मदरसों के सर्वे से क्या खत्म हो जायेगा मुस्लिम कट्टरपंथ?
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) सरकार ने मदरसों के सर्वे (Madrasa Survey) कराने का फैसला लेकर राजनीति में उबाल ला दिया है. मुस्लिम नेताओं का आरोप है कि सरकार इसके जरिये मुसलमानों का उत्पीड़न करना चाहती है और ये एक तरह का मिनी एनआरसी (NRC) है. हालांकि योगी सरकार का दावा है कि यह सर्वे मुस्लिम बच्चों की भलाई के लिए ही है और इसका मकसद ये पता लगाना है कि अलग-अलग जिलों में ऐसे कौन से व कितने मदरसे हैं, जो मान्यता प्राप्त नहीं हैं.
हालांकि इसका एक बड़ा मकसद ये भी माना जा रहा है कि सरकार उन मदरसों पर अपना हथौड़ा चलाना चाहती है, जो मान्यता प्राप्त नहीं हैं. संघ व बीजेपी का मानना है कि ऐसे मदरसे ही कट्टरपंथ के अड्डे बने हुए हैं, जहां बच्चों के दिमाग में जिहाद छेड़ने का जहर बोया जा रहा है और फिर वही बड़े होकर आतंकी बनने में अपना फख्र समझते हैं. बीजेपी नेता अक्सर ये आरोप लगाते रहे हैं कि इन मदरसों में मुस्लिम बच्चों को पहली तालीम ही ये दी जाती है कि मज़हब पहले है और वतन बाद में. लिहाजा बचपन से ही उन्हें अपने मज़हब के प्रति कट्टरता का ऐसा पाठ पढ़ा दिया जाता है कि वे दूसरे धर्म के प्रति कभी सहिष्णु हो ही नहीं सकते.
यूपी से बीजेपी सांसद सुब्रत पाठक ने तो सीधेतौर पर आरोप लगाया है कि गैर मान्यता प्राप्त मदरसे आतंकवाद की फैक्टरी हैं. पिछले कुछ सालों में जितने भी आतंकी पकड़े गए हैं उनका बैकग्राउंड देखेंगे, तो साफ पता लग जायेगा कि हथियार उठाने के लिए उन्हें मदरसों ने ही तैयार किया. गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश में इस समय कुल 16,461 मदरसे हैं, जिनमें से 560 को सरकारी अनुदान दिया जाता है, लेकिन योगी सरकार के आने के बाद पिछले 6 सालों से किसी भी नए मदरसे को कोई सरकारी अनुदान नहीं दिया जा रहा है. यही वजह है कि सर्वे का पुरजोर विरोध करते हुए एआईएमआईएम (AIMIM) प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी मैदान में कूद पड़े हैं.
यूपी सरकार को घेरते हुए उन्होंने संविधान का हवाला भी दिया, तो साथ ही ये भी कह डाला कि मदरसों को लेकर झूठ फैलाना बंद किया जाए, जब मदद नहीं कर सकते तो मदरसों में दखल क्यों दे रहे हैं. ओवैसी ने इस सर्वे पर गहरा ऐतराज जताते हुए ये भी कहा कि मदरसे भारत के संविधान अनुच्छेद-30 के अंतर्गत हैं तो यूपी सरकार ने सर्वे कराने का आदेश आखिर क्यों दिया है. अनुच्छेद-30 के तहत सरकार हमारे अधिकारों में दखल नहीं दे सकती है. वे मुस्लिमों का शोषण करना चाहते हैं. उन्होंने इस सर्वे को एक तरह का मिनी एनआरसी (NRC) भी बताया. उन्होंने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए ये सवाल भी उठाया है कि सिर्फ मदरसों का सर्वे क्यों करा रहे हैं, सरकारी स्कूलों का भी सर्वे कराइए, जिससे उनकी बदहाली का पता चल सके.
ओवैसी ने एबीपी न्यूज से खास बातचीत में कहा कि मदरसों का सर्वे कराकर सिर्फ मुसलमानों को टारगेट किया जा रहा है. सर्वे अगर कराना ही है तो सरकारी स्कूलों, विद्या मंदिर और जिन स्कूलों को आरएसएस चलाती है, उनका भी कराओ. इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि मदरसों में शिक्षक पढ़ा रहे हैं, उन्हें तनख्वाह तक नहीं मिल रही है. इन शिक्षकों को सिर्फ 5 साल में 5 महीने की सैलरी मिली है.
ओवैसी के आरोपों के खिलाफ बीजेपी के फायरब्रांड नेता व केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने मोर्चा संभालते हुए उन्हें उसी भाषा में जवाब देने में जरा भी कंजूसी नहीं बरती. उन्होंने कहा कि असदुद्दीन ओवैसी के डीएनए में जिन्ना है और वो जिन्ना की भाषा बोलते हैं. उनको हर अच्छाई में केवल बुराई नजर आती है. वे केवल मुसलमानों को बरगलाने का काम करते हैं. इस सर्वे का मतलब मदरसों में अच्छी शिक्षा देना है. क्या मदरसे के बच्चों को अच्छी और विज्ञानयुक्त शिक्षा लेने का हक नहीं है. क्या बैरिस्टर बनने का अधिकार सिर्फ ओवैसी को है?
दरअसल, योगी सरकार ने सर्वे कराने का फैसला क्यों लिया, उसकी भी अलग कहानी है. राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने मदरसों का सर्वे करवाए जाने का अनुरोध किया था. इसके लिए उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा परिषद के रजिस्ट्रार की ओर से सरकार को पत्र भेजा गया था. सरकार ने इसे गंभीरता से लेते हुए सभी जिलाधिकारियों को पत्र लिख कर प्रदेश के सभी गैर मान्यता प्राप्त मदरसों का सर्वे करने का आदेश देने में जरा भी देर नहीं लगाई.
आदेश के मुताबिक एसडीएम के नेतृत्व में एक टीम बिना मान्यता वाले मदरसों की संख्या, सुविधाएं और छात्र-छात्राओं की स्थिति का सर्वे (Madrasa Sruvey) करेगी. जिलाधिकारियों को सर्वे रिपोर्ट 25 अक्टूबर तक सरकार को सौंपनी है. अब सवाल उठता है कि इस सर्वे से क्या वाकई कट्टरपंथ पर नकेल कस जायेगी और मुस्लिम बच्चों को आधुनिक व राष्ट्र से जोड़ने वाली शिक्षा मिलने लगेगी?
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