पर 79 फीसद ज्यादा और सरसों पर 88 फीसद ज्यादा पहले से ही किसानों को मिल रहा है. किसान इसीलिए सी टू लागू करने की मांग कर रहे हैं क्योंकि यहां सरकार को अपनी जेब वास्तव में ढीली करनी पड़ेगी और किसानों को वास्तव में लाभ हो सकेगा. अब कुल मिलाकर यह देखना दिलचस्प होगा कि मोदी सरकार किसानों का कितना भला करती है और आम उपभोक्ता यानि मध्यम वर्ग का कितना ख्याल रखती है.


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