प्रियंका गांधी की सियासत को आखिर क्यों नहीं समझ पाई योगी सरकार ?
लखीमपुर खीरी मामले में प्रियंका गाँधी ने जिस हौंसले और सब्र के साथ सियासत की एक नई इबारत लिखने की कोशिश की है उसने चुनाव की दहलीज़ पर खड़े यूपी के बाकी विपक्षी दलों को एक तरह से पीछे छोड़ दिया है. राजनीति में अमूमन ऐसा बहुत कम ही होता है, जब विपक्ष के किसी एक नेता की जिद को पूरा करने के लिए सरकार को बैकफुट पर आना पड़े या उसे यू टर्न लेने के लिए मजबूर होना पड़े.लेकिन प्रियंका ने अपनी दादी इंदिरा गांधी के नक्शे कदम पर चलते हुए अपनी बात मनवाने के लिए न सिर्फ सरकार को मजबूर किया बल्कि इस बहाने पार्टी कार्यकर्ताओं में भी नई जान फूंकने की राह आसान बना डाली.
दरअसल, योगी सरकार को भी ये अहसास नहीं था कि पीड़ित किसान परिवारों से मुलाकात के लिए प्रियंका इस हद तक अड़ जाएंगी कि वो सरकार के लिए इतना बड़ा बवाल बन सकता है. जाहिर है कि सरकार में बैठे लोग इसे सियासी ड्रामा ही बता रहे हैं लेकिन लगातार तीन दिन तक प्रियंका के इस साहसी अंदाज़ को जिस तरह से देश-दुनिया के मीडिया में कवरेज मिल रहा था,उससे प्रियंका का न सिर्फ राजनीतिक कद बढ़ा, बल्कि वे लोगों के बीच ये छाप छोड़ने में भी काफी हद तक कामयाब रहीं कि विपक्ष में होने का मतलब ही ये है कि लोगों की लड़ाई को सड़क पर उतरकर लड़ा जाये.
इसके लिए सरकार के खिलाफ तेवर भी वैसे ही तीखे अपनाने से वे पीछे नहीं हटी जिसे देखकर आम जनता उसे राजनीतिक तमाशा नहीं बल्कि हक़ीक़त में हो रही लड़ाई ही समझें.यह अलग विषय है कि आगामी चुनाव में कांग्रेस को इसका कहां तक फायदा मिलता है लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि आक्रामक विपक्ष को नापने की कसौटी पर प्रियंका गाँधी खरी उतरीं हैं.
सत्ता के करीबी सूत्रों की मानें, तो मीडिया में मिलते लगातार कवरेज और इसके चलते प्रियंका के बढ़ते हुए कद से दिल्ली दरबार को भी ये फिक्र सताने लगी थी कि अगर इस विवाद को जल्द खत्म नहीं किया गया, तो चुनाव में पार्टी को खासा नुकसान झेलना पड़ सकता है. दावा तो ये भी किया गया कि दिल्ली से हिदायत मिलने के बाद ही योगी सरकार ने बुधवार की दोपहर ये फैसला लिया कि अब किसी भी राजनीतिक दल के पांच लोग पीड़ित परिवारों से मिलने लखीमपुर खीरी जा सकते हैं.
लेकिन इसके बाद भी योगी सरकार में बैठे अफसरों ने बगैर सोचे फिर एक ऐसा फैसला ले लिया कि इससे सरकार की कितनी भद्द पिट सकती है और कांग्रेस को बेवजह ही इसका सियासी फायदा मिल जायेगा. लखनऊ एयरपोर्ट पर उतरने के बाद राहुल गांधी पर ये बेतुकी शर्त थोपने के पीछे न जाने किसका दिमाग था कि उन्हें पुलिस की गाड़ी में ही लखिमपुर खीरी जाने दिया जाएगा. सरकार के स्तर पर एक फैसला लिए जाने के बाद स्थानीय प्रशासन की इस गलती का राहुल गांधी ने भरपूर लाभ उठाया और एयरपोर्ट पर ही धरना देकर करीब आधे घंटे तक वे देश के तमाम न्यूज़ चैनलों पर छाए रहे. आखिरकार उन्हें अपनी गाड़ी से ही जाने की इजाजत दी गई लेकिन सरकार को तो यहाँ भी बैकफुट पर आना ही पड़ा.
प्रियंका की गिरफ्तारी और राहुल को एयरपोर्ट पर रोके जाने की दो घटनाएं ऎसी हैं,जिसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस पर गहराई से चिंतन करना चाहिए कि उनकी मंडली में आखिर ऐसा कौन है, जो ऐसी सलाह देकर विपक्ष के हाथ मजबूत करने में लगा हुआ है.अगर प्रियंका को भी उसी रात अपने पांच सहयोगियों के साथ पीड़ित परिवारों से मिलने के लिए जाने दिया गया होता,तो वे लगातार तीन दिन तक न तो सुर्खियों में रहतीं और न ही सरकार को बैकफुट पर आना पड़ता.
राजनीति के महान विद्वान चाणक्य ने लिखा है- "राजनीति में अपने विरोधी को परास्त करने का सबसे बड़ा हथियार होता है-उसकी उपेक्षा करना.यानी Kill him or her by ignorance.उसे महत्व देने का अर्थ है कि आप उसे अपने बराबर ले आये." योगी सरकार से यही सबसे बड़ी ग़लती हुई कि उसने प्रियंका गांधी की उपेक्षा नहीं की, बल्कि उन्हें जबरन रोककर और गिरफ्तार करके उन्हें और ज्यादा ताकतवर बना डाला. और, प्रियंका ने भी इसके जरिये ये साबित कर दिखाया कि राजनीति सिर्फ अवसर या संभावना का ही नहीं,बल्कि वह साहस और प्रतिबद्धता का खेल भी है.
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