आखिर समाज में क्यों नहीं ख़त्म हो पा रही दहेज लेने-देने की बुराई?
हमारे देश में दहेज प्रथा को गैर कानूनी घोषित किये हुए 60 बरस हो चुके हैं लेकिन अफसोस कि बात है कि ये परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है.समाज के एक बड़े तबके में तो खुलेआम दहेज देने व लेने को शर्म का नहीं बल्कि गर्व का विषय माना जाता है. कुछ जातियों में तो बेटी की शादी पर ज्यादा से ज्यादा दहेज देना और उसकी नुमाइश भी करना उस परिवार का स्टेटस सिंबल समझा जाता है.शिक्षित समाज में भी यह बुराई कम होने की बजाय और अधिक बढ़ रही है जो उस मानसिकता को बताती है कि बेटी को 'पराया धन' समझने व उसे विदा करते वक़्त अपनी हैसियत से भी अधिक दहेज देने की सोच लोगों पर आज भी हावी है.
हाल ही में विश्व बैंक ने एक स्टडी की है जिसमें खुलासा हुआ है कि केरल व पंजाब ऐसे राज्य हैं जहां दहेज प्रथा का प्रचलन सबसे अधिक है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि परिवार गरीब है या अमीर लेकिन दहेज दिये-लिए बगैर शायद ही वहां कोई शादी होती हो. केरल तो देश का सबसे साक्षर राज्य है,जबकि पंजाब को आर्थिक रुप से समृद्घ प्रदेश माना जाता है लेकिन वहां सदियों पुराने इस रिवाज़ को अपनाने की बेड़ियों ने समाज को बेहद मजबूती से जकड़ रखा है.
इस स्टडी में एक और रोचक खुलासा हुआ है कि पिछले कुछ दशकों में देश के गांवों में दहेज प्रथा के मामलों में कमी आई है. हालांकि,ये मामले अब भी सामने आ रहे हैं. लेकिन इसमें कमी होना अच्छा संकेत है और शायद इसे खाप पंचायतों के फैसलों का असर कह सकते हैं. उत्तर प्रदेश व हरियाणा में ऐसे कई गांव हैं जहां की पंचायतों ने दहेज प्रथा को ख़त्म करने के लिए पूरी सख्ती अपना रखी है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने 1960 से लेकर 2008 तक ग्रामीण भारत में हुई 40 हजार शादियों पर यह स्टडी की है.
उन्होंने दावा किया है कि दहज प्रथा के खिलाफ कानून होने के बावजूद 95 फीसदी शादियों में दहेज दिया गया.स्टडी के मुताबिक दहेज प्रथा की वजह से कई बार घरेलू हिंसा भी होती है, जिसकी वजह से पीड़िताओं की मौत भी हो जाती है. भारत के 17 राज्यों पर यह स्टडी की गई है.
शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी के लिए ऐसे राज्यों का चयन किया, जहां 96 फीसदी लोग ग्रामीण हैं. यानी उन्होंने अपनी स्टडी के लिए ग्रामीण भारत पर ही सारा ध्यान केंद्रित किया है. शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी में पाया कि शादी के मौके पर दो परिवारों के बीच होने वाले लेनदेन में काफी बड़ा फर्क होता है.दुल्हन के परिवार की तरफ से दूल्हे या उसके परिवार को दिए गए उपहारों के मूल्य और दूल्हे के परिवार की तरफ से दुल्हन और उसके परिवार को दिए गए उपहारों के मूल्य में काफी अंतर रहा.
उन्होंने बताया, "जहां किसी दूल्हे का परिवार दुल्हन के परिवार को उपहार पर देने पर औसतन 5,000 रुपये खर्च करता है, वहीं, दुल्हन के परिवार की तरफ से दिए जाने वाले उपहार की कीमत सात गुना अधिक होती है, जो कि लगभग 32 हजार रुपये है. यह अंतर काफी बड़ा है और सालों से यही पैटर्न इस्तेमाल किया जा रहा है."
इस रिपोर्ट के अनुसार "केरल में 1970 के दशक से दहेज देने का चलन लगातार और तेजी से बढ़ा है. हाल के सालों में सबसे अधिक औसत दहेज यहीं लिया और दिया गया है." इसके बाद पंजाब का नंबर है जहां के गांवों में होने वाली शादियों में लेनदेन के मामले लगातार तेजी से बढ़ रहे हैं. हालांकि, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पिछले कुछ सालों में औसत दहेज में कमी आई है." इस स्टडी से इतर अगर शहरों की बात की जाये, तो प्रेम-विवाह को छोड़कर शायद ही कोई शादी बगैर दहेज के होती हो.समाज इस बुराई से आखिर कब निज़ात पायेगा?