बिहार की राजनीति में परिवारों के बंटवारे की जो शुरुआत हुई है,वह जल्द थमती हुई नहीं दिखती. केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के परिवार में हुए राजनीतिक विभाजन की आंच अब लालू प्रसाद यादव के कुनबे पर भी आती दिखाई दे रही है. उनके बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने जिस तरीके से बगावती तेवर अपना रखे हैं, उसे देखकर तो यही लगता है कि लालू यादव को जीते-जी ही अपनी राजनीतिक विरासत का बंटवारा करने पर मजबूर होना पड़ सकता है. बिहार की सियासत में ये सब जानते हैं कि अपने छोटे भाई तेजस्वी यादव के मुकाबले तेज प्रताप ज्यादा बड़बोले हैं और वे बगैर सोचे-समझे अक्सर इतना कुछ बोल जाते हैं कि पूरे परिवार को शर्मिंदगी झेलनी पड़ती है.
अब तेज प्रताप ने बेहद संगीन आरोप लगाकर आरजेडी की राजनीति में भूचाल ला दिया है. उन्होंने किसी नेता का नाम लिए बगैर कहा है कि उनके पिता लालू यादव को दिल्ली में बंधक बना लिया गया है. उनका दावा है कि लालू यादव को पटना नहीं आने दिया जा रहा है. उनके मुताबिक चार-पांच लोग इसमें शामिल हैं, जो पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने का सपना देख रहे हैं. ये सही है कि लालू यादव को जेल से बाहर आये, काफी वक्त हो चुका है और इस दौरान लालू सिर्फ एक ही बार पटना गए हैं, बाकी समय वे दिल्ली में ही आराम फरमा रहे हैं.शायद इसीलिए तेज प्रताप ने ये कहते हुए अपना दर्द बयान भी किया कि "हमने पिता जी से बात की कि हमारे साथ चलिए, पटना चलिए, हम साथ-साथ में रहेंगे. लेकिन कुछ लोग हमारे पिता को आने नहीं दे रहे हैं. बंधक बनाकर रखा हुआ है दिल्ली में.”लेकिन ये समझ से परे है कि उन्होंने ऐसे चार-पांच नेताओं के नाम आखिर सार्वजनिक क्यों नहीं किये और इसके पीछे उन्हें कौन-सा डर सता रहा है?
तेज प्रताप के आरोप को अगर सही मान भी लें तो फिर सवाल उठता है कि राजनीति में घाट-घाट का पानी पी चुके लालू क्या इतने नासमझ हैं या फिर इतने असहाय हो चुके हैं कि वे चंद लोगों के इशारों के मुताबिक अपनी जिंदगी जियेंगे? हालांकि आरजेडी नेताओं के मुताबिक तेजप्रताप के इस आरोप में कोई दम नहीं है.सच तो ये है कि लालू दिल्ली में अपना ईलाज करा रहे हैं और डॉक्टर की सलाह पर ही वे यहां रुके हुए हैं.
हालांकि, तेज प्रताप ने एक अलग संगठन बनाकर परिवार व पार्टी में बगावत का बिगुल तो पहले ही बजा दिया है. पिछले अगस्त में आरजेडी के बिहार अध्यक्ष जगदानंद सिंह से शुरु हुई तनातनी के बाद तेजप्रताप ने ‘छात्र जनशक्ति परिषद’ के नाम से अलग संगठन बनाकर पार्टी को चुनौती दे डाली है. दरअसल, जगदानंद सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने की वजह भी है.आरजेडी की छात्र इकाई के अध्यक्ष पद से आकाश यादव को हटाने के बाद ही तेज प्रताप यादव ने ये कहते हुए बगावत का परचम थाम लिया कि इस तरह से किसी को पद से हटाया जाना पार्टी संविधान के खिलाफ है.जगदानंद सिंह की तुलना हिटलर से करते हुए अपनी उपेक्षा से नाराज़ तेजप्रताप ने तब ये भी कहा था कि "जब पिताजी यहां थे तो पार्टी का गेट हमेशा खुला रहता था मगर उनके जाने के बाद बहुत लोगों ने मनमानी करनी शुरू कर दी है. कुर्सी किसी की बपौती नहीं है."
हालांकि जिन लोगों ने मुगल इतिहास को पढ़ा है, वे यह जानते होंगे कि मुगल सम्राट शाहजहाँ के बेटे औरंगज़ेब ने अपने बड़े भाई दारा शिकोह का सिर क़लम करवा कर हिंदुस्तान के सिंहासन पर किस तरह से अपना कब्ज़ा जमाया था.लालू के खानदान में भी कुछ उसी तरह की कहानी दोहराने के आसार नज़र आ रहे हैं.फर्क सिर्फ इतना है कि यहां बड़े के मुकाबले छोटा भाई राजनीतिक रुप से ज्यादा ताकतवर है.लालू की सियासत को नजदीक से समझने वाले मानते हैं कि सत्ता पाने की भूख तो दोनों ही भाईयों में है लेकिन कोई तो ऐसा है,जो इन्हें आपस में लड़वाकर अपना सियासी फायदा देख रहा है.
शायद इसीलिए सियासी गलियारों में ये सवाल उठ रहा है कि दो भाइयों के बीच लड़ाई के बीज बोने वाला और बड़े भाई को छोटे के खिलाफ बग़ावत के लिए तैयार करने वाला नेता आखिर कौन है.वह आरजेडी से ही जुड़ा हुआ है या फिर कोई बाहरी नेता है? जाहिर है कि कोई तो ऐसा है,जो पर्दे के पीछे से लालू के परिवार में फुट डलवाकर अपना सियासी भविष्य सुरक्षित करना चाहता है.
वैसे इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता कि बिहार की नीतीश कुमार सरकार को अगर कहीं से ज्यादा बड़ा खतरा है, तो वह आरजेडी से ही है क्योंकि तेजस्वी एक विकल्प के तौर पर वहां उभर रहे हैं.वैसे याद दिला दें कि पिछले साल सरकार बनने के ठीक बाद लालू प्रसाद पर आरोप लगा था कि वह जेडीयू के विधायकों को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि बिहार में तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी की सरकार बन जाए. हालाँकि ऐसा हुआ नहीं, इसलिये राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर आरजेडी में फूट पड़ी और उसका विभाजन हो गया तो इसका सबसे ज्यादा फायदा नीतीश कुमार को ही होगा.हालांकि राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान एलजेपी के टूटने का जिम्मेदार नीतीश कुमार को ही मानते हैं.
अब बड़ा सवाल ये है कि लालू यादव क्या अपने दोनों बेटों के बीच सुलह कराके उन्हें संभाल पाएंगे या फिर दिल पर पत्थर रखते हुए परिवार का बंटवारा करने को मजबूर होंगे?
नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.