नीतीश कुमार की राजनीतिक विरासत को संभालेंगे क्या अब तेजस्वी यादव?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आगामी लोकसभा चुनाव से पहले क्या बड़ी सियासी पारी खेलते हुए आरपार की लड़ाई के मूड में आ गये हैं? ये सवाल इसलिए कि नीतीश ने इशारों ही इशारों में ये संदेश दे डाला है कि अब उनके उत्तराधिकारी डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ही होंगे. लेकिन नीतीश कुमार की मौजूदगी में ही तेजस्वी यादव ने एक बड़ी बात ये बोली कि अब नागपुर से ही सीधी लड़ाई होने वाली है. तो सवाल ये भी है कि क्या नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने की कवायद में कूद पड़े हैं और वे उससे पहले ही तेजस्वी को अपनी कुर्सी सौंपने का मन बना चुके हैं?
नीतीश सियासत के मंझे हुए खिलाड़ी हैं जो बीजेपी की बैसाखी के सहारे ही केंद्र में मंत्री बनने से लेकर बिहार के कई बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं. लेकिन सत्ता में बने रहने के लिये इस बार उन्होंने बीजेपी को धोखा देते हुए अपने धुर विरोधी समझे जाने वाले लालू प्रसाद यादव से समझौता करने में भी कोई गुरेज नहीं किया.
खास बात ये है कि नीतीश ने तेजस्वी के जरिये नागपुर से सीधी लड़ाई का बयान दिलवाकर संघ को एक तरह की सियासी चुनौती दे डाली है. नागपुर, आरएसएस का मुख्यालय है और पिछले ढाई दशक से ये आम धारणा बनी हुई है कि चाहे केंद्र हो या राज्य लेकिन वहां बनने वाली बीजेपी की सरकार उसके रिमोट से ही संचालित होती है. हालांकि संघ के पदाधिकारी यही दावा करते रहे हैं कि वे बीजेपी की किसी भी सरकार के कामकाज में कोई हस्तक्षेप नहीं करते हैं. लेकिन साल 1998 में केंद्र में दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में बनी सरकार से लेकर अब तक के घटनाक्रम पर अगर बारीकी से गौर करेंगे तो देश की आम जनता को कभी ये अहसास भी नहीं हुआ होगा कि संघ ने कब-कहां व कैसे अपने मन मुताबिक फैसले लेने के लिए सरकार को भले ही मजबूर न किया हो लेकिन उसके विनम्र फ़रमान को ठुकराने की हिम्मत भी किसी सरकार में न थी, न है और न ही शायद आगे होगी.
इसमें कोई शक नहीं कि संघ दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू संगठन है जो भारत समेत दुनिया के अनगिनत देशों में रहने वाले भारतीयों में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की भावना जागृत करने और उसे अपनाने का अलख जगाये हुए है. चूंकि संघ एक सामाजिक-सांस्कृतिक व राष्ट्रवादी संगठन है, इसलिए उसके काम करने के तौर-तरीके और भाषा-शैली भी तमाम राजनीतिक दलों से बिल्कुल अलग है. संघ से जुड़े जानकार कहते हैं कि हमारे सर्वेसर्वा यानी सर संघचालक या फिर उनके अधीन पदाधिकारी कभी भी बीजेपी की किसी सरकार को आदेश-निर्देश नहीं देते हैं. वैसे तो इस सच से कोई इनकार भी नहीं कर सकता लेकिन इस तस्वीर का दूसरा व अहम पहलू ये भी है कि संघ को जो बात या जो व्यक्ति पसंद न हो उसके लिये वो बेहद विनम्रता वाली भाषा में सरकार तक ये संदेश पहुंचा देता है कि ये संगठन के हित में नहीं है इसलिये हमारी दृष्टि में ऐसा फैसला लेना उचित नहीं होगा. बस, यही संदेश सरकार के लिये फ़रमान बन जाता है जिसे वो चाहते हुए भी ठुकरा नहीं सकती.
सोमवार को सीएम नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव नालंदा जिले में 410 करोड़ रुपये की लागत से बने एक डेंटल कॉलेज के उद्घाटन समारोह में मौजूद थे. वहीं पर लोगों को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि तेजस्वी यादव को आगे बढ़ा रहे हैं इनके लिए अभी जितना करना था वो तो कर दिया लेकिन इनको अभी और आगे बढ़ाना है. नीतीश ने महात्मा गांधी का जिक्र करते हुए अपनी सरकार के कामों का बखान भी किया तो लोगों से समाज में नफ़रत फैलाने व साम्प्रदायिक झगड़ों से दूर रहने की अपील भी की.
लेकिन नीतीश ने आरएसएस पर खुद सियासी तीर चलाने की बजाय इसकी कमान तेजस्वी के हाथ में देते हुए उन्हें आगे कर दिया. तेजस्वी यादव ने डेंटल कॉलेज की तारीफों का बखान करते हुए कहा कि पूरे बिहार के लोग एकजुट हो जाइए, आने वाली लड़ाई अब नागपुर से है. नागपुर के लोग धार्मिक उन्माद फैलाते हैं. नागपुर में ज्ञान नहीं बांटा जाता है. अब सीधी लड़ाई नागपुर से होगी इसलिए सभी को एकजुट रहना है. इधर-उधर की बात पर ध्यान नहीं देना है.
बता दें कि नीतीश कुमार पहले भी बोल चुके हैं कि अब तेजस्वी यादव को ही आगे बढ़ाना है. तो सवाल उठता है कि क्या वे तेजस्वी को आगे करके ही अब बीजेपी से मुकाबला करना चाहते हैं?
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