क्या भारत अब रुस व ईरान के साथ मिलकर करेगा तालिबान पर कंट्रोल?
तालिबान व पाकिस्तान की सांठगांठ और इसमें चीन का सहयोग भारत के लिए नई चुनौतियां तो सामने लेकर आ रहा है कि लेकिन थोड़ी तसल्ली की बात ये है कि रुस के बाद अब ईरान ने भी तालिबानी सरकार के प्रति अपनी तल्खी दिखानी शुरु कर दी है. इसलिये वैश्विक कूटनीति के जानकार मानते हैं कि भारत को अब रुस व ईरान के साथ मिलकर तालिबान को कंट्रोल करने की रणनीति पर काम करना होगा.
तालिबान की सरकार के प्रति ईरान के गुस्से को इसी से समझा जा सकता है कि वहां के नये विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुल्लाह ने तालिबानी सरकार के विदेश मंत्री को फ़ोन करने की बजाय अफगानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई से चर्चा करके अपनी चिंता का इज़हार किया. दरअसल, भारत की तरह ही ईरान भी ये चाहता था कि अफगानिस्तान में एक ऐसी समावेशी सरकार बने जिसमें सभी वर्गों की भागीदारी हो जो वादा तालिबान ने पूरा नहीं किया. इसलिये उसका सारा जोर इसी पर है कि अगले छह महीने में वहां ऐसी सरकार बनवाने के लिए अन्य देशों के साथ मिलकर दबाव डाला जाए.
वर्चुल बैठक कर अफगानिस्तान की स्थिती पर हुई चर्चा
इसी मकसद से कल गुरुवार को ईरान की पहल पर ही अफ़ग़ानिस्तान के छह पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों ने एक वर्चुअल बैठक भी की जिसमें अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति पर चर्चा की गई. बैठक के बाद एक ट्वीट में आमिर अब्दुल्लाह ने कहा, "अफ़ग़ानिस्तान के छह पड़ोसी देशों के विदेश मंत्रियों की वर्चुअल एक बैठक हुई. इसमें अफ़ग़ानिस्तान में सभी विविध अफ़ग़ान लोगों की इच्छाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली समावेशी सरकार के ज़रिए देश में सुरक्षा, स्थिरता और विकास पर ज़ोर दिया गया. हिंसा की जगह बातचीत होनी चाहिए. विदेशी दख़ल को ख़ारिज किया जाना चाहिए. हम अफ़ग़ानिस्तान के लोगों के बीच बातचीत और समझौतों का समर्थन करते हैं.''
दरअसल,पाकिस्तान के प्रति भी ईरान की नाराजगी तालिबान पर उसके बढ़ते हुए प्रभाव को लेकर है. तालिबान की नई सरकार के गठन से पहले ही आईएसआई के प्रमुख लेफ़्टिनेंट जनरल फ़ैज़ हामिद ने काबुल में डेरा डाल लिया था. इससे तालिबान पर पाकिस्तान का प्रभाव स्पष्ट नज़र आया. अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान के क़ब्ज़े में भी पाकिस्तान की अहम भूमिका रही है. एक तरह से अफ़ग़ानिस्तान का प्रॉक्सी कंट्रोल पाकिस्तान को हासिल हो गया है, इसे लेकर ईरान नाख़ुश है.
विश्लेषक ये भी मानते हैं कि वहीं दूसरी तरफ शिया बहुल ईरान और सुन्नी बहुल सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक तनाव और प्रतिस्पर्धा भी जगज़ाहिर है. पाकिस्तान और सऊदी अरब के रिश्ते भी अच्छे हैं. ऐसे में ईरान को ये भी लग रहा है कि अफ़ग़ानिस्तान के पाकिस्तान के प्रभाव में आने से अप्रत्यक्ष तौर पर सऊदी अरब का प्रभाव भी वहां और ज्यादा बढ़ जायेगा.
ईरान के लिए पाकिस्तान एक चुनौती
ईरान और सऊदी अरब के बीच जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शिया-सुन्नी तनाव चल रहा है उसमें ईरान अब पाकिस्तान को सऊदी के अहम सहयोगी के रूप में भी देख रहा है. ईरान पाकिस्तान को अपना दुश्मन भले ना समझे लेकिन एक चुनौती तो समझता ही है.
वैसे ईरान तालिबान से ख़ासतौर पर इसलिये भी नाराज़ बताया जाता है कि उसने पंजशीर पर हमला क्यों किया. पंजशीर में अधिकांश ताजिक नस्ल के लोग रहते हैं जो मूलतः हैं तो सुन्नी लेकिन ईरान धार्मिक तौर पर उन्हें अपने अधिक क़रीब मानता है.
पूर्व विदेश सचिव के.सी.सिंह के मुताबिक तालिबान को लेकर रूस व ईरान का रुख भारत से मेल खाता है. लिहाज़ा, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भले ही भारत के पास वीटो पावर नहीं है लेकिन जब भी वहां तालिबान को सैंक्शनस सबंधीं मुद्दे पर चर्चा होगी तब इन देशों के साथ मिलकर भारत उसे काफी हद तक अपने अनुकूल प्रभावित कर सकता है.
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