यूपी चुनाव से पहले वरुण गांधी की बग़ावत कोई नया गुल खिलायेगी?
गांधी परिवार की विरासत के दूसरे चिराग़ समझे जाने वाले वरुण फिरोज़ गांधी ने अभी पूरी तरह से बीजेपी से बगावत नहीं की है. लेकिन किसान आन्दोलन और लखीमपुर खीरी की घटना को लेकर उन्होंने जो बागी तेवर अपनाये हैं, उसकी सजा पार्टी ने आज उन्हें देकर खुली बगावत करने का रास्ता और आसान कर दिया है. बीजेपी ने उन्हें व उनकी मां मेनका गांधी को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया है. अब सवाल ये है कि लगातार तीन बार से बीजेपी के सांसद और अपने तेजतर्रार भाषणों से अलग पहचान बनाने वाले 41 बरस के वरुण गांधी अपमान का ये घूंट पीकर बीजेपी में ही बने रहेंगे या फिर यूपी चुनाव से पहले अपने चचेरे भाई-बहन राहुल-प्रियंका का साथ देकर उनके हाथ मजबूत करेंगे?
गुरुवार की सुबह ही उन्होंने लखीमपुर हिंसा को लेकर दोबारा एक ट्वीट करते हुए अपनी ही सरकार को फिर से कठघरे में खड़ा करने की हिम्मत दिखाई थी, जिसके कुछ घंटे बाद ही उन्हें कार्यकारिणी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इस ट्वीट में उन्होंने लिखा था, "वीडियो बिल्कुल साफ है. हत्या के जरिए प्रदर्शनकारियों को चुप नहीं कराया जा सकता. गिराए गए किसानों के निर्दोष खून के लिए जवाबदेही होनी चाहिए और अहंकार और क्रूरता का संदेश हर किसान के दिमाग में आने से पहले उन्हें न्याय दिया जाना चाहिए."
चूंकि, उनकी ये बात पार्टी लाइन से बिल्कुल उलट है जिसे आलाकमान भला कैसे बर्दाश्त करता, सो उसने ये कार्रवाई करके आगे के लिए बीबी संदेश दे दिया. लेकिन वरुण को शायद पार्टी के मुकाबले सच का साथ देना ज्यादा उचित लगा, लिहाज़ा उन्होंने मारे गए बेगुनाह किसानों के प्रति अपनी भावना व्यक्त करने के लिए कड़वे शब्दों का इस्तेमाल करना जरुरी समझा क्योंकि सच हमेशा कड़वा ही होता है.
हालांकि, ये कोई पहला मौका नहीं है, जब वरुण ने पार्टी लाइन से अलग हटकर अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सबके सामने रखी हो. ये सिलसिला पिछले सात-आठ से चल रहा है, जब उन्होंने सार्वजनकि मंचों से बीजेपी की नीतियों के बिल्कुल उलट अपनी बात कहने में जरा भी संकोच नहीं किया है. भ्रष्टाचार के खिलाफ जब अन्ना हज़ारे ने दिल्ली में आंदोलन किया था, तब वरुण गांधी ही एकमात्र बीजेपी के ऐसे सांसद थे जिन्होंने न सिर्फ खुलकर साथ दिया बल्कि उनके मंच पर जाकर भाषण भी दिया. तब बीजेपी नेतृत्व ने उनसे कोई जवाब-तलब नहीं किया था कि वो अन्ना के मंच पर क्यों गए थे क्योंकि भले ही बीजेपी ने उस आंदोलन का प्रत्यक्ष तौर पर समर्थन नहीं किया. लेकिन उससे सियासी फायदा तो बीजेपी को भी मिलना ही था, जो 2014 में उसे मिला भी.
अब जबकि पूरी सरकार किसान आंदोलन के खिलाफ है, ऐसे में वरुण गांधी शुरुआत से ही किसानों के पक्ष में खड़े रहकर अपनी ही सरकार पर लगातार ये दबाव बनाते रहे हैं कि बातचीत के जरिये इसका समाधान जल्द किया जाये.
तीन कृषि कानूनों को लेकर 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में किसानों की महापंचायत हुई थी जिसमें किसान नेताओं ने पहली बार ये एलान किया था कि यूपी के चुनाव में इस बार डंके की चोट पर बीजेपी को वोट से चोट दी जायेगी. वरुण गांधी ने इसी महापंचायत का वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा था कि "मुजफ्फरनगर में लाखों किसानों जमा हुए हैं. ये हमारे अपने लोग हैं, हमें उनसे सम्मानजनक तरीके से दोबारा बातचीत शुरू करने की जरूरत है. उनका दर्द समझने की जरूरत है और आम सहमति बनाने के लिए बात करने की जरूरत है." लेकिन केंद्र सरकार ने उनकी बात पर गौर करने की कोई जरुरत ही नहीं समझी.
लखीमपुर खीरी की घटना में किसानों को कुचले जाने का वीडियो जब वरुण के हाथ लगा, तो उन्होंने 5 अक्टूबर को इसे ट्वीटर पर शेयर करते हुए लिखा- "लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ियों से जानबूझकर कुचलने का यह वीडियो किसी की भी आत्मा को झकझोर देगा. पुलिस इस वीडियो का संज्ञान लेकर इन गाड़ियों के मालिकों, इनमें बैठे लोगों, और इस प्रकरण में संलिप्त अन्य व्यक्तियों को चिन्हित कर तत्काल गिरफ्तार करे."
हालांकि इस मामले के आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग उठाने से पहले इस घटना की सीबीआई जांच कराने के लिए वे सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र भी लिख चुके हैं. योगी को लिखे पत्र में वरुण गांधी ने कहा था कि किसानों को कुचलने की घटना में शामिल लोगों पर सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि तीन अक्टूबर को विरोध-प्रदर्शन के किसानों को निर्दयतापूर्वक कुचलने की जो हृदय विदारक घटना हुई, उससे देश के नागरिकों में पीड़ा और रोष है.'
एक दिन पहले ही गांधी जयंती मनाई गई और उसके बाद हमारे अन्नदाताओं की हत्या की गई, यह किसी भी सभ्य समाज में अक्षम्य है." वरुण गांधी ने सीएम से मामले के सभी संदिग्धों की पहचान कर हत्या का मुकदमा दायर कर सख्त सजा सुनिश्चित करने की मांग की थी.
इससे पहले भी वरुण गांधी ने सीएम को चिट्ठी लिखकर गन्ने की कीमत 400 रुपये प्रति क्विंटल तक देने की मांग करते हुएकहा था कि महंगाई बढ़ गई है, जिससे किसानों की लागत भी ज्यादा आ रही है. ऐसे में गन्ने के दाम बढ़ाए जाएं. लेकिन योगी सरकार ने उसे भी अनसुना कर दिया.चूंकि वरुण गांधी जिस पीलीभीत इलाके से जीतकर आते हैं, वो तराई का क्षेत्र है और किसान वोटर काफी अहम और निर्णायक भूमिका में है. खासकर सिख वोटर जो उनकी जीत में अहम भूमिका अदा करता है. इसीलिये वे लगातार उनसे जुड़े मुद्दे उठाते रहे हैं.
दरअसल,मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मेनका गांधी और वरुण दोनों में से किसी एक को मंत्री बनाये जाने की उम्मीद थी. लेकिन वह तो दूर, मां-बेटे को पार्टी में ही कोई बड़ी जिम्मेदारी न देकर साइड लाइन कर दिया गया. पार्टी कार्यकारिणी से हटाकर अब उन्हें पूरी तरह से हाशिये पर धकेल दिया गया. बताते हैं कि प्रियंका गांधी और वरुण के बीच पिछले कुछ सालों में आपसी सुख-दुख साझा करने की काफी अच्छी केमिस्ट्री बन चुकी है. देखते हैं कि अब वो केमिस्ट्री क्या गुल खिलाती है?
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