अंतराष्ट्रीय महिला दिवस.. यानी महिलाओं के लिए, महिलाओं को समर्पित एक खास दिन. इस दिन सरकार और समाज महिलाओं के विकास और उनके बारे में बताते हैं, सोचते हैं और अपने किए-दिए का लेखा-जोखा करते हैं. हालांकि, आदर्श तो यही है कि कोई एक दिन महिलाओं का नहीं होना चाहिए बल्कि उनका तो पूरा साल होता है, फिर भी एक खास दिन उनको समर्पित किया गया है. यह बताता है कि सरकारें और समाज, वैश्विक से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पर सैद्धांतिक तौर पर तो इस बात को स्वीकार करती ही हैं कि महिलाओं की प्रगति और उन्नति जितनी हुई है, उससे और अधिक करने की जरूरत है. इक्विटी और इक्वलिटी लाने की आवश्यकता है और इसीलिए शायद अंतराष्ट्रीय महिला दिवस को ध्यान रखकर सरकार बहुत से कार्य करती है.  


आधी आबादी कहने के मायने


महिलाएं 'आधी आबादी' से भी संबोधित की जाती है और जब भी देश, दुनिया के विकास और तरक्की की बात होती है तो यह सुनिश्चित किया जाता है कि पूरी आबादी को लेकर आगे बढ़ा जाए, जिसमें आधी आबादी महिलाएं भी शामिल होती है.अगर हम विकास की बात करें तो महिलाओं का योगदान बहुत ही महत्वपूर्ण होता है. लेकिन कभी 'आधी आबादी' का योगदान दिखता है तो कभी 'आधी आबादी' का योगदान नहीं दिख पाता. कभी-कभी सोचा जाता है कि महिलाओं और बच्चियों का योगदान जो विकास के लिए देश को लेकर है, उसको विजिबल कैसे करें, इस पर भी बातचीत हाेती है. ये देश और वैश्विक विकास के लिए बड़ी भूमिका भी अदा करता है. अगर हम अभी भारत की बात करें तो जिस तरह देश की सरकार महिलाओं के विकास  के लिए कदम उठा रही हैं. वो काफी सराहनीय हैं. उसका उदाहरण है कि इस बार 26 जनवरी की परेड में हमने देखा कि जिस तरह महिलाओं ने अलग-अलग बटालियन को लीड किया, तो सिर्फ ये नहीं दिखाया गया कि वो महिलाएं हैं बल्कि दिखाया गया कि महिलाएं एजुकेशन से लेकर हर क्षेत्र में कैसे मजबूत है.



महिलाएं हर क्षेत्र में आगे की ओर बढ़ रही है, चाहे वह एग्रिकल्चर हो या एविएशन. जब महिलाएं दिखती हैं तो लोगों को उनका रोल याद आता है. विकास के सूचक भी बताते हैं कि महिलाएं लगातार आगे पढ़ रही हैं, ज्यादा नौकरियों में जा रही हैं, संसद ने ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक पारित किया है, तो ऐसे में लग रहा है कि देश महिलाओं के साथ तेजी से आगे की ओर बढ़ रहा है.


सशक्त हो रही हैं महिलाएं


स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी महिलाएं मजबूत हुई हैं. कहावत भी है कि जब एक पुरुष पढ़ा-लिखा होता है तो माना जाता है कि एक इंसान पढ़ा लिखा होता है, लेकिन जब एक  महिला पढ़ी-लिखी होती है तो माना जाता है कि पूरा परिवार पढ़ा है. ऐसा ही स्वास्थ्य के मामले में भी है. जब एक महिला परिवार में स्वस्थ्य होती है तो माना जाता है कि पूरा परिवार स्वस्थ्य होता है. क्योंकि महिला परिवार का आधार होती है जो पूरे परिवार का ख्याल रखती है, चाहें वो कामकाजी महिला हो या गृहिणी हों. महिलाओं को इस प्रकार से समाज में जागरूक किया जा रहा है कि वो अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें और खुद सहित परिवार का ध्यान रखें. क्योंकि उनको परिवार की जिम्मेदारी रहती है. अभी भी ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में देखा जा सकता है कि महिला ही वो अंतिम सदस्य होती है जो बाद में खाना खाती है, तो अब जरूरत है कि उन चीजों को बदला जाए. क्योंकि महिला स्वस्थ रही तो पूरा परिवार स्वस्थ रहेगा. समाज में भी अब महिलाओं को अग्रणी बनाने पर काम किया जा रहा है. निर्णय लेने में, आर्थिक मामलों में सशक्त बनाने पर भी काम किया जा रहा है, क्योंकि जितना महिला विकास करेगी, उतना ही परिवार विकास करेगा. परिवार ने विकास किया तो समाज और समाज ने विकास किया तो पूरा देश विकास करता है.


सूचनाएं कम पहुंचती हैं महिलाओं के पास


महिलाओं के लिए इनफॉर्मेशन यानी सूचनाओं को पहुंचाने पर अभी काम करने की जरूरत है. सर्वे में पाया गया है कि देश में 54 प्रतिशत महिलाओं के पास ही अपना फोन है यानी कि अभी भी 46 प्रतिशत ऐसी महिलाएं हैं जिनके पास अपना फोन नहीं है. फोन ही एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से सूचनाएं पहुंचती है चाहें वो वाट्सएप के माध्यम से हो या किसी अन्य तरह से. सबसे अच्छी बात है कि यह रीच ऐसी होती है, जिसके माध्यम से कहीं भी जरूरत होने पर  पहुंच में आसानी होती है . ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को टेक्नोलॉजी से जोड़ने की भी पहल जारी है ताकि महिलाएं ज्यादा से ज्यादा सोच सकें और वो आगे बढ़ सकें. भारत में महिलाओं की शिक्षा की बात करें तो देश में उनके बीच लिटरेसी रेट यानी साक्षरता दर 65 से 66 प्रतिशत के बीच है. इसको सुधारने के लिए सरकार लगातार काम भी कर रही है. 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' जैसी योजनाएं भी कारगर साबित हो रही है. बड़ी समस्या मातृत्व के समय मौत की भी है. इसी क्रम में सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स (SDG) के अंतर्गत ये वैश्विक टारगेट रखा गया है कि 1 लाख मांएं जो जन्म दे रही हैं, उसमें मृत्यु दर को न्यूनतम कैसे करें, उसे 70 से भी कम कैसे ले आया जाए. सरकार के सारे कार्यक्रम भी उस दिशा में जा रहे हैं. अभी करीब तीन लाख महिलाओं की प्रसव के दौरान मृत्यु हो जाती है, उसमें भारत में करीब 50 हजार के आसपास हो जाती है. उसके कई कारण भी है और सरकार उनको दूर करने के लिए कई योजनाएं चला भी रही है.


स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा सबसे जरूरी


सरकार की अभी जो एक प्राथमिकता है, वह है माहवारी के दौरान की स्वच्छता. मेंस्ट्रुअल हाइजीन के दौरान यह ध्यान रखना होता है कि वो कैसे हाइजेनिक रहें, किस प्रकार सेनेटरी पैड का इस्तेमाल और बाद में डिस्पोजल करें. अगर कोई दिक्कत हो तो किन से मिलें, कैसे इलाज करवा सकें?  इन सब पर ध्यान भी जरूरी है. सरकार ने इस बार के बजट में सर्वाइकिल कैंसर के बारे में जो ध्यान दिया है, उसके टीके की बात कही है, वह बताता है कि उसका ध्यान है कि मृत्युतुल्य बीमारियों से महिलाओं को कैसे दूर रखें और बचाव करें. आर्थिक समृद्धि की बात करें तो देश में 31.7% ऐसी महिलाएं हैं जिनका मकान उनके नाम पर अंकित है. इसका मतलब कि बहुत सारी ऐसी महिलाएं है जिनका मकान तो है, लेकिन उनके नाम से नहीं है. ऐसे में सरकार ने भी ध्यान रखा है कि आवास योजना भी महिलाओं के नाम से दिया जाए. ये सब सराहनीय कदम है और कुछ ही समय बाद ये आंकड़े भी बदल जाएंगे. हमारा देश लोकतंत्र है और इसका अहम हिस्सा चुनाव है. अब चुनाव में भी महिलाएं बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं. आंकड़े भी आते हैं कि चुनाव में कितने पुरुष और कितने महिलाओं ने वोट दिया है. राजनीतिक पार्टियां भी महिलाओं को चुनाव मैदान में ला रही है.


बदलाव है, पर कुरीतियां भी बाकी 


हर क्षेत्र में बहुत से बदलाव आ रहे हैं. यह सब इसलिए भी हो रहा है क्योंकि महिलाओं को विजिबल किया जा रहा है कि उनकी प्रगति कैसी है, यानी उनको अब रंगमंच पर जगह मिल रही है. प्रशासन से लेकर शासन और विधि से लेकर अनुशासन तक. देश की वित्त मंत्री भी महिला हैं. हालांकि, बहुत कुछ करने की अभी भी बहुत जरूरत है. देश में बाल विवाह और भ्रूण हत्या आदि रोकने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए गए. सरकार, एनजीओ और कई संस्थानों के काम करने के बावजूद  भी ऐसी घटनाएं जारी है. हम जब आधी आबादी की बात करते हैं. तो आज भी कहीं न कहीं पूरी तरह  से महिलाएं आधी आबादी नहीं हो पाई हैं. इसका एक प्रमुख उदाहरण भ्रूण हत्या है. माना जाता है कि जहां पर नारी रहती है वहां पर देवता रहते हैं. ये समाज की रीतियां हैं. ये हमारी संस्कृति है.  बाद में ये कुछ बदलने लगा. जिसमें लड़कियों को दहेज से जोड़ने से लेकर अन्य कुरीतियां पनपीं और लोग भ्रूण हत्या तक करने लगे.


हालांकि, सरकारें सख्त हुई हैं, लेकिन समाज को भी बदलना होगा. आज भी सरकारी अस्पतालों व अन्य जगहों पर पोस्टर व बैनर लगा होता है जिसमें भ्रूण हत्या रोकने के इश्तिहार लगे होते हैं. इनके जरिए कार्रवाई की जानकारी दी होती है, तो जरूरी है कि सामाजिक जागरुकता बढ़ाई जाए और बताया जाए कि महिलाएं समाज के लिए क्यों जरूरी है, और उनकी कितनी भूमिका है.  समाज की मनोदशा और विचार को बदलना होगा. समाज में महिलाएं भी उतनी ही सशक्त है जितने की पुरूष होते हैं. कहा भी जाता है कि "क्यों ना महिलाओं की हो भागीदारी, क्योंकि हैं वो सब पर भारी "


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