भारत जोड़ो यात्रा के बाद क्या पीएम मोदी को टक्कर दे पायेंगे राहुल गांधी?
कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा 7 नवंबर को दो महीने पूरे कर लेगी. अगर निष्पक्ष आकलन किया जाये, तो इसके जरिये राहुल गांधी ने अपनी एक नई इमेज बनाने और खुद को एक गंभीर नेता के रूप में स्थापित करने की भरसक कोशिश की है और अभी भी कर रहे हैं. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि डेढ़ सौ दिन पूरे करके श्रीनगर में इस यात्रा के ख़त्म होने के बाद राहुल गांधी क्या इस हैसियत में आ जायेंगे कि वे अगले लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सीधी टक्कर दे सकें?
इसका सटीक जवाब तो फिलहाल कांग्रेस नेताओं के पास भी नहीं है लेकिन इतना ज़रूर है कि लोकप्रियता के लिहाज से राहुल भले ही मोदी को मात न दे पायें लेकिन उनकी इस यात्रा ने कमजोर हो चुकी कांग्रेस में नई जान फूंकने में काफ़ी हद तक कामयाबी पाई है. यही बीजेपी के लिए थोड़ी परेशान करने वाली स्थिति है क्योंकि भारत जोड़ो यात्रा शुरु होने से पहले तक तो वह कांग्रेस को कहीं मुकाबले में मानने को ही तैयार नहीं थी.
बीती 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरु हुई इस यात्रा पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पिछले आठ सालों में बीजेपी ने राहुल गांधी को जिस तरह से एक कमज़ोर और मज़ाकिया नेता के तौर पर पेश करने की कोशिश की है, उस छवि को राहुल ने अपनी इस यात्रा के जरिये तोड़ने में काफी हद तक सफलता पाई है. यात्रा के दौरान दिए जा रहे भाषणों और पत्रकारों के सवालों के जवाब देकर ये साबित करने की कोशिश की है वे एक गंभीर नेता हैं.
इस यात्रा को डेढ़ महीने से ज्यादा हो चुका है और राहुल इस दौरान लोगों से सीधे संवाद कर रहे हैं, आम लोगों के साथ वक्त बिता रहे हैं. बीच-बीच में लोगों के घर भी जा रहे हैं और मीडिया से रूबरू होने में भी कतरा नहीं रहे हैं. सोशल मीडिया पर उनकी कई भावुक तस्वीरें भी वायरल हुई हैं जिनमें वो बारिश के बीच भाषण देते हुए, मां सोनिया गांधी के जूते का फीता बांधते हुए और हिजाब पहने बच्ची को गले लगाते दिखते हैं, तो कभी बच्चों के साथ दौड़ लगाते हुए भी नजर आते हैं. दरअसल, इन सबके जरिये राहुल गांधी अपनी ऐसी छवि बनाने की कोशिश में जुटे हैं कि जनता के बीच ये संदेश जाए कि वह जमीन से जुड़े नेता हैं.
इसलिये विश्लेषक मानते हैं कि इस यात्रा से कांग्रेस कितनी मजबूत हुई है, ये तो चुनावों के दौरान ही पता चलेगा लेकिन इसका एक बड़ा फायदा यह हुआ है कि राहुल गांधी पर जो ठप्पे सोशल मीडिया में लगाए गए और जैसी छवि उनकी गढ़ी गई थी, वे अब उससे बाहर निकल आए हैं. इसका बड़ा सबूत यही है कि उनके लिए आपत्तिजनक विशेषणों का इस्तेमाल अब नहीं हो रहा है. शायद इसलिये कि बीजेपी नेताओं को ये अहसास जो गया है कि ऐसी भाषा का इस्तेमाल बैक फायर कर सकता है, जिसकी जन-सहानुभूति का फायदा राहुल को मिल सकता है.
लेकिन सियासी समीकरण को देखा जाये, तो गौर करने वाली बात है कि राहुल गांधी का असली इम्तिहान यात्रा के आगे के पड़ावों में होगा, जब वो ऐसे प्रदेशों में होंगे जहां कांग्रेस की स्थिति कमजोर है. उसमें सबसे पहला प्रदेश महाराष्ट्र है , जहां कांग्रेस का आधार बहुत हद तक खो चुका है. उसके अलावा राजस्थान में पार्टी में चल रही आपसी खींचतान से उन्हें इस यात्रा के सियासी गर्म थपेड़ों से जूझना होगा. तो वहीं मध्यप्रदेश में भी कमलनाथ-दिग्विजय सिंह के गुट के चलते पार्टी की हालत इतनी ताकतवर स्थिति में नहीं है कि वो अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में बीजेपी को आसानी से पटखनी दे सके.
लिहाज़ा, ये कह सकते हैं कि इस यात्रा में राहुल की असली परीक्षा का समय अब आ रहा है. हिंदी भाषी राज्यों में अगर वे अपनी इस यात्रा से लोगों को आकर्षित करके कांग्रेस के पक्ष में नहीं ला पाये, तो फिर ये बहस ही बेमानी बन जाती है कि वे पीएम मोदी को कैसे टक्कर दे पायेंगे?
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