महाराष्ट्र में शिव सेना की अगुवाई वाली सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के कद्दावर नेता देवेंद्र फडणवीस को कथित फोन टैपिंग मामले में फंसाने की कोशिश की शुरुआत करके क्या एक नई आफत मोल ले ली है या फ़िर ये एनसीपी नेता नवाब मलिक की गिरफ्तारी का जवाब है? हालांकि फडणवीस से मुंबई पुलिस ने अभी सिर्फ पूछताछ ही की है, लेकिन सियासी गलियारों में सवाल उठ रहा है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने ऐसी सियासी आग की चिंगारी आखिर क्यों भड़का दी है, जिसकी तपिश लगते ही दिल्ली दरबार चुप नहीं बैठने वाला?
बीजेपी इसे बदले की भावना से की गई कार्रवाई बता रही है तो शिव सेना ने कहा है कि कानून सबके लिए बराबर है, इसलिये किसी एक केस में पुलिस की पूछताछ पर इतनी हायतौबा आखिर क्यों मच रही है. लेकिन महाराष्ट्र प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने ये ऐलान करके पूरे मामले को नया मोड़ दे दिया है. उनका दावा है कि फडणवीस अगले एक-दो दिन में राज्य सरकार के खिलाफ और भी बड़ा धमाका करने वाले हैं.
वैसे तो मनी लॉन्ड्रिंग केस में केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी द्वारा राज्य सरकार के मंत्री नवाब मलिक की हुई गिरफ्तारी के वक़्त से ही उद्धव ठाकरे सरकार और केंद्र की मोदी सरकार के बीच रिश्तों की कड़वाहट अपने उफ़ान पर आ गई थी, लेकिन रविवार को मुंबई पुलिस की साइबर सेल द्वारा फडणवीस से दो घंटे तक हुई पूछताछ ने दोनों के रिश्तों को लेकर भड़की इस आग में घी डालने का काम कर दिया है. हालांकि शिव सेना के मुखर प्रवक्ता संजय राऊत कई बार ये आशंका जता चुके हैं कि केंद्र महाराष्ट्र सरकार को अस्थिर करके राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना चाहता है. लेकिन ,महाराष्ट्र की सियासी नब्ज़ समझने वाले जानकारों का कहना है कि फडणवीस से पूछताछ को उस मामले से जुड़ी जांच की औपचारिक जरुरत समझा जाना चाहिए, लेकिन उन्हें इस केस में आरोपी बनाकर अगर पुलिस गिरफ्तार करती है, तब हालात बिगड़ना तय हैस क्योंकि बीजेपी एनसीपी की तरह सके चुप नहीं रहने वाली है. बल्कि वो पूरे प्रदेश में सड़कों पर उतरकर ऐसा बवाल खड़ा कर देगी, जिसे संभाल पाना उद्धव सरकार के बूते से बाहर हो जायेगा. उस हालत में केंद्र के पास अपने अधिकार का इस्तेमाल करने की जायज और वैधानिक वजह होगी. तब वह राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करने से पीछे नहीं हटेगी. हालांकि सियासी जानकारों की नजर में उद्धव ठाकरे राजनीति के इतने कच्चे खिलाड़ी भी नहीं हैं कि वे अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला कोई ऐसा फैसला ले लें, जिससे केंद्र को वहां राष्ट्रपति शासन लगाने का बहाना मिल जाये. उनके मुताबिक वे केंद्र के साथ एक तरह से दबाव की राजनीति खेल रहे हैं कि अगर केंद्रीय एजेंसियां उनकी सरकार के मंत्रियों या पार्टी नेताओं के साथ कुछ कर सकती हैं, तो उसका जवाब देने के लिए उनके पास भी बहुत कुछ है.
दरअसल,ये सारा मामला राज्य में ट्रांसफर-पोस्टिंग में हुए भ्रष्टाचार को लेकर हुई कथित फोन टैपिंग से जुड़ा है, जिसे पूर्व सीएम फडणवीस ने उजागर किया था. उसी मामले में केस दर्ज होने के बाद रविवार को मुंबई पुलिस की साइबर सेल के अधिकारी फडणवीस से पूछताछ के लिए उनके बंगले पहुंचे थे. पूछताछ के बाद पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने मीडिया से कहा, “राज्य में घोटाला हुआ था. मैंने इस घोटाले की सारी जानकारी केंद्रीय गृह सचिव को दे दी थी. हाईकोर्ट ने सीबीआई को घोटाले की जांच करने का निर्देश दिया था और इसे सुप्रीम कोर्ट ने सील कर दिया था. यानी यह एक घोटाला साबित होता है. सरकार ने इस घोटाले की जांच क्यों नहीं की? छह महीने तक रिपोर्ट को दबा कर रखा गया था. अगर मैंने इस घोटाले का पर्दाफाश न किया होता तो करोड़ों रुपये का घोटाला दबा दिया गया होता.”
शिवसेना सांसद संजय राउत ने इस मामले पर बीजेपी के बवाल को नौटंकी करार दिया है. उन्होंने ट्वीट कर सवाल किया, ‘‘क्यों कुछ लोग और राजनीतिक दल स्वयं को कानून से ऊपर समझते हैं?’’ शिवसेना के प्रमुख प्रवक्ता ने कहा, ‘‘केंद्रीय एजेंसियों ने महाराष्ट्र के कई मंत्रियों और जन प्रतिनिधियों को राजनीतिक बदले की वजह से जांच के लिए समन किया और वे उन एजेंसियों के सामने पेश भी हुए....किसी को भी लोकतंत्र में विशेषाधिकार नहीं है. कानून के समक्ष सभी समान है. फिर यह नौटंकी क्यों?’’ लेकिन फडणवीस ने अपनी सफाई में कहा है कि न तो उन्होंने आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम का उल्लंघन किया और न ही वे इस मामले के आरोपी हैं. उनके मुताबिक यदि मुझ पर कुछ लागू होता है तो वह व्हिसल ब्लोअर अधिनियम है ,जो अवश्य ही लागू होना चाहिए. फडणवीस का सारा जोर इस बात पर है कि उन्होंने ये घोटाला उजागर करके व्हिसल ब्लोअर की भूमिका निभाई है और इस कानून के तहत उनकी गिरफ्तारी हो ही नहीं सकती. लेकिन अब बड़ा सवाल ये है कि इस सियासी रंजिश का अंजाम क्या होगा? आग बुझेगी या फिर और भी ज्यादा भड़केगी?
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