जाहिर है हम क्रिकेट की दुनिया से बाहर आकर बात कर रहे हैं. वक्त-बेवक्त या यूं कहें कि हर वक्त क्रिकेट से बाकी खेलों की तुलना करना ठीक भी नहीं है. फिलहाल खेल के मैदान से दो बड़ी खबरें हैं- पहली कि भारत ने हॉकी का एशिया कप जीत लिया है. दूसरी कि किदांबी श्रीकांत ने प्रतिष्ठित बैडमिंटन चैंपियनशिप डेनमार्क ओपन को जीत लिया है. हॉकी में भारतीय टीम फिलहाल एशिया की नंबर-एक टीम है इसलिए उससे उम्मीदें भी थीं लेकिन श्रीकांत का खिताब उम्मीदों से कहीं बढ़कर है. लिहाजा बात किदांबी श्रीकांत की करते हैं और उनके बहाने बैडमिंटन के खेल की करते हैं.


बैडमिंटन में इस वक्त भारतीय खिलाड़ियों की कामयाबी पर दुनिया भर की नजर है. बड़े बड़े टूर्नामेंट्स में ना सिर्फ भारतीय खिलाड़ी उलटफेर कर रहे हैं बल्कि ‘पोडियम फिनिश’ कर रहे हैं. पीवी सिंधु, सायना नेहवाल, किदांबी श्रीकांत, एचएस प्रनॉय जैसे खिलाड़ी के अलावा करीब आधा दर्जन खिलाड़ी ऐसे हैं जो लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं. अच्छी बात ये है कि हर चैंपियनशिप में कोई नया स्टार देश को गर्व के लम्हें दे रहा है.

डेनमार्क ओपन में भी पीवी सिंधु भले ही शुरूआती दौर में ही बाहर हो गई लेकिन सायना नेहवाल ने चिर प्रतिद्दी कैरोलिना मारिन को हराकर अपने सफर की शुरूआत की. उन्होंने क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय किया लेकिन वहां वो हार गईं. ऐसे में किदांबी श्रीकांत ने देश को जीत दिलाई. उन्हें फाइनल में आधे घंटे से भी कम समय में जीत मिली. उन्होंने कोरिया के ली ह्यून को 21-10, 21-5 से एकतरफा मैच में हराया. इससे पता चलता है कि भारत में बैडमिंटन के स्तर में शानदार इजाफा हुआ है.

2008 ओलंपिक से शुरू हुआ था सिलसिला
साल 2008 की बात है. बीजिंग ओलंपिक में सायना नेहवाल ने क्वार्टर फाइनल तक का सफर तय किया था. हारने के बाद मायूस सायना नेहवाल सीधे भारत लौटी थीं. उन्होंने एक नए खिलाड़ी की तरह ओलंपिक से ‘फ्री’ होने के बाद घूमने फिरने में बिल्कुल समय नहीं गंवाया. वो वापस लौटीं और जमकर पसीना बहाया. 2012 में उन्हें ओलंपिक का ब्रॉंज मेडल मिला. ये कामयाबी हासिल करने वाली वो पहली भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी बनी थीं. 2016 में उनकी कामयाबी से एक कदम आगे बढ़कर पीवी सिंधु ने ओलंपिक का सिल्वर मेडल जीता. जो अपने आप में इतिहास दर्ज कर गया.

इसके अलावा भारतीय पुरूष खिलाड़ियों ने भी मौके मौके पर बड़े उलटफेर किए. इसमें अजय जयराम, किदांबी श्रीकांत और पी कश्यप जैसे खिलाड़ियों का नाम लिया जा सकता है. वूमेंस डबल्स में ज्वाला गुट्टा और अश्विनी पोनप्पा की जोड़ी ने भी कॉमनवेल्थ खेलों समेत कुछ बड़ी प्रतियोगिताओं में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन बाद में ये जोड़ी अपने रंग में नहीं दिखी. फिलहाल तो लंबे वक्त से ये दोनों खिलाड़ी साथ नहीं खेल रहे हैं. ओलंपिक के अलावा पिछले एक दशक में एक दर्जन से ज्यादा बड़े टूर्नामेंट्स में भारतीय खिलाड़ियों का दबदबा रहा. इसमें कई सुपरसीरीज भी शामिल हैं.

कोच पुलेला गोपीचंद को जाता है श्रेय   
बैडमिंटन आज जिस ऊंचाई पर है उसका श्रेय भारतीय टीम के कोच पुलेला गोपीचंद को जाता है. गोपीचंद कमाल के कोच हैं. उनकी काबिलियत और विश्वसनीयता सवालों से परे है. हैदराबाद में अपनी एकेडमी से वो हर साल नए-नए स्टार निकाल रहे हैं. इसके पीछे है उनकी मेहनत, समर्पण और लगन. ये वही गोपीचंद हैं जिन्होंने बतौर खिलाड़ी प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड ओपन  बैडमिंटन चैंपियनशिप जीती थी लेकिन चोट की वजह से उनका करियर जल्दी ही खत्म हो गया. अब उनके अधूरे सपने पूरे करने के लिए उनके तैयार किए गए खिलाड़ी हैं. खेल की दुनिया में गोपीचंद की इज्जत ही अलग है. हाल ही में सायना नेहवाल उनके पास वापस लौटी हैं.

इस बात का जिक्र इसलिए करना जरूरी है क्योंकि पिछले दिनों कुछ विवाद के बाद वो कोच विमल कुमार के पास चली गई थीं. दरअसल, गोपीचंद की कोचिंग को लेकर बीच बीच में लोगों ने ऊंगलियां उठाने की कोशिश की है. ऐसे लोगों को शिकायत है कि गोपीचंद कुछ खिलाड़ियों पर ज्यादा ध्यान देते हैं. हालांकि उन पर लगे इस तरह के आरोप जल्दी ही दम तोड़ देते हैं. उनकी मंशा पर सवाल खड़ा करना सही नहीं. नतीजा बैडमिंटन में अक्सर अच्छी खबरें आती हैं. ये वही गोपीचंद हैं जिन्होंने लंदन ओलंपिक्स में सायना के मेडल जीतने के बाद कहा था कि उस रोज अगर वो मर भी जाते तो उन्हें जिंदगी से कोई अफसोस नहीं रहता.