हिंदी फिल्मों में काम करने वाली चौतीस बरस की कोई अभिनेत्री देश की आज़ादी का इतिहास लोगों को अगर इस तरह से समझाने लगे, जिस भाषा-शैली का इस्तेमाल सत्तारूढ़ पार्टी के बड़े नेताओं ने भी कभी न किया हो, तो मुंबई की मायानगरी से लेकर दिल्ली के सियासी जगत में हलचल होना स्वाभाविक होने के साथ ही वाज़िब भी समझी जानी चाहिए. तो सवाल उठता है कि कंगन रनौत (हालांकि वे राजपूत परिवार से हैं,जहां राणावत सरनेम का ही प्रयोग होता है) जिस आज़ादी को भीख में मिलने जैसी विवादित बातें बोल रही हैं,क्या ये उनके अपने दिमाग की उपज है या फिर ये डायलॉग लिखने वाला कोई और है जो कंगना को अब सियासी पर्दे पर एक बड़े किरदार के तौर पर पेश करना चाहता है?


ये सवाल थोड़ा इसलिये जायज़ लगता है कि कंगना की जो जन्मस्थली है,वहां भी अगले साल की शुरुआत में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. लिहाज़ा, सियासत की नब्ज समझने वाले उनके दिए गए ताज़ातरीन बयानों से यही आकलन लगा रहे हैं के वे हिमाचल प्रदेश में बीजेपी का एक बड़ा व लोकप्रिय चेहरा बनकर चुनाव-मैदान में कूद सकती हैं. हालांकि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से लेकर पार्टी के किसी प्रवक्ता तक की तरफ से अभी तक ऐसा कोई संकेत नहीं मिला है. लेकिन सरकार के किसी मंत्री या पार्टी के किसी भी बड़े नेता ने अगर कंगना के इन बयानों का खुलकर समर्थन नहीं किया है, तो उसका विरोध भी नहीं किया है. इसलिये, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर विपक्ष के अन्य नेता कंगना के 'भीख में मिली आज़ादी' से जुड़े इस बयान को नासमझी भरा बता रहे हैं, तो हो सकता है कि वे पर्दे के पीछे से दिये जा रहे डायरेक्शन को न समझ पाने की भूल कर रहे हों.


वह इसलिये कि हिमाचल के मंडी जिले से दिल्ली आकर जिन लोगों से एक्टिंग सीखी हो और फिर मुंबई में जिन्होंने पहली बार फ़िल्म में चांस दिया हो, वे सब ये पढ़कर हैरान हैं कि इतने गंभीर व संवेदनशील मसले पर आखिर कंगना ऐसी बातें कैसे बोल सकती है क्योंकि वह तो कभी ऐसी थी ही नहीं जो राजनीति की इतनी बारीकियों को समझती हो. लिहाज़ा, उन्हें लगता है कि कंगना अब फिल्मी दुनिया को अलविदा कहकर राजनीति के रंगमंच पर अपना हुनर दिखाने के रास्ते पर चल पड़ी हैं और कोई मेंटर तो है, जो उन्हें ऐसे बयान देने के लिए गाइड कर रहा है, ताकि चुनावी मैदान में उतारने से पहले ही जमीन मजबूत कर दी जाए.


हालांकि, कंगना के विवादों से नाता कोई नया नहीं है. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत के बाद वे पहली बार सुर्खियों में तब आईं थी, जब उन्होंने ये कहा था कि बॉलीवुड का अधिकांश हिस्सा ड्रग्स के नशे की गिरफ्त में है. उसके बाद भी वे अपने बयानों से विवाद में रही और नाराज़ विरोधियों ने उनके दफ्तर-स्टूडियो में जमकर तोड़फोड़ भी की थी.


जानकार मानते हैं कि सेलिब्रिटी तो वे पहले ही थीं लेकिन उस घटना के बाद उनका रसूख कुछ ज्यादा इसलिये बढ़ गया कि उन्हें केंद्र सरकार की तरफ से सुरक्षा मुहैया कराने में जरा भी देर नहीं लगाई गई. उसके बाद से ही कंगना का अंदाज़ कुछ ऐसा बदला कि वे उन्हें फिल्मी किरदार की बजाय एक उभरते हुए नेता के अवतार के रूप में अपना भविष्य ज्यादा फिट व सुरक्षित लगने लगा, सो ताजा दिए गए बयानों से लोग यही मान रहे हैं कि उन्होंने अब राजनीति को ही अपना स्टेज बना लिया है. फर्क सिर्फ इतना है कि इसका औपचारिक एलान होना बाकी है लेकिन वह इससे पहले ही अपने तेवरों के जरिये विरोधियों के लिए बड़ी चुनौती बनती दिख रही हैं.


ये सच है कि भगत सिंह, आजाद, राजगुरु व सुखदेव जैसे अनेकों शहीद आज भी हमारे हीरो हैं क्योंकि उनके बलिदान के बगैर आजादी मिलने का सपना शायद सच नहीं होता. लेकिन कंगना अपने बयानों के जरिये लगातार महात्मा गांधी पर हमले कर रही हैं, जिसे एक दूरगामी राजनीतिक योजना का हिस्सा समझा जाना चाहिए. कल यानी मंगलवार को कंगना ने फिर से महात्मा गांधी को लेकर विवादित टिप्पणी की है. उन्होंने इंस्टाग्राम स्टोरी पर एक आर्टिकल साझा किया है. इसकी हेडलाइन में लिखा है कि या तो आप गांधी के फैन हो सकते हैं या फिर नेताजी के समर्थक... आप दोनों के समर्थक नहीं हो सकते. इसका फैसला खुद करें. उन्होंने आगे लिखा, ''दूसरा गाल देने से भीख मिलती है, आजादी नहीं.''


कंगना ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों को उन लोगों ने अंग्रेजों के हवाले कर दिया, जिनमें लड़ने की हिम्मत नहीं थी, लेकिन वे सत्ता के भूखे थे. उन्होंने आगे कहा, "ये वही हैं जिन्होंने हमें सिखाया है कि अगर कोई एक थप्पड़ मारे तो एक और थप्पड़ के लिए दूसरा गाल दे दो और इस तरह आपको आजादी मिलेगी. इस तरह से किसी को आज़ादी नहीं मिलती, ऐसे भीख ही मिल सकती है. अपने नायकों को बुद्धिमानी से चुनें.” पद्म श्री से सम्मानित कंगना रनौत ने ये भी कहा, ''गांधी ने कभी भी भगत सिंह या सुभाष चंद्र बोस का समर्थन नहीं किया.  सबूत है कि गांधी जी चाहते थे की भगत सिंह को फांसी हो तो आपको यह चुनने की ज़रूरत है कि आप किसका समर्थन करते हैं.''


गौरतलब है कि इससे पहले कंगना रनौत ने यह कहकर विवाद खड़ा कर दिया था कि भारत को ‘आजादी’ 2014 में मिली, जब नरेंद्र मोदी सरकार सत्ता में आई, वहीं 1947 में देश को जो स्वतंत्रता मिली थी वह ‘भीख’ में मिली थी. हालांकि उनके इस ताजा बयान की भी आलोचना होगी ही लेकिन वही कंगना का मकसद भी है, जो राजनीति में उन्हें उस मुकाम तक ले जाएगा जहां पहुंचने की उन्हें चाह भी है.



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