ब्रजभूषण विवाद पर बोले बजरंग-दीपक पूनिया के पूर्व कोच, ऐसे होगा शोषण तो कैसे अखाड़े में लड़ पाएंगी बेटियां
Wrestlers Protest: कुश्ती महासंघ को लेकर तमाम पहलवान जो आज सड़कों पर हैं उसे देखकर हैरानी भी हो रही है और दुख भी हो रहा है. आखिर ये नौबत क्यों आई. देश के बड़े पहलवानों और भविष्य में देश के लिए मेडल लाने वालों के साथ ऐसा बिल्कुल नहीं होना चाहिए. ये काफी गंभीर विषय है, इसे देखकर हम काफी दुखी हैं. अगर खिलाड़ियों और बच्चों के साथ ऐसी हरकतें हो रही हैं तो कैसे हम उनसे मेडल की उम्मीद कर सकते हैं. कौन माता-पिता अपने बच्चों को इस खेल में भेजेगा. इस पर जल्द से जल्द कार्रवाई होनी चाहिए. जो उभरते हुए खिलाड़ी हैं उन पर भी इसका काफी ज्यादा असर होगा. जल्दी से जल्दी इस पर एक्शन लेना चाहिए और अध्यक्ष को बर्खास्त कर दिया जाना चाहिए.
कुश्ती का कैंप लखनऊ में लगाया जाता है, ज्यादातर बच्चे करीब 80 फीसदी से ज्यादा हरियाणा से आते हैं. लड़िकयों के माता-पिता को इस सेंटर के अंदर नहीं घुसने दिया जाता है. जिसकी वजह से उन्हें वहां कमरे लेकर रहना पड़ता है. पेरेंट्स को हॉल में भी नहीं घुसने दिया जाता है. जो बच्चों की तरफ से बातें सामने आई हैं कि कमरे खुले रहते हैं और बाकी तमाम तरह की बातें, जिन पर ध्यान दिया जाना चाहिए.
पूरे देशभर के खिलाड़ियों पर पड़ेगा असर
अगर इस मामले में सख्त कार्रवाई नहीं होती है तो इसका असर सिर्फ खिलाड़ियों पर नहीं बल्कि पूरे देश पर होगा. इन बच्चों की हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी कि इतनी बड़ी ताकत के सामने ये खड़े हैं. जिन पर आरोप लग रहे हैं उन्हें शासन का कोई डर नहीं है, इसीलिए ये गलत काम कर रहे हैं. इनके खिलाफ जल्दी से जल्दी कार्रवाई होनी चाहिए. इनकी हिम्मत सीनियर पहलवानों की वजह से भी हुई है. क्योंकि खिलाड़ी का करियर काफी छोटा होता है. बच्चों के दिल में डर होता है, उन्हें लगता है कि कहीं उनका करियर खत्म न हो जाए. इसी बात का ये लोग फायदा उठाते हैं.
कैसे बनता है एक पहलवान
मैंने दीपक पूनिया और बजरंग पूनिया को ट्रेनिंग दी है और उनका कोच रहा हूं. एक पहलान को बनाने में काफी संघर्ष होता है. दीपक पूनिया के पिता दिल्ली में साइकिल पर दूध बेचते थे. बजरंग के पिता गांव में किसान थे, दूध और घी देकर जाते थे. दीपक और बजरंग काफी छोटे थे जब मेरे पास आए थे. मैंने सोचा था कि ओलंपिक मेडलिस्ट तैयार करूंगा. मैंने अपनी जमीन पर ही अखाड़ा बनाया और उसी में पहलवान तैयार किए. देश में बहुत मेडल आ सकते हैं, अगर बच्चे के साथ बेईमानी ना हो. अगर बच्चा हारता है तो वो बाद में शांत हो जाता है, लेकिन पक्षपात होने पर उसकी हिम्मत टूट जाती है.
महिला पहलवानों का संघर्ष
महिला पहलवानों के संघर्ष की बात करूं तो वो घर से बाहर निकलते ही स्टेडियम में जाते हैं, जहां लोग उन्हें लेकर तरह-तरह की बातें करते हैं. कुश्ती में खासतौर पर काफी मुश्किलें होती हैं. महिला सेंटर में अपने हौसले के साथ एक पुरुष के साथ खुलकर कुश्ती करती है, लेकिन अगर कुछ ऐसी हरकतें होती हैं तो उसके खिलाफ तुरंत एक्शन होना चाहिए.
सरकार को हर बच्चे के लिए सोचना चाहिए, फिर वो चाहे लड़का हो या फिर लड़की हो. सरकार को इसके लिए प्लान बनाना चाहिए कि हर बच्चा खेले. देश मजबूत तभी होगा जब देश के युवा मजबूत होंगे. हमारे संस्कार और संस्कृति ऐसी नहीं रही है. ये जो सब कुछ हो रहा है वो काफी परेशान करने वाला है, इसे रोकने के लिए हर तरह के कदम उठाए जाने चाहिए.
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