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महिला आरक्षण विधेयक और समर्थन-विरोध की राजनीति... जानिए राजीव गांधी पर क्या लगा था आरोप, क्यों रहे BJP के निशाने पर

महिला आरक्षण विधेयक लाया गया ताकि महिलाओं को उनके अधिकार दिए जाएं. महिलाओं को अधिकार की बातें तो सभी पार्टियां करती हैं, लेकिन ये कैसे होगा, इसमें ईमानदारी का अभाव हमेशा से दिखा है. चूंकि, हमारा समाज, हमारा देश सत्तात्मक है, इसलिए इसका असर राजनीतिक दलों में भी देखने को मिलता है. इस स्थिति तक पहुंचने के लिए एक लंबा संघर्ष चला है. दिखावे को ही सही लेकिन लोग महिला आरक्षण बिल के लिए बोलने को तैयार दिख रहे हैं.

महिला आरक्षण दिए जाने की कोशिशों का एक लंबा इतिहास है. लेकिन राजनीतिक इतिहास अगर देखें तो इसे कानून के तौर पर पारित करने को लेकर जहां तक बात है, तो एक आरोप कांग्रेस पर लगता है कि राजीव गांधी के जमाने में जब पंचायती राज विधेयक कानून आया, उस समय हालांकि वो विधेयक गिर गया था. लेकिन  नरसिम्हा राव की सरकार में वो पारित हुआ था.

ऐसे में उसी समय ओबीसी के लिए क्यों नहीं प्रावधान किया गया? यही सवाल लोकसभा में बीजेपी के गोड्डा से सांसद निशिकांत दूबे ने सवाल खड़ा किया है, सोनिया गांधी के ऊपर कि उसी वक्त क्यों नहीं ओबीसी का प्रावधान किया गया?  

राजीव गांधी पर आरोप

हालांकि, इसका जवाब बहुत साधारण है कि 90 के दशक में मंडल कमीशन लागू हुआ था. 90 से पहले ओबीसी को आरक्षण देने का प्रावधान स्वीकार नहीं किया गया था. ऐसे में उससे पहले ये बात लागू होने की कोई बात ही नहीं थी. उसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की तरफ से ये सवाल खड़े किए जा रहे हैं.

ओबीसी को महिला आरक्षण विधेयक में शामिल किया जाए, ये बात उमा भारती ने भी की थी. राष्ट्रीय जनता दल ने की थी. इसके साथ ही, ओबीसी की वकालत करने वाली जितनी भी पार्टियां थी, वो सबने उठाई थी. फिर भी राज्यसभा में विधेयक पारित हुआ था, जिसमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने इसका समर्थन किया था, लेकिन मतभेद के चलते यूपीए सरकार के दौरान ये पास नहीं हो पाया था.

अब बड़ा सवाल ये है कि मतभेद के चलते तत्कालीन यूपीए सरकार में साल 2010 में ये पास नहीं हो पाया था. लेकिन एनडीए सरकार में बीजेपी के नेता न मतभेद मानते हैं न ही उन्होंने इसको पारित करने के लिए कभी पहल की. अब या तो बीजेपी भी माने कि इसमें मतभेद है और लोग चाहते हैं कि ओबीसी का विधेयक में प्रावधान किए वो पास न हो नहीं तो ये बीजेपी को कहना चाहिए कि हमने 9 साल तक इसे पेंडिंग रखा और इसे पारित नहीं किया

सोनिया ने उठाए महत्वपूर्ण सवाल

इसको अलग मिलाकर देखा जाए तो कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी लाइन से हटकर बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल उठाया है कि पिछले 13 साल तक महिलाओं ने इंतजार किया. अब आगे कब तक इंतजार करे ये बताया जाए. ये बात महत्वपूर्ण है कि देश के इतिहास में ऐसा कोई कानून नहीं बना जो कानून बन जाने के बाद लागू कब होगा ये नहीं पता.

हमने अतीत में पहले वाली तारीख में कानून को तो लागू होते हुए देखा है, लेकिन आने वाले समय में कानून लागू होगा, ऐसा हिन्दुस्तान में कभी भी नहीं हुआ. चूंकि इसमें ओबीसी भी शामिल नहीं है, इसलिए ये आगे भी कानून लागू नहीं हो सकता है, क्योंकि ये कोई नहीं जानता है कि आने वाले समय में एनडीए की सरकार रहेगी या नहीं रहेगी. इसलिए छह साल बाद की गारंटी एनडीए सरकार देने की कोशिश न करे.

जहां तक महिला आरक्षण विधेयक के सियासी फायदे की बात है तो इसके ऊपर कैबिनेट बैठक में चर्चा हो जाने के बाद भी किसी बीजेपी नेता या सरकार के मंत्री में ये हिम्मत नहीं थी कि वो ये बता पाएं कि महिला आरक्षण विधेयक लेकर आ रहे हैं. ऐसे में ये जो पर्दे के पीछे काम हो रहा था, इसके पीछे राजनीति भी है, वोट पाने का मकसद भी है, तथ्य को छिपाने की कोशिश भी है और वो सब सामने आ गया है. 

बीजेपी का मकसद आया सामने

ये महिला आरक्षण बिल अभी लागू होना ही नहीं है. अगर ये बात पहले बोल देते तो पहले ही इस पर हंगामा होता. इसलिए, इन्होंने जल्दबाजी में इसे स्पेशल सत्र में निपटा दिया और जल्दी से पारित करा दिया. इसके बाद बीजेपी हमेशा कहेगी कि हमने महिलाओं को आरक्षण दे दिया. पूरी तरह से पांच विधानसभाओं का चुनाव और लोकसभा का चुनाव बीजेपी के दिमाग में इस वक्त घूम रहा है. महिलाओं के प्रति कोई भी इनमें आरक्षण देने वाला भाव नहीं है.    

सबसे बड़ा सवाल ये है कि महिला आरक्षण विधेयक को हम परिसीमन से क्यों जोड़ें. 2010 में ये राज्यसभा में पारित हुआ. साल 2011 में जनगणना हुई थी. उसे आधार क्यों नहीं बनाया जा रहा है? क्यों जनगणना का इंतजार किया जा रहा है? क्यों परिसीमन का इंतजार किया जा रहा है? सीधा सा सवाल ये है कि जब लोकसभा चुनाव 2024 में हो जाएगा तो क्या ये कहा जाएगा कि पीएम या कैबिनेट शपथ न लें जब तक कि परिसीमन नहीं हो जाएगा? जब तक कि नई जनगणना न हो जाए. हम नई सरकार को परिसीमन से नहीं जोड़ रहे हैं. फिर महिला आरक्षण बिल को क्यों जोड़ा जा रहा है? ये सीधे-सीधे दाल में काला है. महिलाओं को मूर्ख बनाया जा रहा है. देश को मूर्ख बनाया जा रहा है. और महिलाओं को कुछ दे दिया इस संदेश के साथ बीजेपी अपना पीठ खुद थपथपाना चाहती है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]

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