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(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)

मैंनेजमेंट का एग्रेशन और दूसरों की गलतियों ने YES BANK की ये हालत कर दी

करीब 26 लाख खाताधारक हैं जो पैनिक में हैं कि पता नहीं कि उनकी जमापूंजी का क्या होगा. हालांकि रिजर्व बैंक ने भरोसा दिलाया है कि जमाकर्ता को किसी तरह का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा.

इसे बुरी किस्मत भी कह सकते हैं कि हाल के दिनों में जिन कंपनियों की हालत खराब हुई उन सबमें यस बैंक का पैसा लगा हुआ है. इस लिस्ट में कुछ नाम ये हैं- जेट एयरवेज, सीजी पावर, कैफे कॉफी डे, IL&FS, दीवान हाउसिंग और एल्टिको. इसके अलावा बैंक ने अनिल अंबानी की कंपनियों को भी कर्ज बांटे हैं, जिनका क्या होगा उसपर फिलहाल स्थिति साफ नहीं है. और टेलीकॉम संकट में फंसी कंपनियों में भी यस बैंक का अच्छा-खासा एक्सपोजर है.

सरकार और रेगुलेटर के पास ये विकल्प था कि कम से कम जेट एयरवेज और IL&FS को संभालकर पूरे बाजार को स्टेबिलिटी दी जा सकती थी. ऐसा होता तो यस बैंक की हालत इतनी बुरी नहीं होती. लेकिन IL&FS संकट के बाद देश का फाइनेंशियल सेक्टर कभी ठीक से संभल ही नहीं पाया. और इसी वजह से यस बैंक का संकट लगातार गहराता गया. और अब टेलीकॉम सेक्टर में क्या होगा इसका शायद किसी को पता नहीं.

शेयर बाजार चीख-चीखकर बता रहा था कि यस बैंक मुश्किल में है यस बैंक के संकट का सीधा नुकसान देखिए. शेयर बाजार में मचे कोहराम से एक ही दिन में निवेशकों के 4500 करोड़ रुपये डूब गए और वो भी तब जबकि शेयर का भाव कुछ ही महीनों में 280 रुपये से गिरकर 35 रुपये पर आ गया था. इस दौरान कितने निवेशकों ने हजारों करोड़ रुपये गंवाए होंगे वो अलग ही कहानी है. म्यूचुअल फंडों का यस बैंक के शेयर और डेट में करीब 3500 करोड़ रुपये का निवेश है और इसकी वैल्यू क्या बची होगी, पता नहीं. ये सारा पैसा हमारे-आपके जैसे आम निवेशकों का ही है जो डूबता दिख रहा है.

कंपनी के करीब 26 लाख खाताधारक हैं जो पैनिक में हैं कि पता नहीं कि उनकी जमापूंजी का क्या होगा. हालांकि रिजर्व बैंक ने भरोसा दिलाया है कि जमाकर्ता को किसी तरह का नुकसान नहीं होने दिया जाएगा. लेकिन जिन लोगों ने इस बैंक, बैंकिंग रेगुलेटर और सरकार पर भरोसा करके यस बैंक में करीब 2 लाख करोड़ रुपये जमा किए हैं, उनका सिस्टम पर भरोसा किस कदर हिल गया होगा इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है. ये उम्मीद तो ज़रूर है कि लोगों को उनके खातों में जमा पैसे देर-सबेर मिल जाएंगे, लेकिन उस भरोसे का क्या जो पूरी तरह डगमगा गया है?

सारे संकेत बता रहे थे कि यस बैंक मुश्किल में है. देश के पांचवे सबसे बड़े प्राइवेट बैंक और निफ्टी कंपोनेंट के शेयर के भाव से हमें रोज दिख रहा था कि मुश्किलें लगातार बढ़ ही रही हैं. फिर भी सभी सोए रहे. बैंक को सही निवेशक नहीं मिल रहे थे, लेकिन सबको लगा कि ऑल इज वेल ही है. और जब आंखें खुली, तो काफी देर हो चुकी थी.

बैंकिंग सिस्टम पर भरोसा जरूरी हमें मानना चाहिए कि रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय इस समस्या का समाधान खोज लेंगे. लेकिन जो डैमेज हो चुका है, उसे कैसे ठीक किया जाएगा. सबसे बड़ा संकट ट्रस्ट यानी भरोसा खोने का है, जिसके बगैर फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन संभव नहीं है. लोगों के उस भरोसे का क्या होगा ? भरोसा नहीं होगा तो एक कंपनी, दूसरी कंपनी के साथ कारोबार कैसे करेगी? उन कंपनियों का क्या होगा जिन्हें पैसे जुटाने में दिक्कत होती है? जरा सोचकर देखिए, ये सारे ऐसे घाव हैं जिन्हें भरना आसान नहीं होगा.

ये बात ठीक तो है कि यस बैंक के मैनेजमेंट से गलतियां हुईं. लेकिन जिन फैसलों को अभी गलत माना जा रहा है उन्हीं की वजह से कभी यस बैंक को शाबासी मिला करती थी. बैंक के शेयर की कीमत में भारी उछाल आ रहा था. बैंक ज्यादा ब्याज लेकर उन कंपनियों को कर्ज दे रहा था, जिनसे कुछ लेंडर बचते थे. जब तक ये कंपनियां डूबी नहीं बैंक के इन कर्जों से काफी मुनाफा भी हो रहा थी. जिसकी वजह से शेयर की कीमत ऊपर की ओर भाग रही थी. ये सिलसिला कम से कम 10 साल से तो चल ही रहा था.

क्या रेगुलेटर को उस समय कोई गड़बड़ी नज़र नहीं आई? दरअसल ये सारा मामला देश की आर्थिक विकास दर में आई भारी कमी से जुड़ता है. सारी कंपनियां और बैंक अपने आर्थिक फैसले करते समय ये अनुमान लगाते हैं कि किस विकास दर पर कितना विस्तार करना उनके लिए ठीक रहेगा. लेकिन बीच में बार-बार झटके लगने लगें, तो सारा दोष आप कंपनियों को नहीं दे सकते. कुछ जिम्मेदारी तो रेगुलेटर को भी लेनी होगी. यस बैंक की गलती यह थी कि उसका मैनेजमेंट काफी एग्रेसिव रहा और इसी वजह से झटके को ठीक से हैंडल नहीं कर पाया. लेकिन यस बैंक के इस हालात के लिए सिर्फ मैनेजमेंट को गलत ठहराना सही नहीं है.

और इस सबके बीच जरा उनके बारे में भी सोचिए जो यस बैंक में काम करते हैं. उनकी संख्या 18,000 के आसपास है. और उन छोटी और मंझोली कंपनियों की मुसीबत कितनी बढ़ने वाली है, जिनके लिए यस बैंक गारंटी देता था या लाइन ऑफ क्रेडिट की सुविधा देता था.

इस तरह की मुसीबतें खत्म तो तभी होंगी, जब हम मानेंगे कि सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. और अभी की मुसीबतों के लिए पुरानी सरकारों को दोषी ठहराना बंद करेंगे. समाधान निकालने में जुटने की बारी तो गलती मानने के बाद ही आती है. वरना ऐसे झटके आगे नहीं लगेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है.

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