उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार अपने फैसलों से देश को चौंका भी रही है, तो कुछ हद तक इससे मुसलमानों में डर का पैगाम भी पहुंच रहा है. हालांकि इन फैसलों से देश के आम मुस्लिम को फिक्रमंद इसलिये नहीं होना चाहिए कि जब उन्होंने कुछ गलत ही नहीं किया, तो फिर डर किस बात का. योगी सरकार ने पहले गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सर्वे का आदेश दिया था, तो अब सूबे में वक्फ बोर्ड की तमाम संपत्तियों का सर्वे करके उसकी रिपोर्ट मांगी है. चूंकि दोनों ही फैसले एक खास मजहब से जुड़े हुए हैं, लिहाजा इस पर कोई सियासत न हो, ये भला कैसे मुमकिन हो सकता है.
मुस्लिमों से जुड़े हर मसले पर अपनी आवाज उठाने और सरकार को घेरने वाले AIMIM के अध्यक्ष व हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने योगी सरकार के इस फैसले पर बड़ा सवाल उठाया है. उन्होंने पूछा है कि सिर्फ वक्फ बोर्ड का ही किसलिये, आखिर मंदिर और मठों की संपत्तियों का भी सर्वे क्यों नहीं कराया जाता? उन्हें बनाने के लिए किसी सार्वजनिक संपत्ति पर क्या आज तक कोई अवैध कब्जा नहीं हुआ? उनके मुताबिक दरअसल, ये मुसलमानों को डराने-दबाने के साथ ही उन्हें ये अहसास दिलाने की कोशिश की जा रही है कि वे इस देश में दोयम दर्जे के नागरिक हैं, जो कि संविधान की मूल आत्मा को खत्म करने की तरह है.
दरअसल, योगी सरकार ने वक्फ बोर्ड के लिए बने 33 साल पुराने उस आदेश को भी रद्द कर दिया है जिसके तहत वक्फ के नाम पर सरकारी संपत्ति को वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज करने का अधिकार बोर्ड के पास था. सरकार ने फैसला लिया है कि वह राज्य में वक्फ के तौर पर दर्ज की गई सार्वजनिक संपत्तियों का रिव्यू कराएगी क्योंकि साल 1989 में एक गलत आदेश के आधार पर बंजर, ऊसर आदि सार्वजनिक संपत्तियां वक्फ संपत्ति के तौर पर दर्ज कर ली गईं और ये सिलसिला लगातार चलता रहा. उस आदेश को राजस्व कानूनों और वक्फ अधिनियम दोनों के ही खिलाफ मानते हुए योगी सरकार ने 33 साल पुराने उस शासनादेश को रद्द कर दिया है.
ये सर्वे कराने के पीछे योगी सरकार ने ये भी दलील दी है कि मुस्लिम वक्फ अधिनियम 1960 के तहत किसी भी वक्फ संपत्ति का स्वतः पंजीकरण नहीं हो सकता और न ही वक़्फ बोर्ड किसी संपत्ति को स्वतः वक्फ में दर्ज करवा सकता है, जबकि 1989 के आदेश में बिना आवेदन के ही कई संपत्तियों को वक्फ में दर्ज करने की बात सामने आई है, जो सही नहीं है इसलिए इस शासनादेश को रद्द किया गया है.
योगी सरकार का मानना है कि पिछले दो दशक में वक्फ बोर्ड में कई तरह के घोटाले हुए हैं, जिनमें सार्वजनिक संपत्तियों पर कब्जा करके और उन्हें वक्फ की संपत्ति बताकर निजी हाथों में बेचने जैसी शिकायतें भी सामने आई हैं, लिहाजा सर्वे कराये बगैर असलियत सामने नहीं आ सकती. एआईएमआईएम के प्रवक्ता आसिम वकार इस हकीकत से इनकार नहीं करते.
उनके मुताबिक पिछले 15 सालों में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्डों में बड़े घोटाले हुए हैं और शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व चेयरमैन ने तो घोटालों का रिकॉर्ड ही तोड़ दिया. उस मामले में, एफआईआर हुई, सीबीआई जांच भी हुई लेकिन सरकार ये तो बताये कि आखिर वह रिपोर्ट कहां है? कब वो घोटालेबाजी में जेल गया?
आसिम वकार कहते हैं कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन मायावती की अगुवाई वाली बीएसपी सरकार में बने थे लेकिन जब अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी की सरकार बनी, तब भी वही चेयरमैन रहे. सबसे बड़ी हैरानी तो ये है कि जब साल 2017 में बीजेपी की सरकार आई, तो उसमे भी वही चेयरमैन पद पर काबिज रहे. अब जबकि दोबारा बीजेपी की सरकार बनी, तो फिर से वही चेयरमैन हैं. उन्होंने कहा कि ईमानदारी से जांच हो तो बहुत बड़ा हेरफेर मिलेगा और पता लगेगा कि सरकार में बैठे और कितने रसूखदार इसमें शामिल थे.
सरकार के इस फैसले को एकतरफा कार्रवाई बताते हुए उन्होंने कहा कि सूबे में कई बड़ी धर्मशाला और मंदिरों के ट्रस्ट हैं, उनकी जांच भी होनी चाहिए. क्या इनके घोटाले आपकी नजर में नहीं हैं? बेशक वक्फ बोर्ड का सर्वे करिए, लेकिन अपनी मंशा साफ कीजिए. सबका एक लाइन से सर्वे कराएं. वहीं सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी मुस्लिम नेताओं के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि हम सर्वे के खिलाफ हैं, सर्वे नहीं होना चाहिए. सरकार को केवल हिंदू-मुस्लिम करना है. जो लोग दावा करते हैं वन ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी होने का, पहले वे ये बताएं कि क्या मदरसों में या वक्फ बोर्ड के सर्वे होने से वो हासिल हो जाएगी?
मुस्लिम धर्मगुरु कल्बे जवाद ने कहा कि एक पक्ष का सर्वे नहीं होना चाहिए. 70 फीसदी वक्फ बोर्ड के कब्जे माफियाओं और सरकार के पास हैं. केवल 30 फ़ीसदी जमीन ही वक्फ के पास है. सरकार नाजायज कब्जे छुटवाए, तब तो ठीक है लेकिन सिर्फ मुसलमानों का सर्वे कराकर जमीन देख ले, तब कोई फायदा नहीं है. वक्फ की जमीन को कोई जबरदस्ती खाली नहीं करवा पाएगा.
वहीं पूरे मामले पर यूपी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री धर्मपाल सिंह का कहना है कि वक्फ संपत्तियां बहुत महत्वपूर्ण हैं, जिनमें से कई अवैध कब्जे में हैं. वक्फ खुदा की संपत्ति है, इस पर कब्जा करने का अधिकार किसी को भी नहीं है. सरकार ने साफ मंशा से इसका सर्वे कराना शुरू किया है, इसलिये किसी भी शरीफ व्यक्ति को इस पर कोई ऐतराज नहीं होना चाहिए.
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