लखनऊ: उत्तर प्रदेश में पुलिस थाने बिकते हैं. ये आरोप हर सरकार पर लगते रहे हैं. मायावती के जमाने में भी इस बात पर बड़ा विवाद हुआ था. इसके बाद अखिलेश यादव को भी इन सवालों से जूझना पड़ा. अब योगी आदित्यनाथ के राज में भी इसकी चर्चा शुरू हो गई है. बहस शुरू हुई है दो ज़िलों के एसपी के निलंबित होने से. इन पर वसूली से लेकर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप हैं. हर विधानसभा चुनाव में थाने की खरीद बिक्री एक मुद्दा बन जाता है. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ इस खतरे को बखूबी जानते हैं, इसीलिए इस बार वे आर-पार की कार्रवाई के मूड में हैं. सस्पेंड करने के बाद उन्होंने दोनों आईपीएस अधिकारियों की संपत्ति की जांच के भी आदेश दे दिए हैं.


पहले ये समझ लें कि आखिर पुलिस थाने बिकने का क्या मतलब है? यूपी के करीब ऐसे 100 थाने हैं, जहां हर महीने लाखों की कमाई हो जाती है. यहां वैसे ही थानेदार फिट किए जाते हैं जो कमाई का अपना सिस्टम बना लेते हैं. ये मत समझिएगा कि ऐसे पुलिस थाने नोएडा, मेरठ या ग़ाज़ियाबाद में हैं. जहां बड़े-बड़े कारोबारी रहते हैं. जहां ज़मीन मंहगी होती है. पुलिसवाले ऐसे मुकदमों में टांग फंसाते हैं, फिर पैसा अपने आप बरसने लगता है.


एक होता है नॉन डिस्टर्बिंग अलांउस. इसका मतलब ये है कि गैरक़ानूनी या अवैध काम को डिस्टर्ब न करना. जो भी गलत है, उधर ध्यान ही न देना. इसके बदले में पुलिस को हफ़्ता मिलता रहता है. सोनभद्र, बांदा और महोबा जैसे ज़िलों में भी ऐसे थाने हैं. ये वो इलाके हैं जहां माइनिंग का काम होता है. यहां अवैध खनन करने वालों को पुलिस हर तरह की सुरक्षा देती है. फिर खाकी वालों को भी कैश की सुरक्षा मिलती है.


यूपी में सालों से ऐसा होता रहा है. सिर्फ एक ही शर्त में ये काम बंद होता है, अगर ज़िले का एसपी कमाऊ न हो. फिर तो पुलिस की कमाई का धंधा चौपट हो जाता है. एसपी ईमानदार आया तो सारे थानेदारों की ऊपरी कमाई रूक जाती है. फिर नेता से मिल कर पुलिसवाले और इलाके के कुछ प्रभावशाली लोग उस एसपी के खिलाफ माहौल बनाते हैं. लखनऊ तक जाकर उस अधिकारी को लापरवाह और बदतमीज़ बताया जाता है. ये आपरेशन तब तक चलता है जब तक उस एसपी का ट्रांसफर न हो जाए.


पुलिस सिस्टम में कमाई तीन तरह की होती है. नज़राना, शुक्राना और जबराना. इनमें सबसे खतरनाक होता है जबराना. इस सिस्टम में पुलिसवाले किसी न किसी मामले में लोगों को फंसा कर जबरन पैसे ऐंठ लेते हैं. इसीलिए इसे जबराना कहा गया है. यूपी में आईजी रैंक के एक अफसर इस खेल के सबसे बड़े खिलाड़ी माने जाते हैं. उनके बारे में मशहूर है कि मौका मिले तो वे अपने पिता से भी पैसा वसूल लें. दारोगा से लेकर आईपीएस रैंक के कई अफसर जबराना वसूली विद्या के महारथी माने जाते हैं.


नज़राना का सिस्टम ऐसा है, जिसमें बैठे बिठाए कमाई होती रहती है. मान लीजिए आप किसी ज़िले के एसपी हैं. ज़िले में 12 पुलिस थाने हैं. इनके थानेदारों को हर महीने एक फ़िक्सड अमांउट अपने कप्तान साहेब को देना पड़ता है. हर थाने का अपना अलग अलग रेट होता है. बदले में थानेदार अपनी कमाई करते हैं.


यूपी के डीजीपी रहे एक अधिकारी ने बताया कि थानेदार अगर महीने में अपने एसपी को 5 लाख की भेंट चढ़ाता है, तो फिर अपने लिए कम से कम 8 लाख वसूलता है. थाने की पारी लोगों से लेकर एसपी ऑफिस के स्टेनो तक का पैसा फ़िक्सड रहता है. किसी का कोई बड़ा काम फंसा हो और वो मामला निपट जाए तो शुक्रराना देना पड़ता है. कुछ पुलिस अफसर इतने बड़े कलाकार होते हैं कि पोस्टिंग मिलते ही ऐसे केस ढूँढ लेते हैं. फिर बिचौलियों और दलालों से केस का रेट तय कराते हैं. कुछ पैसा एडवांस में मिलता है और बाक़ी का काम पूरा होने के बाद. पुलिस अफसरों की घूसख़ोरी के यूपी में एक से बढ़ कर एक क़िस्से हैं. कई बड़े-बड़े आईपीएस अफसरों को उनके गुण के हिसाब से नाम दिया गया है.


मुख्यमंत्री बनते ही योगी आदित्यनाथ ने पुलिस अफसरों को एनकांउटर की खुली छूट दी. फिर नोएडा और लखनऊ में कमिश्नर सिस्टम लागू किया. लंबे समय से यूपी में इस बात की मांग हो रही थी. योगी ने कानपुर और वाराणसी में भी पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू करने का वादा किया है. कई मौकों पर आईएएस अधिकारियों के मुकाबले उन्होंने आईपीएस अफसरों पर ज़्यादा भरोसा किया. लेकिन इसके बावजूद कई अधिकारी वन टू का फ़ोर और फ़ोर टू का वन करने में जुटे रहे. ताज़ा मामला महोबा के एसपी मणिलाल पाटीदार और प्रयागराज के एसएसपी अभिषेक दीक्षित का है. पाटीदार 2014 बैच के आईपीएस अफसर हैं. उन पर एक कारोबारी से हर महीने 6 लाख रूपये घूस मांगने का आरोप है. कहा जा रहा है कि उन्होंने पहली किस्त ले भी ली थी. पाटीदार के खिलाफ भ्रष्टाचार की कई तरह की शिकायतें हैं. कहा जाता है कि खनन के कई ठेकेदारों से वे वसूली करते थे.


महोबा में बालू से लेकर पत्थर तक का खनन होता है. इसी हफ़्ते प्रयागराज के एसएसपी अभिषेक दीक्षित को भी योगी ने निलंबित कर दिया. तमिलनाडु कैडर के 2006 बैच के आईपीएस दीक्षित डेपुटेशन पर यूपी में हैं. चार महीने पहले तक वे पीलीभीत में एसपी थे, फिर उन्हें प्रयागराज की ज़िम्मेदारी दी गई. आरोप है कि ज़िले का एसएसपी बनते ही वे वसूली में लग गए थे. तमिलनाडु में नौकरी करने के दौरान भी अभिषेक पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे. लेकिन सवाल ये है कि ऐसे आईपीएस अफसरों को आखिर बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे दी गई? क्या उनके सीनियर अधिकारियों को उनके कारनामों के बारे में नहीं पता था.


योगी आदित्यनाथ भी जानते हैं कि कानून व्यवस्था के नाम पर माहौल कभी भी बिगड़ सकता है. इसीलिए जानकारी मिलते ही दोनों आईपीएस अफ़सरों को सस्पेंड कर दिया. जांच होने पर शिकायत सही मिली और कार्रवाई हो गई. लेकिन एक सवाल भी छोड़ गई, क्या अब भी ज़िलों में तैनात एसएसपी पुलिस थाने बेच रहे हैं. अगर ऐसा हो रहा है तो डीआईजी, आईजी, एडीजी और डीजीपी क्या करते हैं? वन टू का फ़ोर करने के इस खेल में ऊपर के अधिकारी भी शामिल हैं? जब तक ऊपर से लेकर नीचे तक कार्रवाई नहीं होगी, यूपी में पुलिस थाने बिकते रहेंगे.