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बिहार में बनने वाली NDA की सरकार में नीतीश कुमार की पहली परीक्षा क्या होगी?

जानकार बता रहे हैं कि वैसे भी पांच साल तक नीतीश सीएम रहने वाले नहीं हैं. दो साल बाद उपराष्ट्रपति उन्हें बनाया जा सकता है. राजनीति में तो एक हफ्ता ही बहुत होता है यहां तो दो साल की बात हो रही है.

तो नीतीश कुमार विधायक दल के नेता चुन लिए गये. यह तो होना ही था. नीतीश कुमार अब चौथी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. इसमें हल्का सा पेंच था लेकिन कुल मिलाकर यह भी होना ही था. नेता और दल हमेशा नारा लगाते हैं......सरकार , फिर एक बार. लेकिन नीतीश कुमार के लिए नारा है नीतीश कुमार, आखिरी बार. यह तय है कि सुशासन बाबू आखिरी बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. या यूं कहा जाए कि गठबंधन की तरफ से. इससे पहले नीतीश कुमार अपने हिसाब से सरकार चलाते रहे हैं, मंत्रियों के चयन और विभागों के बंटवारे में भी उनकी मर्जी चलती रही है. वैसे भी हमारे यहां कहा जाता है कि किसे मंत्री बनाया जाएगा किसे नहीं यह केन्द्र में प्रधानमंत्री का और राज्यों में मुख्यमंत्रियों का पैरोगेटिव होता है. लेकिन क्या बिहार में ऐसा होगा...क्या बिहार में परदे के पीछे से बीजेपी सरकार चलाएगी.....क्या मंत्रिमंडल में बीजेपी के मंत्रियों की संख्या ज्यादा होगी. वैसे कहने को तो कहा जा सकता है कि चूंकि बीजेपी के 74 विधायक जीते हैं और नीतीश के 43 इसलिए स्वभाविक है कि बीजेपी के ही ज्यादा मंत्री होंगे. कुल मिलाकर 15 फीसद के हिसाब से 36 या 37 ही मंत्री बन सकते हैं. लेकिन बात अनुपात की हो रही है. इस खेल में कौन जीतता है यह नीतीश बाबू की पहली परीक्षा होगी.

चिराग पासवान का पेंच अलग से फंसा हुआ है. सभी जानते हैं और अब मानते हैं कि अगर चिराग पासवान बगावत पर नहीं उतरते तो गठबंधन की संख्या 125 नहीं 150 पार होती. यह बात जदयू के नेता भी कह चुके हैं और बीजेपी के नेता भी. चिराग पासवान खुद कह रहे हैं कि उनका काम नीतीश कुमार को निपटाने का था जो कर दिखाया. वैसे चिराग पासवान नीतीश कुमार को निपटा तो नहीं पाए अलबत्ता सियासी रुप से सिमटा जरूर दिया. चिराग अभी भी चौड़े धाड़े कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के वह मुरीद हैं, उनकी मेहरबानी से एनडीए में हैं और आगे भी बने रहेंगे.

आपको याद होगा कि खुद को हनुमान बताते हुए मोदी को राम कहा था. तो लंका जीत के बाद भी हनुमान अपने प्रभु की शरण में हैं और सेवा करने के इच्छुक हैं. अब बड़ा सवाल उठता है कि क्या बीजेपी चिराग पासवान को अपने साथ रखेगी....अगर रखेगी तो क्या नीतीश कुमार ऐसा होने देंगे...सवाल यह भी उठता है कि क्या नीतीश कुमार के पास अब इतना सियासी माद्दा रखा है कि वह बीजेपी को मजबूर कर दें कि वह चिराग से पिंड छुड़ा ले.

कायदे से तो करारी हार के बाद चिराग को खुद ही अलग हो जाना चाहिए. उनका एक ही मकसद पूरा हुआ है. दूसरा मकसद था कि खुद की इतनी सीटें आएं कि त्रिशंकु विधानसभा की हालत बने और वह बीजेपी के साथ इस शर्त पर जाएं कि नीतीश कुमार सीएम नहीं होंगे. लेकिन ऐसा हो नहीं सका है. जानकार कहते हैं कि चिराग को एनडीए से अलग करने की कोई हड़बड़ी बीजेपी में फिलहाल नहीं दिखती. हो सकता है कि बंगाल चुनाव के बाद ऐसा कुछ हो. तब तक नीतीश क्या करेंगे. देखना दिलचस्प रहेगा.

जानकार बता रहे हैं कि वैसे भी पांच साल तक नीतीश सीएम रहने वाले नहीं हैं. दो साल बाद उपराष्ट्रपति उन्हें बनाया जा सकता है. राजनीति में तो एक हफ्ता ही बहुत होता है यहां तो दो साल की बात हो रही है. लेकिन अगर ऐसा होता है तो क्या नीतीश कुमार रिटायरमेंट प्लान को स्वीकारेंगे या यूं कहा जाए कि कहीं अभी से तो इस पर किसी तरह की सहमति बन नहीं चुकी है क्या.....वैसे कुछ जानकारों का कहना है कि नीतीश के पास विपक्ष की राजनीति करने का एक अच्छा मौका था. पूरा देश मोदी के विकल्प की तलाश रहा है. (हम यह नहीं कह रहे कि देश मोदी को हटाना चाहता लेकिन कम से कम देश एक मजबूत विपक्ष तो चाहता ही है और मजबूत विपक्ष का मतलब एक मजबूत चेहरे से है).

कुछ का कहना है कि पल्टीमार नीतीश के लिए विपक्ष में कोई जगह बची नहीं थी तो कुछ कहते हैं कि नीतीश कुमार की छवि अभी भी बहुत से विपक्षी नेताओं से अच्छी है. खैर यह मौका नीतीश गंवा चुके हैं.

हिंदी के एक बड़े कवि हुए हैं श्रीकांत वर्मा. उन्होंने मेरा भारत महान नारा राजीवी गांधी के समय डिजाइन किया था खैर , उन्होंने  मगध को लेकर सीरीज में कविताएं लिखी थी. एक कविता का अंश हैं ...ये वह मगध नहीं है जिसे तुम मेरी तरह तलाश रहे हों, यह वह मगध है जिसे तुम मेरी तरह गंवा चुके हों. यही कहानी नीतीश पर भी लागू होती है.

वैसे युवा काल में नीतीश खुद कविताएं लिखते थे. मुज्जफरपुर से छपने वाली लघु पत्रिका पुरुष में उनकी कविताएं छपती रही थी. यह बात 70 के दशक की है. कुछ का कहना है कि नीतीश को कविताएं लिखनी चाहिए और हो सके तो आत्मकथा पर काम करना शुरु कर देना चाहिए. वैसे भी बिहार का जितना विकास वह कर सकते थे कर चुके हैं.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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