Year Ender: 2016 में महिलाओं पर बनी वे फिल्में जिन्हें सालों तक रखा जाएगा याद
साल 2016 की उलटी गिनती शुरु हो गई है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि इस साल बॉलीवुड की कॉमर्शियल फिल्मों के अवाला लीक से हट कर बनाई गई फिल्मों ने भी काफी नाम कमाया. इस साल बॉलीवुड में महिलाओं पर आधारित कई फिल्में बनी जो समाज में महिलाओं के प्रति रूढ़िवादी सोच को खारिज करने की कोशिश करती है. आज हम आपको बताएंगे इस साल बॉलीवुड में महिलाओं पर बनी ऐसी 5 फिल्मों के बारे में जो महिलाओं के सम्मान, उनके उत्थान को समाजिक तौर पर सामने लाने की कोशिश करती है.
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View In Appनील बटे सन्नाटा- जिंदगी जीने के लिए सपनों का भी जिंदा होना बहुत जरूरी होता है. और सपने साझा कर के देखे जाएं तो वो पूरे भी होते हैं. फिल्म नील बटे सन्नाटा ऐसी ही जिंदा सपने को साकार करने की कोशिश है. जिसमें प्रेरणा के तौर एक मां को अपनी बेटी के सपनों को जिंदा रखने और उसे साकार करने की कहानी को दिखाया गया. इस फिल्म में स्वारा भास्कर एक 'मां' के रूप में मुख्य भूमिका में हैं और अपनी बेटी 'रत्ना' के सपनों को पूरा करती हैं.
नीरजा- फ्लाइट अटेंडेंट नीरजा भनोट की जिंदगी पर आधारित बॉयोपिक फिल्म 'नीरजा' इसी साल रिलीज हुई थी. प्लेन हाईजैक किए जाने के बाद नीरजा की बहादूरी पर बनी इस फिल्म को क्रिटिकली काफी सराहा गया था. बता दें कि 1986 में हाई जैक की गई फ्लाइट में लोगों को बचाने में नीरजा भनोट ने अपनी जान गवाई थी. इस बहादुरी के लिए उन्हें सरकार की तरफ से अशोक चक्र से सम्मानित किया गया. रुपहले पर्दे पर 'नीरजा' का किरदार सोनम कपूर ने निभाया था.
पार्च्ड- हिंदी के शब्दकोष में 'पार्च्ड' का मतलब सूखा होता है. फिल्म पार्च्ड चार महिला किरदारों के बीच किया गया स्त्री विमर्श पुरुषवादी सोच रखने वालों के सामने ये विमर्श सामने लाता है कि एक आदमी को मर्द बनने के बजाए बेहतर इंसान बनने की कोशिश करनी चाहिए जिससे परस्पर स्त्री और पुरुष का सम्मान बना रहे.
दंगल- उत्तर भारत में कुश्ती के खेल को 'दंगल' कहा जाता है. जिसमें अधिकतर पुरुषों ही अपना दमखम दिखाते हैं. साल के आखिर में आई फिल्म दंगल भी यही बताने की कोशिश करती है कि किसी भी मायने में लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं. कई मायनों में मौका मिलने पर लड़कियां लड़को से बहुत अच्छा करके दिखाती हैं. फिल्म की कहानी हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगट की जिंदगी पर आधारित है और उनका सपना है कि उनकी बेटियां भारत के लिए गोल्ड मेडल जीतें.
पिंक- हमारे समाज में राय कायम करने की एक लाइलाज बीमारी है. आज से नहीं अरसो से! जहां समाज ये राय बना लेता है कि किसी लड़की के दोस्तों में लड़के हैं तो वो लड़की कैसी होगी! किसी लड़की के ड्रेस छोटे है तो उसका कैरेक्टर कैसा होगा! कोई लड़की यदि शराब पिती है तो उसकी इमेज किस तरह की होगी! इन वाहियात कैलक्युलेशन के बिनाह पर समाज ने जैसे कैरेक्टर सर्टिफ़िकेट बांटने का ठेका ले रखा है. पिंक समाज में व्याप्त इन्हीं रूढ़िवादी सोच को खारिज करती है.
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