सुशांत सरीन कहते हैं कि इमरान का उपर का माला खाली है . कमर आगा कहते हैं कि इमरान पर नशाखोरी के आरोप उनकी दूसरी पत्नी रेहम खान लगा चुकी है. पाकिस्तान की पत्रकार मोना कहती हैं कि सानु की, हमें तो ऐसा प्रधानमंत्री चाहिए जो देश का विकास करे भले ही नशा लेते हुए करे. स्मिता प्रकाश कहती हैं कि इमरान फौज के चंगुल में रहेंगे ऐसे में उनसे उम्मीद नहीं की जाए तो अच्छा. कपिल देव कहते हैं कि जो बीत गया सो बीत गया, अब आगे की सोचें और इमरान खान के पीएम बनने से रिश्ते सुधरेंगे.


कुल मिलाकर ऐसी प्रतिक्रियाओं के बीच इमरान खान पाकिस्तान के अगले प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं. दुनिया में पहला मौका है जहां कोई क्रिकेटर प्रधानमंत्री का पद संभाल रहा हो. वैसे कुछ खिलाड़ी अमेरिका में सीनेटर बने हैं, भारत में ही राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे खिलाड़ी मंत्री हैं लेकिन 1992 में चालीस साल की उम्र में पाकिस्तान को विश्व कप क्रिकेट का ताज पहनाने वाले इमरान खान पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद का ताज पहनने जा रहे हैं. कपिल देव कहते हैं कि भारत और पाक के रिश्ते सुधरेंगे. उन्हें लगता है कि दोनों देश चाहेंगे तो दोनों देशों के बीच क्रिकेट का सिलसिला फिर शुरु हो सकता है. क्या ऐसा होगा ..कहना मुश्किल है.


  वैसे दोनों देशों के बीच क्रिकेट डिप्लोमेसी का खेल खेला जाता रहा है जब जब दोनों देशों के बीच रिश्ते बेहद खराब हुए हैं . राजीव गांधी और जनरल जिया उल हक के बीच रिश्ते बेहद तनावपूर्ण हो गये थे . गतिरोध टूटने का नाम नहीं ले रहा था . तब जनरल ने क्रिकेट का फायदा उठाया . जयपुर में भारत और पाक के बीच टैस्ट मैच देखने जनरल पहुंच गये . दोनों देशों के बीच जम चुके रिश्तों की बर्फ कुछ पिघली . यही काम जनरल परवेज मुशरफ ने फिरोशकोटला के मैदान में आकर किया था . यही काम नवाज शरीफ ने मोहाली में विश्व कप क्रिकेट के सेमीफाइनल मैच को देखते हुए किया था जो जाहिर है कि भारत और पाकिस्तान के बीच खेला जा रहा था .


  लेकिन वो दौर अलग था यह दौर अलग है . जनरल जिया उल हक सैनिक तानाशाह थे , जनरल परवेज सेना से ही निकल कर प्रशासक बने थे लिहाजा दोनों को सेना से इजाजत लेने की जरुरत नहीं थी . नवाज शरीफ सेना को अंगूठे  पर रखते थे इसलिए मोहाली आ पाए . लेकिन यहां तो कहा जा रहा है कि इमरान खान सेना के पोस्टर ब्याय हैं . वह सेना का मदद से इस पद तक पहुंच रहे हैं . लिहाजा बिना सेना की इजाजत के उनके लिए भारत को लेकर बयान तक देना भारी पड़ सकता है . आखिर पाक सेना सिर्फ चीन  के दबाव में , अमेरिका के कहने पर और आईएमएफ से मिलने वाले कर्ज की बातचीत करने की शर्त के तहत ही भारत से बातचीत पर सहमत हो सकते हैं . इसके लिए इमरान खान को ही सेना पर दबाल डालना पड़ेगा . सत्ता से अनजान इमरार खान क्या यह काम कर सकेंगे ...इसमें बहुतों को संदेह है .


   सबसे बड़ी बात ...क्या चुनावी साल में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बातचीत करना चाहेंगे ......वह भी ऐसे प्रधानमंत्री से जो उस सेना की मदद से बनेगा जो सेना भारत में आतंकवादियों को भेजती रही है , जो सेना आतंकवादियों को ट्रेनिंग देती रही है , जो सेना भारतीय सीमा पर गोलाबारी कर बेकुसूर ग्रामीणों को मारती रही है ......इसका जवाब ना में ही है . आखिर बीजेपी राष्ट्र्वाद को चुनावी मुद्दा  बनाने जा रही है और ऐसे में उसके मुखिया क्यों पाकिस्तान से बात कर राष्ट्रवादियों को नाराज करना चाहेंगे और विपक्ष को हमले करने का मौका देंगे . याद कीजिए कि मनमोहनसिंह सरकार के समय कैसे उनपर देश के दुश्मनों को बिरयानी खिलाने का आरोप लगता था . हां , अगर प्रधानमंत्री मोदी को लगे कि इमरान खान से  बातचीत करने से सियासी अंक जुटाए जा सकते हैं तो वह शर्तों के साथ इसके लिए तैयार भी हो सकते हैं . कुल मिलाकर अभी तो यही कहा जा सकता है कि इमरान खान का पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनना भारत के लिहाज से अच्छी खबर नहीं है.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)