आपको शायद अजूबा लगे, लेकिन हक़ीक़त ये है कि इस वक़्त दुनिया के दो मुल्क ऐसे हैं, जिन्हें लोग टीवी चैनलों में आने वाले कॉमेडी शो के एक होस्ट के रुप में ही पहचानते थे, लेकिन सियासत में उतरते ही उनकी किस्मत का खेल देखिये कि एक जंग का मुकाबला कर रहे यूक्रेन के राष्ट्रपति वलादिमोर जेलेन्स्की हैं तो दूसरे भारत के सबसे समृद्ध प्रांत कहलाने वाले पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान हैं.


देश के दो-तीन बड़े मनोवैज्ञानिकों से पूछा गया कि कॉमेडी करने वाले इन दोनों किरदारों में ऐसा क्या है कि वे राजनीति में कूदते ही लोगों के दिलों पर ऐसा राज करने लगे कि चंद बरस में ही कामयाबी की बुलंदी छू ली. उन तीनों का जवाब तकरीबन समान तो था ही लेकिन थोड़ा दिलचस्प भी था. उन्होंने इन दोनों की बॉडी लैंग्वेज के आधार पर ये निष्कर्ष निकाला कि "वक़्त के थपेड़ों को झेलने की इन दोनों में ही अद्भुत क्षमता है. ये टूट तो सकते हैं लेकिन झुक नहीं सकते क्योंकि ये भावनात्मक रुप से अपने लोगों के बेहद करीब हैं और यही उनकी सबसे बड़ी ताकत भी है."


लेकिन हमारी दिलचस्पी जेलेन्सकी से ज्यादा भगवंत मान के बारे में जानने की थी. इसलिये मान के सीएम बनते ही मीडिया में आ रही ख़बरों के आधार पर उनसे सवाल किया गया कि क्या वे दिल्ली में बैठी आप सरकार के रिमोट से ही चलेंगे या फिर अपने दिमाग से पंजाब के लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरेंगे. जो जवाब मिला, उसे थोड़ा चौंकाने वाला ही समझना होगा. उनके मुताबिक "ऐसा व्यक्ति सलाह सबकी लेता है और जाहिर है कि पार्टी के किये चुनाबी वादों को पूरा करना भी अपनी जिम्मेदारी समझता है.लेकिन ज्यादा दबाव पड़ते ही ऐसा शख्स अपना आपा खोने में और सब कुछ कुर्बान करने में ज्यादा देर नहीं लगाता." कहने का मतलब ये है कि दिल्ली से पड़ने वाले दबाव को भगवंत मान ज्यादा देर तक झेलने वालों में से नहीं हैं. शायद इसीलिए आम आदमी पार्टी की तरफ से कल औपचारिक तौर पर ये घोषणा की गई कि हमने पंजाब सरकार को फ्री हैंड दे रखा है और उसमें कोई दखलदांजी नहीं होगी.


मनोवैज्ञानिकों के निष्कर्ष अपनी जगह हैं लेकिन इसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की राजनीति का सबसे चतुराई भरा फैसला माना जाना चाहिए कि उन्होंने शनिवार को पंजाब कैबिनेट में 10 मंत्री बनने की शपथ लेने वाले समारोह में अपनी पार्टी के पंजाब प्रभारी व दिल्ली के विधायक जरनैल सिंह और सह प्रभारी व विधायक राघव चड्डा को भी चंडीगढ़ नहीं भेजा. दरअसल,केजरीवाल मीडिया की नब्ज को समझने में बेहद माहिर हैं.उन्हें पहले दिन से ही ये अहसास हो चुका है कि अब मीडिया में यही उछालता रहेगा कि केजरीवाल अपने रिमोट कंट्रोल से पंजाब  की सरकार चला रहे है. लेकिन वे मीडिया के इस दावे को गलत साबित करने की तरफ आगे बढ़ चुके हैं. इसलिये कि पंजाब में आप की सरकार बनने पर दिल्ली मॉडल को कब, कैसे व किस तरीक़े से अपनाना है, इसका खाका तो वे बहुत पहले ही तैयार कर चुके थे.


दिल्ली के लोगों को याद होगा कि जब केजरीवाल पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तब उन्होंने सरकारी विभागों में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया था. अपना व्हाट्सएप्प नंबर सार्वजनिक करते हुए उन्होंने दिल्लीवासियों से अपील की थी कि आप इस पर रिश्वत मांगने से जुड़ा कोई भी ऑडियो या वीडियो भेजिए, उस पर तत्काल कार्रवाई होगी. लेकिन दिल्ली आज भी देश का एक लंगड़ा राज्य है, जिसे अभी तक पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त नहीं है. पुलिस,कानून-व्यवस्था और जमीन से जुड़े अहम मसलों के साथ ही सारी संवैधानिक शक्तियां उप राज्यपाल के पास हैं. लिहाज़ा,केजरीवाल का वो प्रयोग इसलिये फैल हो गया क्योंकि एंटी करप्शन यूनिट उनके हाथ में ही नहीं रही.


लेकिन केजरीवाल ने अपना वही प्रयोग पंजाब में कर दिखाया और भगवंत मान ने सीएम बनते ही सबसे पहले भ्रष्टाचार विरोधी हेल्पलाइन बनाने का ऐलान कर दिया. उन्होंने कहा कि 23 मार्च को "शहीद दिवस"' पर राज्य में एक भ्रष्टाचार विरोधी हेल्पलाइन शुरू की जाएगी. मान ने कहा था कि लोग व्हाट्सएप के जरिए भ्रष्टाचार के खिलाफ शिकायत दर्ज कर सकेंगे. लिहाज़ा,हम कह सकते हैं कि दिल्ली में केजरीवाल जिस काम को करने के लिए मजबूर बने हुए हैं,वे वही सारे काम पंजाब में कराने के लिए बेताब हैं और मान कैबिनेट की पहली बैठक के साथ ही इसकी शुरुआत भी हो चुकी है.


पंजाब सरकार की पहली कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने बड़ा फैसला किया है. कैबिनेट मीटिंग में 25 हजार सरकारी नौकरियों पर मुहर लगाई गई है. भगवंत मान के नेतृत्व वाली सरकार युवाओं के बीच बेरोजगारी के मुद्दे को हल करने का वादा किया था. इनमें से 10 हजार नौकरियां पुलिस विभाग में निकलेंगी, वहीं 15 हजार नौकरियां बाकी अलग-अलग विभाग में आएंगी.कैबिनेट के फैसले के मुताबिक एक महीने में ये नौकरियां निकाली जाएंगी. पंजाब में AAP के अन्य चुनावी वादों में, पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राज्य के सरकारी स्कूलों और अस्पतालों की स्थिति में सुधार करने, रोजगार के अवसर पैदा करने, 300 यूनिट तक फ्री बिजली देने का वादा किया था. 18 साल से ऊपर की महिलाओं को 1,000 रुपये प्रति माह देने का भी वादा AAP ने किया था. उन्होंने राज्य में भ्रष्टाचार मुक्त सरकार और नशीली दवाओं के खतरे को नियंत्रित करने का भी वादा किया था.


दरअसल केजरीवाल ने दिल्ली में जिस अलग तरह की राजनीति को पैदा करके अपनी मजबूत जगह बनाई,अब उसी तर्ज पर वे भगवंत मान को आगे रखते हुए शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के नाम पर पंजाब के नौजवानों को साथ लेकर सियासत की एक नई इबारत लिखना चाहते हैं,जिसके बारे में पंजाब से लेकर देश की दो बड़ी पार्टियों ने कभी सोचा भी नहीं था.



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