जीवन के हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रहीं महिलाएं अब तमिलनाडु के मंदिरों में पुजारी भी बन सकेंगी. राज्य सरकार के इस फैसले का स्वागत इसलिये भी किया जाना चाहिये कि इससे न सिर्फ सदियों से चली आ रही यह रुढ़िवादी परंपरा टूटेगी कि पूजा-पाठ करने-करवाने पर सिर्फ पुरुष पुजारी का ही हक़ है बल्कि यह समाज में एक बेहतर बदलाव लाने की शुरुआत भी करेगा. दूसरे राज्यों को तमिलनाडु सरकार के इस कदम से प्रेरणा लेनी चाहिये, खासकर जहां बीजेपी की सरकार है.


हालांकि इस फैसले पर बहस भी छिड़ गई है और सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने यह कहते हुए इसका विरोध भी किया है कि अगर स्टालिन सरकार में हिम्मत हो तो वह महिलाओं को मस्जिद का मौलवी या चर्च का पादरी बनाकर दिखाये. लेकिन बीजेपी समेत अन्य धार्मिक संगठनों ने इस निर्णय का स्वागत किया है.


वैसे भी गौर करने वाली बात यह है कि प्राचीन समय से ही तमिल संस्कृति में हर तरह के लोगों को मंदिरों में पुजारी के तौर पर नियुक्त करने की परंपरा रही है. चाहे वे दलित हों या फिर महिलाएं. लेकिन सरकार के स्तर पर ऐसा पहली बार होगा. तमिलनाडु में हिंदू मंदिरों के प्रशासन के प्रभारी मंत्री शेखर बाबू के मुताबिक सिर्फ उन महिलाओं को पुजारी के तौर पर नियुक्त किया जाएगा जिन्हें 'आगम शास्त्र' के बारे में जानकारी हो.


बता दें कि आगम शास्त्र मंदिरों में पूजा करने की एक विधा है. इस तरह के विचार को सामाजिक स्वीकृति के बारे में पूछे जाने पर, शेखऱ बाबू ने कहा कि वो उन सभी पहलुओं और अन्य व्यावहारिक चीज़ों पर भी विचार करेंगे. उनके मुताबिक इसमें मासिक धर्म के दौरान अनुष्ठानों से दूर रहने के लिए महिलाओं के लिए पांच दिन की छुट्टी भी शामिल है.


विभाग ने सभी हिंदुओं को अर्चक (पुजारी) पाठ्यक्रम की योजना बनाई है. विभाग द्वारा प्रबंधित मंदिरों में पुजारी बनने की इच्छुक महिलाओं को नियुक्त करने से पहले आवश्यक प्रशिक्षण भी दिया जायेगा.


बता दें कि महिलाओं को तमिलनाडु में पुजारी बनाने को लेकर लंबा विवाद रहा है. साल 2008 में मद्रास हाईकोर्ट ने एक आदेश में एक महिला पुजारी को उनके पिता की मृत्यु के बाद मंदिर में पूजा कराने की अनुमति दी थी. 


महिला के पिता उसी मंदिर में पुजारी थे. हालांकि उनके पिता की 2006 में मृत्यु हो गई थी. लेकिन पिता के बीमार होने के कारण बेटी साल 2004 से ही उस मंदिर में पूजा कर रही थी. लेकिन उनकी मृत्यु के बाद गांववालों ने इसे हिन्दू धर्म व संस्कृति के खिलाफ बताते हुए इस पर आपत्ति जताई थी. 


जिसके बाद उस महिला ने मद्रास हाई कोर्ट में याचिका डाली. कोर्ट ने फैसले में कहा कि कोई भी कानून महिलाओं को मंदिर में पुजारी बनने से नहीं रोकता है. कोर्ट ने यह भी कहा था कि जिस मंदिर की बात हो रही है, उसमें एक देवी की मूर्ति है और यह काफी विरोधाभासी है कि एक महिला को उस मंदिर में पुजारी बनने से रोका जा रहा है.


तमिलनाडु सरकार अर्चकर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष रंगनाथन के मुताबिक यह घोषणा और कुछ नहीं बल्कि पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के विचार को आगे ले जाना है, जो सभी मोर्चों पर जाति की बाधाओं को तोड़ना चाहते थे.जबकि सत्याबाबा ट्रस्ट के सत्यबामा अम्मायार कहते हैं कि "तमिल संस्कृति और परंपरा ने मंदिरों में महिलाओं को प्राथमिकता दी है.लेकिन आर्यों ने देशी प्रथाओं को नष्ट कर दिया और महिलाओं के प्रति भेदभाव दिखाया."


अब देखने वाली बात होगी कि तमिलनाडु सरकार की इस घोषणा से कितनी महिलाएं मंदिरों में पुजारी के तौर पर नियुक्त होंगी. इस पूरी प्रक्रिया में क्या चुनौतियां आएंगी और सरकार उनसे किस तरह से निपटेगी. 



(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)