क्या G20 समिट के लिए पुतिन आएंगे भारत, ऐसा हुआ तो भारतीय विदेश नीति के लिए होगी बड़ी सफलता
बतौर अध्यक्ष भारत जी 20 शिखर सम्मेलन की तैयारियों को अंतिम रूप देने में जुटा है. जी 20 समिट 9 और 10 सितंबर को नई दिल्ली में होना है. इस बैठक के ऊपर पूरी दुनिया की निगाह टिकी है. ये भारत और भारतीय विदेश नीति के लिए भी एक बड़ा मौका है.
इस बैठक लिए भारत की ओर से सभी सदस्य देशों को निमंत्रण भेज दिया गया है. भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची जानकारी दे चुके हैं कि 18वें जी 20 समिट के लिए सदस्य देशों के साथ ही मेहमान देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने आने की पुष्टि कर दी है.
क्या पुतिन सितंबर में आएंगे भारत?
इस बीच एक बड़ा सवाल हर किसी के जेहन में उठ रहा है कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन जी 20 समिट में हिस्सा लेने के लिए सितंबर में नई दिल्ली आएंगे या नहीं. दरअसल ये सवाल उठता नहीं क्योंकि सामान्य हालात में जी 20 के सालाना शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष या सरकारी प्रमुख आते ही हैं. लेकिन इस बार हालात अलग है. फरवरी 2022 में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से वैश्विक कूटनीति में एक अलग दौर शुरू हो चुका है.
वैश्विक कूटनीति में एक अलग दौर
युद्ध की वजह से दुनिया दो खेमे में बंटी नज़र आ रही है. एक खेमा रूस से नजदीकी बढ़ाने में लगा है. इसमें चीन जैसे देश शामिल हैं. वहीं दूसरा खेमा यूक्रेन के समर्थन में अमेरिका और कई पश्चिमी देशों के साथ सुर मिलाने में लगा है. इसके अलावा भारत जैसे देश भी हैं, जो किसी गुट का हिस्सा बनने से परहेज कर रहे हैं.
वैश्विक कूटनीति में इस तरह के ध्रुवीकरण के दौर में भी भारत दुनिया के सबसे ताकतवर आर्थिक समूह जी 20 की अध्यक्षता की जिम्मेदारी काफी बेहतर और संतुलित तरीके से निभा रहा है. इस बीच रूस के राष्ट्रपति पुतिन के जी20 शिखर सम्मेलन में साक्षात शामिल होने के लिए भारत जो भी करना होगा, वो करेगा. अगर ऐसा हुआ तो ये भारतीय कूटनीति की बड़ी जीत भी मानी जाएगी. ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है कि जब से यूक्रेन से साथ रूस युद्ध में उलझा है, पुतिन कई महत्वपूर्ण बैठकों में शामिल नहीं हो पाए हैं.
बाली में हुई बैठक में नहीं आए थे पुतिन
पिछली बार जी 20 का शिखर सम्मेलन नवंबर 2022 में इंडोनेशिया के बाली में हुआ था. उस बैठक में भी पुतिन शामिल होने के लिए इंडोनेशिया नहीं आए थे. यूक्रूेन यूद्ध का ही असर था कि रूस की ओर से बाली की जी 20 बैठक में पुतिन की बजाय वहां के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ ने हिस्सा लिया था.
ब्रिक्स समिट में भी नहीं जाएंगे दक्षिण अफ्रीका
ताजा मामला ब्रिक्स समिट का है. ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका की सदस्यता वाले समूह ब्रिक्स का 15वां समिट 22 से 24 अगस्त को होना है. ब्रिक्स का ये सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका में हो रहा है. ब्रिक्स के इस सालाना सम्मेलन में भी सदस्य देशों के राष्ट्र प्रमुख या सरकारी प्रमुख शामिल होते आए हैं. लेकिन दक्षिण अफ्रीका में होने जा रही ब्रिक्स की इस बैठक में शामिल होने रूस के राष्ट्रपति पुतिन नहीं आ रहे हैं. दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा के ऑफिस की ओर से इस बात की जानकारी दे दी गई है कि पुतिन ब्रिक्स समिट के लिए जोहान्सबर्ग नहीं आ रहे हैं. पुतिन ब्रिक्स समिट में वर्चुअली शामिल होंगे.
हालांकि कारण चाहे जो भी हो दक्षिण अफ्रीका की ओर से कहा जा रहा है कि ब्रिक्स सम्मेलन को खतरे में डालने से बचाने के लिए पुतिन ने ये फैसला किया है. पुतिन पर इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का वारंट पहले से जारी है और दक्षिण अफ्रीका इस कोर्ट का सदस्य भी है. ऐसे में दक्षिण अफ्रीका को दुविधा से बचाने के लिए क्रेमलिन की ओर से ये फैसला किया गया है. दक्षिण अफ्रीका के अधिकारियों की ओर पुतिन के नहीं आने को लेकर इस तरह का कारण दिया जा रहा है.
रूस ब्रिक्स को काफी अहमियत देता रहा है
ब्रिक्स के सम्मेलन में पुतिन का नहीं आना वैश्विक कूटनीति के लिहाज से बड़ी बात है. दरअसल ब्रिक्स में जो 5 सदस्य हैं वो सभी जी 20 के भी सदस्य है. वैश्विक व्यवस्था में अमेरिका और पश्चिमी देशों के दबदबे के काट के तौर पर ब्रिक्स को देखा जाता रहा है. ऐसे में पुतिन के इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए दक्षिण अफ्रीका नहीं आना, ये बड़ा कूटनीतिक मायने रखता है. रूस ब्रिक्स समूह को काफी अहमियत देता रहा है. इस समूह में जो भी सदस्य देश हैं, उनमें से चीन के साथ रूस की मित्रता यूक्रेन युद्ध के बाद और प्रगाढ़ हुई है.
भारत और रूस पुराने और ऐतिहासिक साझेदार
ब्रिक्स समिट में शामिल होने से इनकार करने के बाद जी 20 समिट को लेकर भी बातें होने लगी है. भारत और रूस पुराने और ऐतिहासिक साझेदार रहे हैं. दोनों देशों की दोस्ती की मिसाल वैश्विक कूटनीति में कई दशकों से दी जाती रही है. यूक्रेन युद्ध पर भारत ने कोई ऐसा रुख भी नहीं दिखाया है, जिससे खुलकर ये लगे कि वो अमेरिका और पश्चिमी देशों के पक्ष में है. हालांकि ब्रिक्स समिट के लिए पुतिन के इनकार के बाद भारत की चिंता जरूर बढ़ी है, लेकिन अभी ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि पुतिन सितंबर में नई दिल्ली नई आएंगे. रूस की ओर से भी नहीं आने के बार में अब तक कुछ नहीं कहा गया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने भी यही बात कही है कि सभी ने आने की पुष्टि की है और किसी ख़ास देश के प्रमुख के नहीं आने को लेकर कोई कम्युनिकेशन नहीं आया है.
एससीओ का शिखर सम्मेलन वर्चुअल हुआ था
ये बात जरूर है कि भारत को इस महीने 4 जुलाई को शंघाई सहयोग संगठन की सालाना बैठक को वर्चुअली करना पड़ा था. समिट को वर्चुअली करने के पीछे का सबसे बड़ा कारण यही माना गया था कि पुतिन आने को तैयार नहीं थे.
शंघाई सहयोग संगठन में फिलहाल 9 सदस्य हैं. इनमें रूस, भारत, चीन और पाकिस्तान के साथ ही 4 मध्य एशियाई देश कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और अरब देश ईरान शामिल हैं. ईरान को भारत की अध्यक्षता में ही हुई सालाना बैठक में सदस्यता देने की घोषणा की गई थी. ये संगठन काफी प्रभावकारी माना जाता है. एससीओ के भीतर दुनिया की 40% से अधिक आबादी रहती है. इस समूह में आने वाले देश मिलकर यूरेशिया के 60% से ज्यादा का एरिया कवर करते हैं. वैश्विक जीडीपी में इस समूह का योगदान 20 फीसदी से भी ज्यादा है. ऐसे में एससीओ के सामूहिक फैसलों का निश्चित तौर से वैश्विक प्रभाव पड़ता है.
एससीओ का भारत पूर्ण सदस्य 2017 में बना था. उसके बाद ये पहला मौका था जब भारत इस समूह के सालाना शिखर सम्मेलन की मेजबानी कर रहा था. हालांकि रूस-यूक्रेन युद्ध की छाया इस सम्मेलन पर भी पड़ी और इसे वर्चुअल तरीके से करना पड़ा.
2022 में एससीओ की बैठक में शामिल हुए थे पुतिन
पिछली बार शंघाई सहयोग संगठन का सालाना शिखर सम्मेलन उज्बेकिस्तान के समरक़न्द में 15-16 सितंबर 2022 को हुआ था. उस सम्मेलन में शामिल होने के लिए रूस के राष्ट्रपति पुतिन उज्बेकिस्तान आए थे, जबकि यूक्रेन के साथ रूस का युद्ध पीक पर था. उस वक्त सम्मेलन से इतर भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन के बीच 16 सितंबर को द्विपक्षीय वार्ता भी हुई थी. इसमें दोनों नेताओं ने एक-दूसरे के साथ संपर्क में रहने पर सहमति भी जताई थी.
समरक़न्द में जब दोनों नेताओं की मुलाकात हुई थी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुतिन से ये कहा था कि आज का युग युद्ध का नहीं है. इसी बात को कई बार प्रधानमंत्री दोहरा चुके हैं और हमेशा से ही संवाद और डिप्लोमेसी को समस्या का समाधान बताया है. जब इस साल भारत को एससीओ समिट वर्चुअली करना पड़ा तो कई लोगों ने ये तर्क दिया कि पुतिन के रवैये की वजह से ऐसा करना पड़ा है. हालांकि वर्चुअल बैठक करने का फैसला सामूहिक था. कुछ लोगों ने ये भी कहा कि जब पुतिन उज्बेकिस्तान आ सकते हैं तो भारत क्यों नहीं.
जी 20 का भारत के लिए है ज्यादा महत्व
दरअसल भारत के लिए जी 20 और शंघाई सहयोग संगठन दोनों समूह का महत्व है. चूंकि शंघाई सहयोग संगठन में भारत काफी बाद में पूर्ण सदस्य बना और समूह के अस्तित्व से ही इसमें चीन का वर्चस्व ज्यादा रहा है. वहीं जी 20 से भारत का जुड़ाव शुरू से काफी मजबूत रहा है. ऐसे भी शंघाई सहयोग संगठन की तुलना में जी 20 का वैश्विक प्रभाव काफी ज्यादा है. इस समूह में दुनिया के वो तमाम देश शामिल हैं, जिनकी वैश्विक आर्थिक नीति निर्धारण में सबसे ज्यादा भूमिका होती है. वैश्विक जीडीपी का 85% हिस्सा इन देशों से आता है. वैश्विक व्यापार का 75 फीसदी से ज्यादा हिस्सा इन देशों से जुड़ा है और दुनिया की करीब दो-तिहाई आबादी इन्हीं देशों में रहती है.
भले ही शंघाई सहयोग संगठन का शिखर सम्मेलन भारत ने वर्चुअली आयोजित किया, लेकिन जी 20 के महत्व को देखते हुए भारत चाहेगा कि सितंबर की बैठक में शामिल होने के लिए सदस्य देशों के सभी राष्ट्र प्रमुख जरूर नई दिल्ली आएं. इसमें पुतिन के शामिल होने को लेकर भारत की ज्यादा दिलचस्पी होगी. इसके पीछे कई कारण हैं .
भारत-रूस हमेशा एक-दूसरे के साथ रहे हैं
रूस के साथ भारत का ऐतिहासिक संबंध रहा है. अतीत में जब-जब भारत को जरूरत पड़ी है, तो रूस एक मजबूत दोस्त की तरह खड़ा मिला है. वहीं भारत ने भी ऐसा कोई मौका नहीं आने दिया है, जिससे लगे कि भारतीय विदेश नीति के लिए रूस की अहमियत कम हो रही है. यूक्रेन के साथ युद्ध से रूस की अर्थव्यवस्था पर काफी दबाव पड़ रहा है. अमेरिका और पश्चिमी देशों के तमाम दबाव के बावजूद भारत ने संकट की इस घड़ी में रूसी अर्थव्यवस्था की आगे बढ़कर मदद की है. पश्चिमी देशों के तमाम प्रतिबंधों के बावजूद भारत ने पिछले एक साल में रूस से बड़े पैमाने पर कच्चे तेल को खरीदा है, जिससे रूस के युद्ध पर हो रहे भारी खर्चे के दबाव से बाहर निकलने में मदद भी मिली है.
क्या अमेरिका से बढ़ती साझेदारी से नाराज है रूस?
हालांकि ये भी बात है कि इस दौरान भारत और अमेरिका के संबंधों को भी नया आयाम मिला है. अतीत की तरह ही रूस के लिए अमेरिका फिलहाल सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी है. इतना तक कहा जा रहा है कि यूक्रेन के बहाने अमेरिका अप्रत्यक्ष तौर से रूस से युद्ध लड़ रहा है. ऐसे में अमेरिका से भारत की बढ़ती नजदीकियों को लेकर रूस की नाराजगी से जुड़ी बातों पर चर्चा भी तेज हुई है.
पिछले ही महीने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की पहली राजकीय यात्रा पर गए थे. इस दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ाने के लिए सहमति बनी थी. दोनों देशों के बीच दो महत्वपूर्ण समझौते भी हुए थे. इनमें जीई एयरोस्पेस और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स के बीच जीई 14 इंजन के उत्पादन जुड़े समझौते के साथ ही ऊंचाई वाले मानव रहित विमान (UAV) की खरीद और उनकी असेंबलिंग से जुड़ा सौदा शामिल है.
रूस अभी भी भारत का है सबसे बड़ा रक्षा साझेदार
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार के अलावा रक्षा सहयोग में हाल फिलहाल के सालों में इजाफा देखने को मिला है. भारत के लिए लंबे वक्त से रूस सबसे भरोसेमंद और सबसे बड़ा रक्षा साझेदार रहा है. अभी भी बाहर से पूरा होने वाली रक्षा जरूरतों का करीब 50 फीसदी हिस्से के लिए हम रूस पर निर्भर हैं. अमेरिका से भारत के बढ़ते रक्षा सहयोग पर रूस की भी नजर है.
पुतिन के आने से दुनिया को जाएगा संदेश
अब अगर भारत जी 20 समिट में शामिल होने के लिए पुतिन को मना लेता है, तो ये पूरी दुनिया के लिए एक संदेश होगा कि रूस अभी भी भारत का सबसे अच्छा दोस्त है. भले ही भारत ने खुलकर यूक्रेन युद्ध पर रूस की आलोचना नहीं की है, लेकिन भारत की ओर से उस युद्ध को रोकने के लिए बार-बार संवाद और डिप्लोमेसी पर ज़ोर देना भी शायद रूस को अच्छा नहीं लग रहा हो, विदेशों में इस तरह की भी चर्चा चल रही है. अगर पुतिन सितंबर में दिल्ली आते हैं, तो वैश्विक चर्चा के इस विमर्श पर भी पूर्ण विराम लग जाएगा.
विदेश मंत्री के बयान का कूटनीतिक महत्व
भारत इसकी पूरी कोशिश करेगा कि पुतिन सितंबर में दिल्ली आएं. भारत कोशिश कर भी रहा है, भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर के हालिया बयान से भी ये जाहिर होता है. मौका था नई दिल्ली में भारत-जापान फोरम की बैठक का. जापान के विदेश मंत्री योशिमासा हयाशी की मौजूदगी में 27 जुलाई को विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत के साथ रक्षा सहयोग में अमेरिका की हिचकिचाहट को लेकर एक बयान दिया. उन्होंने कहा कि भारत को ये कभी दिक्कत नहीं रही है कि वो अमेरिका से हथियार या दूसरे रक्षा साजो-सामान खरीदे. जयशंकर ने आगे कहा कि ये अमेरिका है जो पिछले कई साल से भारत को हथियार और रक्षा साजो-सामान देने में हिचकिचाता रहा है. इस दौरान भारतीय विदेश मंत्री ने हर सेक्टर में सहयोग के लिए जापान की जमकर तारीफ की.
विदेश मंत्री एस जयशंकर के इस बयान में बहुत कुछ छिपा है. भले ही ये जापान के साथ सहयोग के संदर्भ में की गई टिप्पणी थी, लेकिन इसके जरिए वे ये भी मैसेज देना चाहते थे कि अमेरिका चाहे जितना भी भारत के साथ संबंधों को मजबूत कर ले, भारत के लिए हमेशा ही शक की गुंजाइश बनी रहेगी. इसके जरिए एक और संदेश था कि भारत के लिए रूस, जापान जैसे पुराने दोस्त अभी भी ज्यादा मायने रखते हैं. विदेश मंत्री के बयान को सितंबर में पुतिन के भारत आने की पुष्टि के किए जा रहे कूटनीतिक प्रयासों के संदर्भ में भी देखे जाने की जरूरत है.
अगर पुतिन ब्रिक्स समिट में शामिल होने के लिए दक्षिण अफ्रीका नहीं जा रहे हैं, तो उससे ये निष्कर्ष निकाला नहीं जा सकता है कि पुतिन सितंबर में भारत भी नहीं आएंगे. दक्षिण अफ्रीका के विपरीत भारत ऐसे भी इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का सदस्य नहीं है.
यूक्रेन से युद्ध के बाद पुतिन का विदेश दौरा कम
अगर भारत जी 20 शिखर सम्मेलन के लिए पुतिन को दिल्ली बुलाने में सफल हो जाता है, तो ये इस लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण होगा कि पुतिन यूक्रेन युद्ध के बाद बहुत ही कम विदेशी यात्रा पर गए हैं. इसके साथ ही यूक्रेन युद्ध को लेकर पुतिन से नाराज चल रहे अमेरिका और यूरोप के देश फ्रांस, जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम और इटली के राष्ट्र प्रमुख के सामने रूस के राष्ट्रपति की मौजूदगी को मुमकिन बनाने का श्रेय भी भारत को ही जाएगा. ये भारतीय विदेश नीति और भारतीय कूटनीति की बड़ी सफलता मानी जाएगी.
बतौर जी 20 अध्यक्ष भारत का बढ़ेगा प्रभाव
बतौर अध्यक्ष भारत की पूरी कोशिश रही है कि वो किसी देश के निजी हितों की बजाय जी 20 के मंच को वैश्विक हितों से जोड़ पाए. इस समूह के जरिए भारत ने उन देशों की आवाज को भी महत्व दिया है, जो ग्लोबल साउथ की कैटेगरी में आते हैं. बतौर जी 20 अध्यक्ष भारत गरीब और अल्प विकसित देशों की आवाज भी बनकर उभरा है. इसी की बानगी है कि भारत यूरोपीय यूनियन की तर्ज पर अफ्रीकन यूनियन को भी जी 20 का पूर्ण सदस्य बनाना चाहता है और इसके लिए सभी सदस्य देशों के बीच सर्वसम्मति बनाने की कोशिशों में भी जुटा है. भारत को पूरा भरोसा है कि सितंबर में जी 20 समिट के दौरान इस प्रस्ताव पर सभी सदस्य एकमत होंगे और ये पूरी वैश्विक व्यवस्था के लिए ऐतिहासिक मौका बन सकता है.
बहुध्रुवीय दुनिया बनाने के पक्ष में भारत
इसके साथ ही भारत ने अपनी विदेश नीति के जरिए ये भी दिखाया है कि दुनिया की भलाई दो ध्रुवीय होने में नहीं, बल्कि बहुध्रुवीय होने में है और इस व्यवस्था को सुनिश्चित करने में भारत की भूमिका भविष्य में काफी महत्वपूर्ण होने वाली है. पुतिन का जी 20 समिट में भारत आकर शामिल होना इस नजरिए भी मायने रखता है.
इसके जरिए भारत के पास दुनिया को ये भी दिखाने का मौका होगा कि चाहे वैश्विक कूटनीति में किसी भी तरह की खेमेबाजी चल रही हो, वो बिना किसी गुट का हिस्सा बने भी अपने पुराने मित्र देशों के साथ संबंधों को मजबूती के साथ आगे ले जाने में सक्षम है. क्योंकि पुतिन के भारत आने और न आने को लेकर अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों की निगाहें टिकी है. ये भारत-रूस दोस्ती के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है.
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