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मौलाना मदनी की इस अपील को किस हद तक मानेगा देश का आम मुसलमान?

देश में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद के राजधानी में हो रहे राष्ट्रीय अधिवेशन के दूसरे दिन मौलाना महमूद मदनी ने कई अहम बातें कही हैं. उन्होंने मुसलमानों से दो खास अपील की हैं. पहली ये कि वे महिलाओं के साथ बराबरी का सुलूक करें और दूसरा कि समाज में हो रही नाइंसाफी के खिलाफ खुलकर सामने आएं. दोनों ही बातों का अपना महत्व है, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मुसलमान उनकी इस अपील को कितनी संजीदगी से लेंगे?

ये सच है कि मुस्लिमों का एक बड़ा तबका आर्थिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ा हुआ है और उसी वर्ग में महिलाओं के साथ सबसे ज्यादा ज्यादती होती रही है और शायद आज भी हो रही है. बरसों से चली आ रही तीन तलाक की परंपरा को भी उसी ज्यादती का सबसे अहम हिस्सा माना जाता था, जिसे खत्म करने के लिए मोदी सरकार को कानून लाना पड़ा.

शायद इसीलिये जमीयत प्रमुख को सार्वजनिक मंच से ये कहना पड़ा कि औरतों के साथ हम ज्यादती करते हैं. अगर हम खुद के अंदर बदलाव नहीं लाएंगे तो बदलाव नहीं होगा. उन्होंने औरतों के साथ बराबरी का सलूक करने की अपील तो कर दी, लेकिन जिस समाज के बड़े तबके में अशिक्षा के चलते महिला के साथ आज भी दोयम दर्जे का बर्ताव होता हो, वहां एक आम मुसलमान पर इस अपील का किस हद तक असर होगा, ये कोई नहीं जानता.

मौलाना मदनी ने दूसरी अहम बात पर्सनल लॉ में गैर जरूरी दखलदांजी को लेकर कही है. इसके लिये उन्होंने मुसलमानों से अपील की है कि समाज में नाइंसाफी के खिलाफ वे खुलकर सामने आएं ताकि हमारे पर्सनल लॉ में तब्दीली की जरूरत ना आए. गौरतलब है कि शनिवार को इसी मंच से मौलाना मदनी ने मोदी सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि वह यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने की कोशिश न करें, अन्यथा देश की एकता व अखंडता पर इसका सीधा असर पड़ेगा.

मुसलमानों में आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े पसमांदा मुस्लिमों की हालत किसी से छुपी नहीं है, जिनकी सबसे अधिक आबादी उत्तर प्रदेश व बिहार में है. इनके उत्थान के लिए ही बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीजेपी नेताओं से उनके बीच जाने और उनकी तकलीफें दूर करने की सलाह दी थी. शुक्र है कि मौलाना मदनी ने भी ये कबूल किया है कि मुसलमानों में पसमांदा की हालत जमीनी हकीकत है. हम ऐलान करते हैं कि जो ज्यादती जात-पात के नाम पर हुई है, उस पर शर्मिंदगी है. उसे दूर करना है. पसमांदा मुसलमानो की हालत सुधारने के लिए सरकार ने जो बयान दिए हैं, हम उसका स्वागत करते हैं.

हालांकि मुस्लिमों से बांटने वाली राजनीति का बहिष्कार करने की अपील करते हुए मौलाना मदनी ने मुल्क से मोहब्बत करने का पैगाम देते हुए कहा कि ये हमारे पूर्वजों का संदेश है और वतन से वफादारी करना, हमारा मजहब भी कहता है, लेकिन कभी इस्लाम, कभी हिंदुत्व के नाम पर जो बांटा जा रहा है, ये इस मुल्क की मिट्टी से मेल नहीं खाता.

इसी मंच से शनिवार को मौलाना मदनी ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को मिल-बैठकर सारे मसले हल करने का न्योता दिया था. रविवार को भी उन्होंने इसी बात पर जोर देते हुए संघ प्रमुख के सभी को बराबर बताने वाले बयान की तारीफ भी की. आरएसएस-बीजेपी से कोई खिलाफत न होने का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि हम खुले दिल से मोहन भागवत के एकता के बयान का स्वागत करते हैं. साथ ही उन्होंने भागवत को गले मिलने का न्योता देते हुए अपील की कि आइए, मिलकर इस मुल्क को सुपर पॉवर बनाएं. दोस्ती के लिए बढ़ाया जाने वाला हाथ थाम लेना चाहिए.

इसमें किसी को भी कोई शक नहीं है कि मौलाना मदनी इस्लाम के एक बड़े विद्वान हैं, जिनकी बातों को मुस्लिम गौर से सुनते हैं और काफी हद तक उसका असर भी होता है, लेकिन कुछेक मौकों पर उनके बयान से विवाद भी खड़ा हो जाता है. आज भी उनके एक बयान पर बवाल मच गया. मौलाना मदनी ने मंच से बोलते हुए मनु को इस्लाम का पहला पैगंबर बताया और कहा कि हिंदुओं का पूर्वज भी मुस्लिम था. इस पर अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वामी चक्रपाणि महाराज ने पलटवार किया और मौलाना मदनी को वंदे मातरम बोलने की चुनौती दे डाली. 

स्वामी चक्रपाणि महाराज ने कहा कि मौलाना मदनी मनु जी को मानते हैं. मनु तो सनातन धर्मी थे जिनको भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप धारण कर बचाया था. इसलिए मौलाना मदनी जी भी सनातनी हिंदू हुए. चक्रपाणी महाराज ने आगे कहा कि अब मदनी जी को राष्ट्रभक्ति दिखाने की आवश्यकता है. वंदे मातरम और भारत माता की जय बोलनी चाहिए, क्योंकि हिंदू सनातन धर्मी राष्ट्रभक्त होते हैं. उन्होंने मौलाना मदनी से समाज में जहर घोलना बंद करने को कहा.

अब सवाल उठता है कि अपने वतन से मोहब्बत करने और वफादारी रखने वाले मदनी साहब को वंदे मातरम या भारत माता की जय बोलने से इतना परहेज़ क्यों है? इस्लाम की बुनियाद इतनी कमजोर तो नहीं है कि महज इन दो शब्दों के बोल देने भर से वह खतरे में आ जायेगा?

बता दें कि मौलाना मदनी की गिनती दुनिया के 500 सबसे प्रभावशाली मुस्लिम शख्सियतों में होती है. दुनिया में इस्लाम की विचारधारा से जुड़ा एक एनजीओ है, जिसका नाम है- द रॉयल आल अल-बायत इंस्टिट्यूट फ़ोर इस्लामिक थॉट (RABIIT). इसका मुख्यालय जॉर्डन की राजधानी अम्मान में है. बीते दिसंबर में रैबिट ने साल 2023 के लिए दुनिया भर के 500 प्रभावी मुस्लिम शख़्सियतों की एक लिस्ट जारी की थी. इस लिस्ट में 13वें नंबर पर दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम देश इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो हैं. जबकि खास बात है कि 15वें नंबर पर जमीयत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी हैं. उसी संगठन ने मदनी को मैन ऑफ द इयर भी घोषित किया है.

रैबिट की रिपोर्ट में मौलाना महमूद मदनी के बारे में लिखा गया है कि उनका स्कूल ऑफ थॉट पारंपरिक सुन्नी है और जिस जमीयत उलमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष हैं, उसके 1.2 करोड़ अनुयायी हैं. रैबिट ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ''1992 में देवबंद से ग्रैजुएट होने के बाद मदनी जमीयत के साथ जुड़ गए थे. मदनी भारत में मुसलमानों के हक को लेकर बोलते रहते हैं और साथ ही आतंकवाद के लिए जिहाद टर्म के इस्तेमाल का भी विरोध करते हैं. मदनी इस्लामोफ़ोबिया के खिलाफ भी मुखर रहे हैं. भारत में धर्म के आधार पर मुसलमानों से भेदभाव का भी विरोध करते रहे हैं.''

नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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