हमारा देश संविधान से चलता है. यहां पर कंस्टीट्यूशन डेमोक्रेसी है, जहां कानून की काफी अहमियत होती है. कानून के खिलाफ कार्रवाई करने पर चाहे वो सांसद हो या विधायक कोई भेदभाव नहीं होता है. खासकर, निर्भया कांड के बाद से यौन शोषण जैसे गंभीर मामलों पर फौरन कार्रवाई होती है. इसलिए बृजभूषण शरण सिंह मामले पर भी बेहिचक कार्रवाई करनी चाहिए, इस बात से परे कि वो किस पार्टी से जुड़ा सांसद है. पुलिस को जब संज्ञान में बात आती है तो जैसे बाकी केस में एक्शन होता है, ठीक उसी तरह इस मामले में भी होना चाहिए. और जब तक वह व्यक्ति जांच के दायरे में उस संबंधित राजनीतिक दल को अलग कर लेना चाहिए.
इस केस में अब तक क्यों नहीं एक्शन?
इस केस में एक्शन लेना यह उस राजनीतिक दल के विवेक पर निर्भर करता है. एक संवैधानिक लोकतंत्र में जिन चीजों का पालन करना चाहिए वो अभी तक होता हुआ नहीं आ रहा है. इससे पहले लखीमपुर खीरी कांड का मामला जब सामने आया था, उस वक्त भी ये बात आई थी. देखिए मैंडेट से बिल्कुल इस तरह की घटना को नहीं जोड़ना चाहिए. अपराध का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. अगर कोई अपराधी छवि का व्यक्ति चुनाव जीत जाता है तो उसकी सदस्यता अयोग्य करार देने का प्रावधान क्यों है कि अगर उसे 3 साल से ज्यादा की सजा होती है तो वह सांसद और विधायक के पद पर नहीं रहेगा?
आजम खान के मामले में सरकार ने किया. तुरंत उनको अयोग्य करार दिया और चुनाव भी करा लिया. इसलिए मेरा ये कहना है कि कानून एक तरह से सबके ऊपर लागू होना चाहिए और इसे जनादेश से नहीं जोड़ना चाहिए.
पीड़िता को मिलना चाहिए इंसाफ
ये मामला उत्तर प्रदेश या हरियाणा के बीच का नहीं है बल्कि पीड़िता खुले तौर पर सामने आई है, वो अपनी बात कह रही है और पुलिस को संज्ञान लेकर कार्रवाई करनी चाहिए. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी बदनामी हो रही है. महिला खिलाड़ियों का मनोबल गिर रहा है. लेकिन ये सब अपनी जगह है. लेकिन अगर कोई व्यक्ति राजनीतिक तौर पर सफल है तो ऐसे बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं जब चौटाला को जेल हुई, जयललिता और करूणानिधि भी जेल गए. इसलिए मौजूदा कानून का पालन होना चाहिए. राजनीतिक गुना-भाग तो चलता रहेगा.
इस काम में मीडिया या आमलोग हो, जो पब्लिक ओपिनियन बनाने काम करते हैं, उन्हें बात को गलत और सही को सही कहना चाहिए, यही सबसे बड़ा राजधर्म है.
सवाल ये है कि ऐसी स्थिति क्यों आई? यूपी को ही लें- वहां लखीमपुर में एक खास पार्टी वहां से चुनाव जीत गई, इसका मतलब ये नहीं है कि वहां पर वो घटना नहीं हुई. लोग कुचले गए थे. उसके एक कानूनी दृष्टि से देखा जाना चाहिए.
बृजभूषण क्यों मांग रहा सबूत?
क्या महिलाओं के खिलाफ इस तरह के अपराध में सबूत मांगे जाते रहे हैं? ये तो उस राजनीतिक दल के जो लोग हैं, उनसे ये सवाल पूछा जाना चाहिए. लाल बहादुर शास्त्री ने इस्तीफा दिया था, तो क्या वे खुद ट्रेन चला रहे थे. ये हमारे देश का ये आदर्श रहा है कि लोगों ने मिसाल पेश की.
पार्टी को एक्शन में क्या मजबूरी?
मुझे लगता है कि इस तरह के मामलों पर अगर एक्शन लिया जाए तो लोगों में उस पार्टी की छवि और ज्यादा बढ़ेगी. लोग उस राजनीतिक दल को मान-सम्मान से देखेंगे, अगर वो पार्टी महिलाओं को लेकर संवेदनशीलता दिखाएगी.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]