चीन: तीसरी बार सत्ता में आने को तैयार बैठे जिनपिंग दुनिया को आखिर किधर ले जाएंगे?
दुनिया की सुपर पावर बन चुके चीन के 145 करोड़ लोगों के लिये आने वाली 16 अक्टूबर बेहद खास दिन है. इसलिये कि उसी दिन ये तय होगा कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping) लगातार तीसरी बार मुल्क की कमान संभालेंगे या फिर पार्टी का कोई और नेता उन्हें टक्कर देने की हिम्मत जुटा पायेगा. दरअसल, 16 अक्टूबर को चीन की सबसे ताकतवर कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की बैठक होगी, जिसमें अगले राष्ट्रपति को चुना जाएगा.
हालांकि जिनपिंग पिछले साल ही CCP में एक अहम प्रस्ताव पास करवाकर चीन के राजनीतिक इतिहास को बदल चुके हैं यानी चीन में अब ये पाबंदी खत्म हो गई है कि कौन, कितनी बार राष्ट्रपति पद पर रह सकता है. मतलब यह कि अगर कम्युनिस्ट पार्टी चाहे, तो जिनपिंग आजीवन इस पद पर बने रह सकते हैं. इसलिये कम्यूनिस्ट पार्टी की इस बैठक पर न केवल चीन बल्कि पूरी दुनिया की नजरें टिकी होंगी. वैसे इससे पहले शी जिनपिंग को लेकर पार्टी के भीतर विरोध की खबरें आई थीं और ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि 69 बरस के शी जिनपिंग को 67 वर्षीय ली केकियांग इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में टक्कर दे सकते हैं.
ली केकियांग चीन में दूसरे नंबर के नेता माने जाते हैं और पोलित ब्यूरो की सात सदस्यीय स्थाई समिति में शामिल हैं. इस स्थाई समिति में शी जिनपिंग, ली केकियांग, वांग हुनिंग, वांग यांग, ली झांसू, झाओ लेजी और हांग झेंग शामिल हैं, लेकिन अब माना जा रहा है कि पार्टी के भीतर जिनपिंग के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ को दबा दिया गया है और इसकी संभावना न के बराबर ही है कि पोलित ब्यूरो का कोई और नेता जिनपिंग को टक्कर देने के लिए मैदान में उतरेगा.
जिनपिंग के तेवरों को देखकर सिर्फ चीन की जनता ही नहीं बल्कि दुनिया भी मान रही है कि वे तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देंगे, जो उन्होंने पिछले 10 साल में इस पद पर रहते हुए जुटाई है. जिनपिंग को तीसरी बार सत्ता में लाने के लिए पार्टी भी कितनी तैयार बैठी है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि CPP ने पार्टी के रिटायर हो चुके सभी बुजुर्ग सदस्यों को हिदायत दी है कि किसी भी तरह की ‘नकारात्नक’ राजनीतिक टिप्पणी न करें. साथ ही उन मुद्दों पर भी चुप रहने को कहा गया है, जिन पर वो शी जिनपिंग से असहमति रखते हैं.
कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (Communist Party of China) के मुखपत्र पीपुल्स डेली में छपे एक लेख में कहा गया था, ‘एक नए युग में पार्टी कैडरों के बीच पार्टी निर्माण को मजबूत करने पर राय.’ पार्टी के सभी रिटायर सदस्यों से कहा गया है कि ‘प्रासंगिक नियमों का सख्ती से पालन करें और जिनपिंग के खिलाफ किसी भी तरह की गलत बयानबाजी न करें.'
चीन की राजनीति पर पकड़ रखने वाले विश्लेषक मानते हैं कि शी जिनपिंग को तीसरा कार्यकाल हासिल करने में कोई दिक्कत नहीं होगी. इस तीसरे कार्यकाल में भी जिनपिंग देश के सबसे ताकतवर इंसान बने रहेंगे और उनके पास दो सबसे शक्तिशाली पद कम्यूनिस्ट पार्टी के महासचिव और सेंट्रल मिलिट्री कमिशन के चेयरमैन का पद भी बरकरार रहेगा. विश्लेषकों का मानना है कि घरेलू और बाहरी चुनौतियों से जूझ रहे चीन में जिनपिंग ने अपराजेय ताकत हासिल कर ली है, जिसका असर आने वाले समय में उनकी नीतियों में भी नजर आएगा और वह 'तानाशाह' भरे फैसले लेने से पीछे नहीं हटेंगे.
हालांकि शी जिनपिंग का एक दशक का कार्यकाल काफी विवादों भरा रहा है. उनकी सरकार ने बहुत क्रूरता के साथ देश में जीरो कोविड नीति लागू की और कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए बहुत कठोर लॉकडाउन लगाए. यह नीति शुरू में तो कारगर रही, लेकिन ओमिक्रोन वेरिएंट आने के बाद यह फेल साबित हो गई. इसके अलावा पिछले कुछ सालों में चीन की आर्थिक विकास दर भी प्रभावित हुई जो लंबे समय से पार्टी की वैधता दिलाने का एक प्रमुख स्रोत रही है. पिछले कुछ समय में वहां युवा बेरोजगारी दर 20 फीसदी तक पहुंच गई है. यही नहीं, चीन में कई बैंकिंग घोटाले और प्रॉपर्टी संकट को लेकर देश में जोरदार प्रदर्शन हुए हैं.
उधर, कूटनीतिक मोर्चे पर भी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी 'दोस्ती' में कोई सीमा नहीं होने का ऐलान किया है. वह भी तब जब यूक्रेन युद्ध चल रहा है और पश्चिमी देशों के साथ तनाव चरम पर है. चीन ने अब तक न तो यूक्रेन युद्ध की आलोचना की है और न ही रूस को संयम बरतने की कोई सलाह ही दी है. अब शिंजियांग में उइगर मुस्लिमों के दमन पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट ने भी चीन की पोल खोलकर रख दी है.
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि उइगर मुस्लिमों पर यह 'मानवता के खिलाफ अपराध' हो सकता है. इस रिपोर्ट ने चीन की यह पोल ऐसे समय पर खोली है जब लगातार ड्रैगन ने मानवाधिकारों के उल्लंघन नहीं होने का दावा किया है. दूसरी तरफ देखें, तो इंटरनेट पर चीन से बेहद सख्ती से सेंसर किया हुआ है. चीन ने इंटरनेट पर हमेशा कड़ी नजर रखी है. हालांकि इसका विरोध भी होता है और मजाक भी उड़ाया जाता है. चीन में 75 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. ये तादाद यूरोप और अमरीका में मिलकर इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों से ज़्यादा है.
दरअसल, जिनपिंग चीन को साइबर सुपरपावर बनाना चाहते हैं. कानून और तकनीक की मदद से उन्होंने इंटरनेट पर काफी पाबंदी लागू कर दी है. साइबर सुरक्षा को शी जिनपिंग देश की सुरक्षा का मुद्दा मानते हैं. इंटरनेट की सुविधा देने वाले और सोशल मीडिया साइट पर सख्ती से सेंसर लागू किया जाता है. कोई भी फर्जी खाता बनाकर चीन में सोशल मीडिया का इस्तेमाल नहीं कर सकता. यहां तक कि फेसबुक और गूगल जैसे सोशल मीडिया पर वहां प्रतिबंध है और चीन (China) के अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म है. ऐसी सूरत में शी जिनपिंग (Xi Jinping) का तीसरी बार सत्ता में आना, चीन समेत पूरी दुनिया को एक नए तानाशाह युग की तरफ ले जाने के रास्ते को और आसान नहीं कर देगा?
(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)