UP Elections 2022: गोरखपुर से योगी को उतारकर बीजेपी बचा लेगी पूर्वांचल का मजबूत किला?
UP Assembly Election 2022: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को उनकी कर्मभूमि गोरखपुर से ही चुनाव मैदान में उतारकर बीजेपी ने क्या एक साथ कई समीकरण साधने की कोशिश की है? ये सवाल इसलिये अहम है कि बीजेपी के लिए अयोध्या, काशी और मथुरा से ज्यादा पूर्वांचल के 15 जिलों के सियासी समीकरण को अपने पक्ष में करना ज्यादा जरुरी है जहां तकरीबन 130 विधानसभा सीटें हैं.
हालांकि पांच साल पहले भी पूर्वांचल की जनता ने उम्मीद से ज्यादा सीटें देकर योगी की झोली भर दी थी लेकिन इस बार वहां बीजेपी के विरोधी दल ज्यादा मजबूती से सक्रिय हैं, इसलिये पार्टी ने हर तरह के नफे-नुकसान का आकलन करने के बाद ही योगी को गोरखपुर से चुनाव लड़ाने का फैसला किया है.
पार्टी नेताओं की सोच थी कि अयोध्या, मथुरा और काशी से तो जिसे भी उम्मीदवार बनाया जायेगा, वह बीजेपी के नाम पर जीत ही जायेगा लेकिन पूर्वांचल के मजबूत किले को बचाये रखने के लिए जरुरी है कि योगी को गोरखपुर से लड़ाकर इन जिलों में पार्टी की स्थिति और मजबूत की जाए,जहां सपा बड़ी ताकत बनकर उभर रही है.
दरअसल, उत्तर प्रदेश की राजनीति में पूर्वांचल का सबसे अधिक महत्व है और कहते भी हैं कि जिसने पूर्वांचल जीत लिया, समझो कि उसने यूपी फतह कर लिया. इसी क्षेत्र में पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों का वर्चस्व है, जिनका मजबूत वोट बैंक पाने के लिए ही पिछले चुनाव में बीजेपी ने अपना दल (सोनेलाल) और ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे क्षेत्रीय दलों से गठबंधन किया था. लेकिन इस बार राजभर ने बीजेपी का दामन छोड़कर सपा की साइकिल की सवारी कर ली. रही सही कसर स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी सपा में जाकर पूरी कर दी, जिनका गैर यादव ओबीसी वर्ग में खासा प्रभाव समझा जाता है.
इसीलिये बीजेपी ने इन दोनों नेताओं के असर का तोड़ निकालने के लिए ही योगी को उनके अपने पुराने गढ़ से ही लड़ाने की रणनीति को आगे बढ़ाया है. पूर्वांचल की राजनीति को करीब से जानने वाले विश्लेषक मानते हैं कि योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर से चुनाव लड़ने का असर यह होगा कि पूर्वांचल के ज्यादातर जिले उनके चुनाव लड़ने के नाम से ही 'बीजेपी की टोन' के हिसाब से सेट हो जाएंगे. इसका बड़ा सियासी फायदा ये होगा कि बीजेपी को सिर्फ गोरखपुर ही नहीं बल्कि संतकबीर नगर, देवरिया, बस्ती, महाराजगंज, कुशीनगर, आजमगढ़, मऊ, बलिया, अंबेडकर नगर और सिद्धार्थनगर जैसे जिलों में भी और मजबूती मिलेगी. उस लिहाज से देखें,तो योगी आदित्यनाथ गोरखपुर मंडल, आजमगढ़ मंडल और बस्ती मंडल की सभी विधानसभाओं में सिर्फ चुनाव लड़ने के नाम पर ही अपना असर डालेंगे.
राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि आजमगढ़ और मऊ में जिस तरीके से समाजवादी पार्टी, बसपा, सुभासपा समेत अन्य जातिगत समीकरणों को साधते हुए दूसरे राजनीतिक संगठन हावी होना चाह रहे थे, उससे पूर्वांचल में योगी आदित्यनाथ को चुनाव लड़ाकर बीजेपी ने सबसे सही गेंद डाली है. सब जानते हैं कि आजमगढ़ समाजवादी पार्टी का बड़ा गढ़ रहा है इसलिए योगी आदित्यनाथ के गोरखपुर से चुनाव लड़ने का असर इस बार वहां पर भी पड़ेगा. इसके अलावा मऊ और गाजीपुर के साथ ही निषाद, केवट समेत और कई अन्य पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों के इलाकों में भी योगी आदित्यनाथ का चुनाव लड़ने वाला कार्ड सटीक बैठेगा.
वैसे राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक पूर्वांचल के 28 जिलों में कुल 164 सीटें हैं, जो किसी भी पार्टी के सत्ता में आने की किस्मत का फैसला करती आई हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को यहां से सर्वाधिक 115 सीटें मिली थीं, जिसके बूते पर ही योगी आदित्यनाथ को यूपी का सिंहासन मिला था. वैसे 2017 के चुनाव में भी बीजेपी को ये उम्मीद नहीं थी कि पूर्वांचल के लोग इतनी सारी सीटें देकर उसकी झोली भर देंगे. उसकी वजह भी थी क्योंकि उससे पहले तक पूर्वांचल को समाजवादी पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता था. लेकिन योगी की ओजस्विता और बीजेपी की रणनीति ने सपा के इस किले को नेस्तनाबूद करके रख दिया था.
दरअसल 2017 के चुनावी इतिहास पर अगर गौर करें, तो तब बीजेपी ने पूर्वांचल में प्रभावी क्षेत्रीय दल सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और अपना दल (सोनेलाल) के साथ गठबंधन करके ही बड़ी जीत हासिल की थी. तब पूर्वांचल की जनता ने सपा को महज़ 17 सीटें देकर उसका अहंकार ख़त्म कर दिया. इसी तरह साल 2007 के चुनाव में बीएसपी का भी यहां खासा जनाधार था और इसी पूर्वांचल से मिली सीटों के बूते पर ही मायावती सूबे की मुख्यमंत्री बनी थीं लेकिन पिछले चुनाव में वह भी सिर्फ 14 सीटों पर ही सिमट गई थी जबकि कांग्रेस को दो और अन्य को 16 सीटें मिली थीं.
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