क्या हमारा कश्मीर जल्द ही दूसरा दुबई बनने जा रहा है? ये एक ऐसा सवाल है जिसे बहुत सारे लोग गलत वक़्त पर उठाया गया बेतुका मुद्दा मानते हुए दरकिनार कर देंगे. लेकिन इसमें सच्चाई भी है और देश के इतिहास में ऐसा करने की शुरुआत भी पहली बार ही हो रही है जिसके लिए तमाम विरोध के बावजूद मोदी सरकार की तारीफ करने में कंजूसी बरतने से थोड़ा परहेज़ ही करना चाहिए. सरकार की ये पहल मीडिया की सुर्खी शायद इसलिए भी नहीं बन पाई कि बदकिस्मती से इसी दौरान घाटी में आतंकियों के हाथों हुई प्रवासी मजदूरों की हत्या ने देश को हिलाकर रख दिया, जिसके कारण ये खबर दबकर रह गई.चूंकि दुबई संयुक्त राज्य अमीरात यानी यूएई का ही हिस्सा है जो कि एक इस्लामिक मुल्क है. लिहाज़ा कश्मीर में इंफ्रास्ट्रक्चर को लेकर अगर दुबई ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर के प्रशासन के साथ एक समझौते पर (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं, तो ये अपने आप में ही बड़ी बात है. कश्मीर पिछले तीन दशक से आतंक की मार झेल रहा है और ऐसे माहौल में दुबई ने वहां की तस्वीर बदलने का जिम्मा लिया है, तो उसके इस हौंसले की भी दाद देनी चाहिये क्योंकि इसे पाकिस्तान के लिए भी एक बड़ा रणनीतिक झटका समझा जा रहा है.
दुबई को यूएई का सबसे खुशहाल हिस्सा माना जाता है, जिसे एक बार देखने की चाह भारत समेत दुनिया के कई मुल्कों के बाशिंदों की रहती है. वही दुबई अब जम्मू-कश्मीर में बेहिसाब पैसा खर्च करके वो सब आधुनिक सुविधाएं देने के लिए तैयार है,जो खुद उसने अपने यहां जुटाई हैं. हालांकि अन्तराष्ट्रीय सुरक्षा से जानकार इस पर सवाल भी उठा रहे हैं कि दुबई के लिए क्या ये निवेश सुरक्षित होगा क्योंकि उनका मानना है कि सेना की भारी तैनाती वाले इस क्षेत्र में निवेश लड़ना भारी ख़तरों से भरा हुआ है क्योंकि हाल के दिनों में आम लोगों पर कई आतंकी हमले हुए हैं और सुरक्षाबलों ने उनके ख़िलाफ़ अभियान छेड़ रखा है,जो कब खत्म होगा,ये कोई भी नहीं जानता.
बीते सोमवार यानी 18 अक्टूबर को केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने एक प्रेस रिलीज़ जारी करके बताया था कि इस समझौते के तहत दुबई की सरकार जम्मू-कश्मीर में रियल एस्टेट में निवेश करेगी, जिनमें इंडस्ट्रियल पार्क, आईटी टावर्स, मल्टीपर्पस टावर, लॉजिस्टिक्स, मेडिकल कॉलेज, सुपर स्पेशलिटी अस्पताल आदि शामिल हैं. हालांकि इस समझौते को लेकर साफ़तौर पर यह नहीं बताया गया था कि इसकी लागत कितनी होगी और दुबई इसमें कितना धन निवेश करेगा.
उससे पहले ही केंद्रीय वाणिज्य मंत्री ने इस समझौते की जानकारी देते हुए ट्वीट किया था, "विश्व को आज भारत के ऊपर विश्वास है कि भविष्य में हमारा देश विश्व व्यापार में अहम भूमिका निभाने जा रहा है.उसके एक प्रतीक के रूप में आज दुबई की सरकार और जम्मू कश्मीर शासन के बीच एक MoU पर हस्ताक्षर किये गये." बाद में उन्होंने अपने लिखित
बयान में कहा कि दुबई सरकार के साथ समझौता ज्ञापन दिखाता है कि दुनिया यह मान रही है कि जम्मू-कश्मीर विकास की गति पर सवार हो रहा है. "यह MoU एक मज़बूत संकेत पूरी दुनिया को देता है कि भारत एक वैश्विक ताक़त में बदल रहा है और जम्मू-कश्मीर की इसमें एक महत्वपूर्ण भूमिका है. यह MoU एक मील का मत्थर है क्योंकि इसके बाद पूरी दुनिया से विकास आएगा और इसे एक बड़ा अवसर मिलेगा." जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा ने भी इसे केंद्र शासित प्रदेश के लिए महत्वपूर्ण अवसर बताते हुए कहा है कि इससे जम्मू-कश्मीर को औद्योगीकरण और सतत विकास में नई ऊंचाइयों पर ले जाने में मदद मिलेगी.
लेकिन इसे थोड़ा गहराई से समझना पड़ेगा कि भारत ने दुबई को इसके लिए राजी करके एक साथ कितने निशाने साधने में कामयाबी पाने की शुरुआत की है. पाकिस्तान के लिये ये एक बड़ा झटका है और इसे सिर्फ हम नहीं बल्कि वहाँ के ही काबिल राजनयिक भी ऐसा ही मान रहे हैं और खुलकर अपनी इस राय का इज़हार भी कर रहे हैं.भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त राह चुके अब्दुल बासित ने इस समझौते को भारत के लिए एक बड़ी कामयाबी बताया है. उनके मुताबिक भारत की हमेशा से कोशिश रही है कि वो दूसरे देशों को जम्मू-कश्मीर में अपने मिशन और उच्चायोग खोलने और वहाँ निवेश करने के लिए राज़ी करे ताकि OIC (ऑर्गनाइज़ेशन ऑफ़ इस्लामिक रिपब्लिक) के अंदर कश्मीर के मुद्दे को कमज़ोर किया जा सके. हालांकि साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि '"इस पर अभी अधिक जानकारियां सामने नहीं आई हैं क्योंकि यह सिर्फ़ MoU है. लेकिन फिर भी जम्मू-कश्मीर और पाकिस्तान के संदर्भ में यह भारत के लिए बड़ी कामयाबी है."
दरअसल, एक कूटनीतिज्ञ होने के नाते और भारत में रहते हुए अब्दुल बासित ने हमारे देश की डिप्लोमेसी को नजदीक से समझने की कोशिश की है, लिहाज़ा उनके इस आकलन को काफी हद तक सही कहा जा सकता है कि कश्मीर के मसले पर पाकिस्तान को अन्य इस्लामिक देशों से अलग-थलग करने की भारत की रणनीति पहले से ही रही है लेकिन इस समझौते के बाद ये और भी अधिक पुख्ता हो जाएगा. यही भारत की सबसे बड़ी कूटनीतिक सफलता है,जिसे पाकिस्तान को समझ नहीं आ रहा कि आखिर ऐसा कैसे हो गया.
वैसे भी पाकिस्तान की हमेशा यही कोशिश रही है कि वो कश्मीर के मामले में इस्लामिक कनेक्शन जोड़ते हुए भारत के ख़िलाफ़ समर्थन जुटाए. लेकिन पाकिस्तान को उसकी उम्मीद के मुताबिक कामयाबी आज तक नहीं मिली है. कश्मीर के मसले पर सिर्फ तुर्की ने ही उसका साथ दिया है,बाकी किसी भी इस्लामिक देश ने पाकिस्तान को जरा भी तवज्जो नहीं दी है.यहां तक कि दो साल पहले जब अनुच्छेद 370 को हटाया गया था,तब भी यूएई ने पाकिस्तान की लाइन का समर्थन नहीं किया,बल्कि एक तटस्थ की भूमिका में बना रहा.
भारत के लिए सुकून व खुशी की बात ये है कि कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के ही राजनयिक ने अपनी सरकार को आईना दिखाने का काम किया है. अब्दुल बासित ने बेख़ौफ होते हुए ये भी कहा है कि "यह MoU दिखाता है कि मामला हमारे हाथ से निकलता जा रहा है. हम अंधेरे में अपने हाथ-पाँव हिला रहे हैं और सच्ची बात यही है कि कश्मीर पर हमारी कोई नीति अब रही ही नहीं है. वर्तमान सरकार का कश्मीर को लेकर ढीलढाल रवैया रहा है जो उनको भविष्य में डराएगा लेकिन पिछली सरकारों ने भी हमारी कश्मीर नीतियों को कमज़ोर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी."
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