चंडीगढ़ की जीत से क्या Arvind Kejriwal बदल देंगे Punjab का सियासी इतिहास?
समाजसेवी अन्ना हजारे (Anna Hazare) के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से पैदा होकर दिल्ली (Delhi) की राजनीति (Politics) में नया इतिहास रचने वाली अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आम आदमी पार्टी (AAP) अगर इस बार पंजाब (Punjab) का भी सियासी इतिहास बदलकर रख दे,तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए. चंडीगढ़ (Chandigarh) नगर निगम के चुनाव-मैदान में पहली बार कूदी आप को जो बड़ी जीत मिली है,उससे केजरीवाल के हौसले तो और बुलंद होंगे ही लेकिन ये कांग्रेस (Congress), अकाली दल (SAD) और बीजेपी (BJP) व कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच हुए गठबंधन के लिये भी खतरे का बड़ा संकेत है.
कहने को चंडीगढ़ केंद्र शासित प्रदेश है लेकिन हक़ीक़त में वहां की तकरीबन 60 फ़ीसदी आबादी का नाता पंजाब से है. उस लिहाज से अगर देखा जाये,तो इन नतीजों ने बता दिया है कि पंजाब के लोगों का मूड कुछ उस तरह के बदलाव करने का दिखता है कि सबको देखा,अब एक बार आप को भी आजमाकर देख लें.
आप की इस जीत को सिर्फ इसलिए ही बड़ी नहीं माना जाना चाहिए कि उसने 35 वार्ड वाले नगर निगम में सबसे अधिक 14 सीटें जीती हैं, बल्कि ये इसलिये भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि उसने पिछले 15 साल से कब्ज़ा जमा कर बैठी बीजेपी से सत्ता छीनी है और मौजूदा मेयर समेत बीजेपी के तमाम दिग्गज नेताओं को हराया है. दरअसल, केजरीवाल ने चंडीगढ़ के इस चुनाव में भी उसी रणनीति को ही दोहराया, जिसका प्रयोग उन्होंने दिल्ली में करके 70 में से 67 सीटें हासिल कर ली थीं.
वहां भी उन्होंने बीजेपी के मेयर व अन्य दिग्गज पार्षदों के खिलाफ ऐसे नये चेहरों को मैदान में उतारा, जिनके जितने की उम्मीद किसी को नहीं थी लेकिन उन्होंने लोगों की ये नब्ज़ समझ ली कि वे बदलाव के मूड में हैं, लिहाज़ा वे नए चेहरे को भी वोट देने से परहेज़ नहीं करेंगे. इसीलिये चंडीगढ़ के अखबारों से जुड़े पत्रकार भी इन नतीजों को चौंकाने वाला ही मान रहे हैं क्योंकि उनका भी ये आकलन था कि लोग बदलाव चाहते हैं, इसलिये वे बीजेपी को हटाकर इस बार कांग्रेस को बहुमत दे सकते हैं लेकिन आम आदमी पार्टी के बारे में किसी राजनीतिक विश्लेषक ने ये नहीं सोचा था कि वो इतना बड़ा उलटफेर कर देगी.
हालांकि, पंजाब की राजनीति की नब्ज समझने वाले कहते हैं कि 2017 के विधानसभा चुनाव में भी आम आदमी पार्टी से लोगों का जुड़ाव था लेकिन फिर भी वह बहुमत पाने में कामयाब नहीं हुई थी. लेकिन अब नगर निगम चुनाव के इन नतीजों से ऐसा लग रहा है कि ये चुनाव कहीं न कहीं पंजाब के लोगों का मूड रिफ्लेक्ट करते हैं, इसलिये अगर आगामी विधानसभा चुनाव में आप सबसे बड़ी ताकत बनकर उभरती है, तो इसमें किसी को अचरज नहीं होना चाहिए.
वैसे भी एबीपी न्यूज़-सी वोटर्स के ताजा सर्वे में आम आदमी पार्टी को 32 प्रतिशत वोटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रुप में उभरते हुए दिखाया गया है. हालांकि सीटें मिलने के अनुमान के मुताबिक वो बहुमत से थोड़ा कम है लेकिन हवा का रुख अगर ऐसा ही रहा, तो फिर उसे बहुमत का आंकड़ा क्रॉस करने से भी कोई रोक नहीं सकता. चूंकि, चंडीगढ़ में आम आदमी पार्टी का ये पहला चुनाव था लेकिन उसने जिस तरह से मेयर और पूर्व मेयर समेत पुराने दिग्गजों को हराया है, वो पंजाब चुनाव से पहले एक बहुत बड़ा संकेत माना जा रहा है. विश्लेषकों के मुताबिक चंडीगढ़ के लोग हमेशा बुद्धिमानीपूर्ण फैसले लेने के लिए जाने जाते हैं और जो चंडीगढ़ में होता है, उसका असर पंजाब के चुनाव पर जरूर पड़ता है.
वरिष्ठ पत्रकार डॉक्टर एसएस श्योराण कहते हैं, ''चंडीगढ़ ,पंजाब के लिहाज से बेहद अहम है क्योंकि सारे मंत्री, पूरी ब्यूरोक्रेसी और जितने भी पंजाब के मास्टरमाइंड हैं, वो सभी चंडीगढ़ में हैं. शहर की 60 फीसदी आबादी पंजाब की है, तो ये समझ लीजिए कि पंजाब की हवा यहीं से बनती है. लोगों ने कांग्रेस को देख लिया, अकाली दल-बीजेपी को भी देख लिया. आम आदमी पार्टी की भले ही कितनी भी आलोचना हो लेकिन दिल्ली का जो शिक्षा, बिजली-पानी और स्वास्थ्य का मॉडल है, उसका असर इस चुनाव पर पड़ा है. जाहिर है कि विधानसभा चुनाव में भी केजरीवाल का दिल्ली मॉडल अपना असर जरुर दिखायेगा. वैसे भी पंजाब के लोग कहीं न कहीं सोच रहे हैं कि एक मौका आम आदमी पार्टी को भी देकर देखा जाये.''
हालांकि, आप के साथ दिक्कत ये भी है कि वो अब तक पंजाब में अपने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का चेहरा तलाश नहीं कर पाई है. लेकिन विश्लेषकों को लगता है कि चेहरे की बजाए इस बार लोग विचारधारा को वोट करेंगे. हो सकता है कि 22 किसान संगठनों की पार्टी संयुक्त समाज मोर्चा के बलवीर सिंह राजेवाल भी केजरीवाल के साथ आ जाएं. हालांकि, आप ने उत्तराखंड चुनाव को लेकर सबसे पहले कर्नल कोठियाल को अपने सीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया है लेकिन पंजाब में हो रही इस देरी के पीछे का मतलब यही है कि केजरीवाल कोई सियासी खिचड़ी पकाने में जुटे हैं. हो सकता है कि आखिर में वे किसी किसान नेता के नाम का ही एलान कर दें.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]