इस साल मार्च में एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने दुनिया के 30 सबसे अधिक प्रदूषित शहरों की जो सूची जारी की थी, उसमें देश की राजधानी के नाते दिल्ली अव्वल नंबर पर थी. हालांकि उसी लिस्ट में दिल्ली के अलावा अन्य 21 शहर भी भारत के ही हैं और वे सभी उत्तरप्रदेश व हरियाणा में हैं. उस लिहाज़ से दिल्ली के लोगों को साफ हवा उपलब्ध कराने के मकसद से मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सर्दियों के मौसम में प्रदूषण से निपटने के लिए सोमवार को राजधानी का जो 10 सूत्रीय 'विंटर एक्शन प्लान' (Winter Action Plan) जारी किया है, उसकी सराहना की जानी चाहिये. लेकिन दिल्ली के दो पड़ोसी राज्यों हरियाणा व उत्तरप्रदेश के सहयोग के बिना उनकी ये मुहिम कामयाब नहीं हो सकती. लिहाज़ा,बड़ा सवाल ये है कि बीजेपी सरकारों वाले ये दोनों राज्य ईमानदारी से इसमें सहयोग देंगे जिनका केजरीवाल सरकार से अक्सर छत्तीस का आंकड़ा बना रहता है?
राजधानी की हवा को स्वच्छ बनाने के लिए केजरीवाल ने कई उपाय करने का एलान किया है जिसमें कचरा जलाने, धूल और वाहनों के धुएं से होने वाले प्रदूषण की जांच करने और उस पर जुर्माना लगाने के लिए कई टीमों का गठन किया गया है. लेकिन सर्दियों में दिल्ली की हवा को जहरीला बनाने में सबसे बड़ा योगदान इन दो पड़ोसी राज्यों में किसानों द्वारा पराली जलाने का ही होता है. दिल्ली के गांवों में तो पराली के लिये डीकंपोजर का इंतज़ाम सरकार ने कर दिया है लेकिन हरियाणा व यूपी ने अभी तक ऐसा कुछ नहीं किया है. जाहिर है कि किसान तो पराली हर हाल में जलाएंगे ही और यही दिल्लीवासियों व सरकार के लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है.
इसीलिये केजरीवाल ने भी इस पर चिंता जताई है कि केंद्र और पड़ोसी राज्यों ने किसानों द्वारा पराली को जलाने से रोकने के लिए कुछ नहीं किया, जिससे सर्दियों के मौसम में वायु प्रदूषण होगा. उन्होंने केंद्र और दिल्ली के पड़ोसी राज्यों से अपील की कि वे पराली के प्रबंधन के लिए बायो-डीकंपोजर का मुफ्त छिड़काव सुनिश्चित करें जैसा कि उनकी सरकार राजधानी में कर रही है. राजनीतिक मतभेद अपनी जगह हैं लेकिन लोगों (खासकर बच्चों व बुजुर्गों) की जिंदगी बचाने के लिए केजरीवाल के सुझाव पर दोनों पड़ोसी सरकारें आखिर अमल क्यों नहीं कर रहीं,ये समझ से परे है.
फिलहाल तो राजधानी में प्रदूषण की स्थिति ठीक मानी जा रही है लेकिन ज्यों ही पराली जलाने से उठा धुंआ दिल्ली को अपनी आगोश में लेगा, तब प्रदूषित हवा में सांस लेना ही सबकी मजबूरी बन जायेगी. केजरीवाल का दर्द अपने स्थान पर जायज़ है कि केंद्र सरकार को कई बार आगाह करने के बावजूद उन्होंने कुछ नहीं किया तो अब आस-पास के राज्यों के किसानों को पराली तो जलानी ही पड़ेगी जिससे कुछ दिनों में हम दिल्ली में प्रदूषण होते देखेंगे. उन्होंने दोनों पड़ोसी राज्य सरकारों से हवा को साफ करने के लिए मिलकर काम करने की अपील करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार ने धूल प्रदूषण की जांच के लिए निर्माण स्थलों के निरीक्षण के लिए 75 टीमों का गठन किया है और शहर में प्रदूषण हॉटस्पॉट की निगरानी के लिए विशेष टीमें भी होंगी. ऐसे ही इंतज़ाम अगर दोनों राज्यों में भी हो जाएं, तो प्रदूषण रोकने में काफी हद तक सफलता मिलेगी.
स्विस संगठन 'IQ एयर'की तरफ से इस साल मार्च में जो लिस्ट जारी की गई, वह वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट, 2020 का हिस्सा है. उसी रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 2019 के मुकाबले 2020 में हालांकि दिल्ली की वायु गुणवत्ता (Air Quality) में सुधार हुआ है लेकिन सुधार के बावजूद दिल्ली दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में 10वें नंबर पर है. लेकिन राजधानी शहरों की बात करें, तो दिल्ली दुनिया का सबसे अधिक प्रदूषित शहर है.
दिल्ली के अलावा 21 दूसरे शहर हैं- उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद, बुलंदशहर, बिसरख जलालपुर, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, आगरा और मुजफ्फरनगर. हरियाणा में फरीदाबाद, जींद, हिसार, फतेहाबाद, बंधवाड़ी, गुरुग्राम, यमुनानगर, रोहतक और धारुहेड़ा जबकि राजस्थान में भिवाड़ी और बिहार का मुजफ्फरपुर इसमें शामिल है.
इन शहरों में प्रदूषण का स्तर PM 2.5 के आधार पर मापा गया है.रिपोर्ट में Covid-19 लॉकडाउन के प्रभावों और दुनिया भर में पीएम 2.5 प्रदूषकों में आए बदलाव को भी बताया गया है. भारत में प्रदूषण के मुख्य कारक हैं- परिवहन, भोजन पकाने के लिए ईंधन जलाना, बिजली उत्पादन, उद्योग-धंधे, विनिर्माण कार्य, कचरा जलाना और समय-समय पर पराली जलाया जाना. रिपोर्ट के अनुसार, "भारत के शहरों में पीएम 2.5 प्रदूषकों का सबसे बड़ा स्रोत परिवहन क्षेत्र है." यानी, डीज़ल चलित वाहनों का प्रदूषण फैलाने में सबसे बड़ा योगदान है.
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