करवा चौथ पर कई जोक्स चले... व्हाट्सएप्प पर किसी ने लिखा कि इस दिन मोबाइल कंपनी का दिवाला निकल गया क्योंकि औरतों ने मेहंदी लगी होने की वजह से व्हाट्सएप्प चलाया ही नहीं. बिल्कुल... सर्वे कहते हैं कि औरतें व्हाट्सएप्प पर चैटिंग पुरुषों से 1.3 गुना ज्यादा करती हैं. पर कितनी औरतें, क्योंकि ये आंकड़े यह भी बताते हैं कि हमारे देश की 61 करोड़ से ज्यादा औरतों में से सिर्फ 28 परसेंट के पास फोन हैं. इस 28 परसेंट में से सिर्फ 20 परसेंट डेटा एनेब्ल्ड फोन का इस्तेमाल करती हैं यानी वे व्हाट्सएप्प चला पाती हैं. बिल्कुल चुटकुले सिर्फ मौज-मस्ती के लिए होते हैं लेकिन हमारे यहां ऐसी हंसी-ठिठोली के केंद्र में जबरदस्त जेंडर या कम्युनिटी बायस भी छिपा होता है.


ऐसे चुटकुले अपने को नहीं भाते. औरतों के पास फोन हैं तो वे इसका मिसयूज या ओवरयूज करती हैं- दरअसल इसका एक मतलब यह भी है. वैसे औरतों के पास फोन होते ही कम है. अधिकतर घरों में अगर एक फोन है तो वह पति के पास रहता है. औरत को फोन का क्या काम.. वह तो पति के फोन से भी काम चला लेगी. अगर औरत के पास फोन होगा तो वह पति के फोन से कमतर होगा. बस, बात भर ही तो करनी है इसलिए पति खरीदेगा आठ हजार का फोन और औरत को पंद्रह सौ के फोन से काम चलाना होगा. स्मार्ट होने का हक सिर्फ आदमी का है इसलिए उसके हाथ में स्मार्ट फोन है. औरत को स्मार्ट होकर क्या करना है- कौन सा सारे दिन दफ्तर में खटना है.


ज्यादातर लोगों को इस बात से ऐतराज होगा. मेट्रो और मॉल्स में हाथों में स्मार्ट फोन लिए लड़कियों-औरतों के ऊर्जावान तबके को देखने के बाद यह बात नाजायज लगेगी. पर यह सिर्फ आपके अरबन चश्मे का दोष है. इनसे बाहर निकलने पर स्थिति तीन सौ साठ डिग्री के कोण पर घूम जाती है. हमारे यहां अब भी खाप पंचायतें लड़कियों के फोन रखने पर बैन लगाती हैं. बाड़मेर-राजस्थान के गरारिया गांव में मुसलमान औरतें सिर्फ इसलिए फोन का इस्तेमाल नहीं कर सकतीं क्योंकि यह सामाजिक बुराई है. किशनगंज-बिहार में लड़कियों को मोबाइल फोन रखने के लिए दस हजार का जुर्माना भरना पड़ सकता है.


आगरा के पास बसौली गांव में पंचायत ने 18 साल से कम की लड़कियों के लिए मोबाइल को बैन किया है. गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से 100 किलोमीटर दूर सूरज गांव में औरतों के पास मोबाइल होने की सजा 2100 रुपए का जुर्माना है और खबरी को इनाम पर 200 रुपए मिलते हैं. वसुंधरा राजे, नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, विजय रूपानी वगैरह-कृपया सुनें!! एक खबर और मजेदार है. चेन्नई के कई इंजीनियरिंग कॉलेजों में कैंपस के बाहर लड़कियों को मोबाइल फोन रखने की इजाजत तो है लेकिन उनकी रिंगटोन रोमांटिक नहीं होनी चाहिए.


यह केजरी की दिल्ली की खबर है. अगर उनके उपमुख्यमंत्री महोदय एजुकेशन टुअर में मस्त होंगे तो यह कैसे जानेंगे कि इसका लाभ उठाने के लिए दिल्ली की लड़कियां घरों से निकल ही नहीं पातीं. स्कूल जाती भी हैं तो भाइयों के बाद. डिजिटल इंडिया कैंपेन तब बगलें झांकने लगता है जब दिल्ली से जुड़े कितने ही गांवों में लड़कियों को मोबाइल छूने भी नहीं दिया जाता.


आंकड़े काफी खतरनाक सच्चाई पेश करते हैं. औरतों को तकनीक से दूर रखने की बदहवास कोशिशें हर इलाके से होती दिखाई देती हैं. आंकड़े समाज में औरतों के लिए न्याय की असंभाव्यता की तरफ भी इशारे करते हैं. ग्रुपे स्पेशल मोबाइल एसोसिएशन (जीएसएमडी) का कंसल्टिंग एनालिसिस कहता है कि देश में मोबाइल जेंडर गैप बहुत बड़ा है. यहां पुरुषों के पास अगर 43 परसेंट मोबाइल फोन हैं तो औरतों के पास सिर्फ 28 परसेंट. लगभग 81 परसेंट ने इंटरनेट सर्फिंग कभी की ही नहीं है. फेसबुक पेज बनाने वाली भी सिर्फ 24 परसेंट औरतें हैं. अगर भारत में 7 करोड़ व्हॉट्सएप यूजर्स हैं तो सिर्फ 38 परसेंट औरतें आईपी मैसेजिंग का इस्तेमाल करती हैं. इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया भी यही बात दोहराता है. साल 2014 में किए गए एक सरकारी सर्वे में पता चला था कि सिर्फ 9 परसेंट औरतों को इंटरनेट सर्फ करना और ईमेल भेजना आता था.


एक्सेंचर का सर्वे गेटिंग टू इक्वल: हाऊ डिजिटल इज हेल्पिंग क्लोज द जेंडर गैप एट वर्क कहता है कि अगर औरतों को डिजिटल फ्लूएंसी यानी बिना किसी बाधा के इंटरनेट के प्रयोग की सुविधा मिलेगी तो मर्द-औरत की असमानता को मिटाना आसान होगा. इससे विकसित देशों में वर्कप्लेस यानी काम करने की जगहों पर उनके बीच 25 सालों में बराबरी आएगी और विकासशील देशों में 45 सालों में. भारत में काम तलाशने के लिए मोबाइल रखने वाले 81 परसेंट पुरुष डिजिटल स्पेस का प्रयोग करते हैं. औरतों की संख्या इससे काफी कम यानी 54 परसेंट ही है. इस सर्वे को देखते हुए आईएलओ का यह कहना काफी मायने रखता है कि भारत के वर्कफोर्स में सिर्फ 27 परसेंट औरतें हैं. जाहिर सी बात है कि अगर उन्हें तकनीक से रूबरू होने का मौका मिलेगा, तो उनके लिए कंपीटीशन में टिके रहना आसान होगा.


पर हमारे यहां ऐसा नहीं है. है उसका ठीक उलटा. यहां लड़कियों को मोबाइल के घृणा- प्रचार के झांसे में फंसाया जाता है. तभी अखिलेश यादव राज्य के युवाओं को लैपटॉप बांटते समय यह नहीं देख पाते कि उनके उत्तर प्रदेश में लालगंज जैसा एक गांव भी है जहां लड़कियों के मोबाइल रखने पर इसलिए पाबंदी लगाई जाती है क्योंकि किसी टीचर ने स्मार्ट फोन की मदद से किसी लड़की का यौन शोषण किया था. मतलब सजा अपराधी को नहीं, पीड़ित को दी जाती है. मतलब समाज की प्योरिटी के लिए औरत पर बंधन लगाना अनिवार्य शर्त है. नारी स्वतंत्रता और समाज की प्योरिटी एक साथ नहीं चल सकती. अगर जाति, समाज, परिवार को बचाना है तो औरत को बेड़ियों में डालो. जाति और समाज पर जितना गर्व होगा, औरत की उतनी दुर्गति तय है. बिना औरत की बेड़ियों के मर्दागनी बचेगी कैसे.


दरअसल यह सीधे-सीधे औरत की आजादी से जुड़ा मामला है. पर हममें से ज्यादातर को इस पर नाराज होने का हक नहीं. मोबाइल पर बैन लगाने वालों को गालियां देते समय अपने आस-पास अपनी बहन, अपनी मां, अपनी बीवी पर नजर डालिए. कहीं हम भी तो उन पर नजर रखने का काम तो नहीं करते. अपने घर के स्ट्रक्चर को भी देख लीजिए- कितनी तरह के लोग हैं वहां. पैदा हुई बाप की मर्जी से, जाति में शादी हुई. बच्चे पैदा किए- रोटी पकाई, बर्तन मांजे. मर गई. ऐसी औरतों की आजादी पर कौन पाबंदी लगाता है. क्या आप अपनी बहन से यह सुनने को तैयार हैं कि वह किसी से प्यार करती है. पत्नी से यह सुनने को तैयार हैं कि उसका कोई मर्द दोस्त है. मां से यह सुनने को तैयार हैं कि इस पूरे हफ्ते वह चूल्हे-चौके से मुक्ति चाहती है. अगर ऐसा नहीं है तो आप खाप पंचायतों के फरमान पर गुस्साते हुए भले नहीं लगते. आप खुलकर करवा चौथ के जोक्स पर हंस सकते हैं.


Note: ये लेखक के निजी विचार हैं, इससे एबीपी न्यूज़ का  कोई संबंध नहीं है.