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बर्थडे स्पेशल: कैंटीन में काम करने वाले युसुफ ऐसे बने थे दिलीप कुमार

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दिलीप कुमार ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म 'ज्वार भाटा' से की, जो साल1944 मे आई. हालांकि यह फ़िल्म सफल नहीं रही..दिलीप कुमार की पहली हिट 1947 में रिलीज़ हुई फ़िल्म “जुगनू” थी. इस फ़िल्म ने बॉलीवुड में दिलीप कुमार को कामयाब सितारों में शुमार कर दिया.
दिलीप कुमार ने अपने करियर की शुरुआत फिल्म 'ज्वार भाटा' से की, जो साल1944 मे आई. हालांकि यह फ़िल्म सफल नहीं रही..दिलीप कुमार की पहली हिट 1947 में रिलीज़ हुई फ़िल्म “जुगनू” थी. इस फ़िल्म ने बॉलीवुड में दिलीप कुमार को कामयाब सितारों में शुमार कर दिया.
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1951 में दिलीप कुमार और मधुबाला ने फिल्म तराना में एक साथ काम किया लेकिन दिलीप कुमार को ये खबर ना थी कि मधुबाला दिल ही दिल में दिलीप कुमार से प्यार करने लगी थीं और फिल्म तराना की शूटिंग के दौरान मधुबाला ने अपनी करीबी मेकअप आर्टिस्ट के हाथों दिलीप कुमार को एक ख़त भेजा...ख़त के साथ एक लाल गुलाब भी था. उर्दू में लिखे हुए इस ख़त में मधुबाला ने लिखा था, “अगर आप मुझे चाहते हैं तो ये गुलाब क़बूल फरमाइए...वरना इसे वापस कर दीजिए. ”मधुबाला की मोहब्बत की इस निशानी को दिलीप कुमार ने खुशी खुशी क़बूल कर लिया और फिर फिल्म तराना के सेट्स पर दिलीप कुमार और मधुबाला की असली लव स्टोरी भी परवान चढ़ने लगी.
1951 में दिलीप कुमार और मधुबाला ने फिल्म तराना में एक साथ काम किया लेकिन दिलीप कुमार को ये खबर ना थी कि मधुबाला दिल ही दिल में दिलीप कुमार से प्यार करने लगी थीं और फिल्म तराना की शूटिंग के दौरान मधुबाला ने अपनी करीबी मेकअप आर्टिस्ट के हाथों दिलीप कुमार को एक ख़त भेजा...ख़त के साथ एक लाल गुलाब भी था. उर्दू में लिखे हुए इस ख़त में मधुबाला ने लिखा था, “अगर आप मुझे चाहते हैं तो ये गुलाब क़बूल फरमाइए...वरना इसे वापस कर दीजिए. ”मधुबाला की मोहब्बत की इस निशानी को दिलीप कुमार ने खुशी खुशी क़बूल कर लिया और फिर फिल्म तराना के सेट्स पर दिलीप कुमार और मधुबाला की असली लव स्टोरी भी परवान चढ़ने लगी.
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1949 में फ़िल्म “अंदाज़” में बॉलीवुड के शोमैन और ट्रैजडी किंग ने साथ काम किया यानि दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया. यह फ़िल्म एक हिट साबित हुई. दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फ़िल्मों में गंभीर भूमिकाओं की वजह से उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा. फिल्मों में तो दिलीप कुमार के साथ ट्रेजेडी होती ही रहती थी. अब असल जिंदगी में उनके साथ ट्रेजेडी हो गई जब उनके दिल ने उन्हें दगा दे दिया. हम बात कर रहे हैं दिलीप कुमार और मधुबाला की मोहब्बत की जिसकी शुरुआत तो एक गुलाब के फूल से हुई थी लेकिन इस मुहब्बत के फूल में इन दोनों के लिए ढेर सारे कांटे थे.
1949 में फ़िल्म “अंदाज़” में बॉलीवुड के शोमैन और ट्रैजडी किंग ने साथ काम किया यानि दिलीप कुमार ने पहली बार राजकपूर के साथ काम किया. यह फ़िल्म एक हिट साबित हुई. दीदार (1951) और देवदास (1955) जैसी फ़िल्मों में गंभीर भूमिकाओं की वजह से उन्हें ट्रेजडी किंग कहा जाने लगा. फिल्मों में तो दिलीप कुमार के साथ ट्रेजेडी होती ही रहती थी. अब असल जिंदगी में उनके साथ ट्रेजेडी हो गई जब उनके दिल ने उन्हें दगा दे दिया. हम बात कर रहे हैं दिलीप कुमार और मधुबाला की मोहब्बत की जिसकी शुरुआत तो एक गुलाब के फूल से हुई थी लेकिन इस मुहब्बत के फूल में इन दोनों के लिए ढेर सारे कांटे थे.
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 दिलीप कुमार ने बॉलीवुड के कई बड़े सितारों के साथ काम किया. फिल्म शक्ति मे उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ काम किया. इस फिल्म के लिए उन्हे बेस्ट एक्टर का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला. मजे की बात तो ये है कि एक वक्त था जब कहते हैं कि ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार का एक आटोग्राफ लेने के लिए अमिताभ जब एक रेस्तरां के बाहर आधे घंटे खड़े थे उन्होंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो अपने इस हीरो के साथ कैमरे के सामने भी खड़े होंगे. लेकिन शक्ति सामंता की 'शक्ति' के मुहूर्त में जब बच्चन दिलीप कुमार के सामने हेलीकाप्टर से उतरे तो सातवें आसमान पर थे. दिलीप कुमार के सामने उनके पैर कांप रहे थे लेकिन फिल्म 'शक्ति' बॉलीवुड की क्लासिक फिल्मों में से एक हो गई थी.
दिलीप कुमार ने बॉलीवुड के कई बड़े सितारों के साथ काम किया. फिल्म शक्ति मे उन्होंने अमिताभ बच्चन के साथ काम किया. इस फिल्म के लिए उन्हे बेस्ट एक्टर का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी मिला. मजे की बात तो ये है कि एक वक्त था जब कहते हैं कि ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार का एक आटोग्राफ लेने के लिए अमिताभ जब एक रेस्तरां के बाहर आधे घंटे खड़े थे उन्होंने तो कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन वो अपने इस हीरो के साथ कैमरे के सामने भी खड़े होंगे. लेकिन शक्ति सामंता की 'शक्ति' के मुहूर्त में जब बच्चन दिलीप कुमार के सामने हेलीकाप्टर से उतरे तो सातवें आसमान पर थे. दिलीप कुमार के सामने उनके पैर कांप रहे थे लेकिन फिल्म 'शक्ति' बॉलीवुड की क्लासिक फिल्मों में से एक हो गई थी.
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दिलीप कुमार की जब पहली फिल्म आई तब उनके घर के पास ही फिल्म का बड़ा सा पोस्टर लगाया गया था. जिसे देखकर ही उनके पिता को पता चला की दिलीप फिल्मों में काम करने लगे हैं.
दिलीप कुमार की जब पहली फिल्म आई तब उनके घर के पास ही फिल्म का बड़ा सा पोस्टर लगाया गया था. जिसे देखकर ही उनके पिता को पता चला की दिलीप फिल्मों में काम करने लगे हैं.
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दिलीप को बचपन से ही सजसंवर कर रहने का शौक था. देविका रानी को उनका लुक पसंद आया. उन्होंने पूछा कि क्या उनको उर्दू बोलने आती है. दिलीप ने जवाब में कहा, हां. उसके बाद देविका रानी ने कहा कि हमें अपनी नयी फिल्म के लिए एक नया हीरो चाहिए. तुम कल से काम पर आ सकते हो. इस तरह से उनका फिल्मी सफ़र शुरू हो गया. लेकिन देविका रानी को यूसुफ़ खान नाम पसंद नहीं था. उन्होंने यूसुफ को कुछ नाम सुझाए जिनमें से एक था दिलीप कुमार. और इस तरह से यूसुफ खान ने अपना नाम दिलीप कुमार चुना.
दिलीप को बचपन से ही सजसंवर कर रहने का शौक था. देविका रानी को उनका लुक पसंद आया. उन्होंने पूछा कि क्या उनको उर्दू बोलने आती है. दिलीप ने जवाब में कहा, हां. उसके बाद देविका रानी ने कहा कि हमें अपनी नयी फिल्म के लिए एक नया हीरो चाहिए. तुम कल से काम पर आ सकते हो. इस तरह से उनका फिल्मी सफ़र शुरू हो गया. लेकिन देविका रानी को यूसुफ़ खान नाम पसंद नहीं था. उन्होंने यूसुफ को कुछ नाम सुझाए जिनमें से एक था दिलीप कुमार. और इस तरह से यूसुफ खान ने अपना नाम दिलीप कुमार चुना.
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दिलीप कुमार ऐसे ही काम की तलाश में भटकते हुए एक दिन एक पुराने जानकार से टकरा गए. वो सज्जन उनके पुराने परिवारिक मित्र डॉक्टर मथानी थे. बातों-बातों में दिलीप ने उनको बताया कि वो नौकरी खोज रहे है. उन सज्जन ने दिलीप से कहा की फिलहाल तो उनकी जानकारी में कोई नौकरी नहीं. उसी समय वो बॉम्बे टाकीज की मालकिन देविका रानी से मिलने जा रहे थे. उन्होंने दिलीप से कहा अगर तुम खाली हो तो चलो क्या पता कोई काम मिल जाये. दिलीप कुमार उनके साथ हो लिए. देविका रानी ने उन्हें काम पर रख लिया. तय हुआ कि उन्हें 1250 रुपये महीना पगार मिलेगी. उस जमाने में ये बड़ी रकम हुआ करती थी. दिलीप कुमार को पहले यकीन ही नहीं हुआ. उन्होंने डॉक्टर मथानी से तसदीक की तो उन्होंने बताया कि उन्हें कोई गलतफहमी नहीं हुई है उन्हें इतनी ही सैलरी मिलेगी.
दिलीप कुमार ऐसे ही काम की तलाश में भटकते हुए एक दिन एक पुराने जानकार से टकरा गए. वो सज्जन उनके पुराने परिवारिक मित्र डॉक्टर मथानी थे. बातों-बातों में दिलीप ने उनको बताया कि वो नौकरी खोज रहे है. उन सज्जन ने दिलीप से कहा की फिलहाल तो उनकी जानकारी में कोई नौकरी नहीं. उसी समय वो बॉम्बे टाकीज की मालकिन देविका रानी से मिलने जा रहे थे. उन्होंने दिलीप से कहा अगर तुम खाली हो तो चलो क्या पता कोई काम मिल जाये. दिलीप कुमार उनके साथ हो लिए. देविका रानी ने उन्हें काम पर रख लिया. तय हुआ कि उन्हें 1250 रुपये महीना पगार मिलेगी. उस जमाने में ये बड़ी रकम हुआ करती थी. दिलीप कुमार को पहले यकीन ही नहीं हुआ. उन्होंने डॉक्टर मथानी से तसदीक की तो उन्होंने बताया कि उन्हें कोई गलतफहमी नहीं हुई है उन्हें इतनी ही सैलरी मिलेगी.
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दिलीप के पिता ड्राई फ्रूट्स का बिज़नेस करने लगे और मुंबई आ गये. कुछ दिनों बाद उन्होंने दिलीप समेत पुरे परिवार को मुंबई बुला लिया था...दिलीप कुमार ने प्रसिद्ध बार्नस स्कूल, देओलाली से अपनी पढ़ाई की थी. उस उम्र में परिवार के साथ हुई किसी अनबन के चलते वो मुंबई छोड़कर पुणे चले गए थे. पुणे में उन्होंने एक कैंटीन में काम करना शुरू कर दिया. बाद में उन्होंने खुद की कैंटीन खोल ली. उनका कारोबार काफी सफल रहा. इस बीच घरवालों से उनके रिश्ते भी बेहतर होने लगे. लिहाजा वे वापस मुंबई लौट आए. इस दौरान कमाए हुए सारे पैसे उन्होंने अपनी मां को दे दिए और तय किया की अब मुंबई में रह कर ही कुछ काम करेंगे.
दिलीप के पिता ड्राई फ्रूट्स का बिज़नेस करने लगे और मुंबई आ गये. कुछ दिनों बाद उन्होंने दिलीप समेत पुरे परिवार को मुंबई बुला लिया था...दिलीप कुमार ने प्रसिद्ध बार्नस स्कूल, देओलाली से अपनी पढ़ाई की थी. उस उम्र में परिवार के साथ हुई किसी अनबन के चलते वो मुंबई छोड़कर पुणे चले गए थे. पुणे में उन्होंने एक कैंटीन में काम करना शुरू कर दिया. बाद में उन्होंने खुद की कैंटीन खोल ली. उनका कारोबार काफी सफल रहा. इस बीच घरवालों से उनके रिश्ते भी बेहतर होने लगे. लिहाजा वे वापस मुंबई लौट आए. इस दौरान कमाए हुए सारे पैसे उन्होंने अपनी मां को दे दिए और तय किया की अब मुंबई में रह कर ही कुछ काम करेंगे.
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दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर, 1922 को पेशावर में हुआ था जो आज पाकिस्तान का हिस्सा है. नाम रखा गया युसूफ़ सरवर ख़ान. उनके पिता लाला ग़ुलाम सरवर फलों का कारोबार करते थे. पेशावर में दिलीप कुमार और राज कपूर पड़ोसी हुआ करते थे और दोनों के परिवारों की आपस में अच्छी जान पहचान थी.
दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर, 1922 को पेशावर में हुआ था जो आज पाकिस्तान का हिस्सा है. नाम रखा गया युसूफ़ सरवर ख़ान. उनके पिता लाला ग़ुलाम सरवर फलों का कारोबार करते थे. पेशावर में दिलीप कुमार और राज कपूर पड़ोसी हुआ करते थे और दोनों के परिवारों की आपस में अच्छी जान पहचान थी.
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दिलीप कुमार सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक दौर है. उनके आने के बाद हिंदी सिनेमा में सही मायनों में अदाकारी की शुरुआत हुई थी. हिंदी सिनेमा और हिंदी फिल्में अगर आज दुनियाभर में इतनी कामयाब हैं तो इसका एक बड़ा श्रेय जिस शख्स को जाता है वो हैं दिलीप कुमार. आज दिलीप कुमार अपना 95वां जन्मदिन मना रहे हैं. आइए जानते हैं उनसे जुड़ी ये खास कहानियां...
दिलीप कुमार सिर्फ एक नाम नहीं है बल्कि एक दौर है. उनके आने के बाद हिंदी सिनेमा में सही मायनों में अदाकारी की शुरुआत हुई थी. हिंदी सिनेमा और हिंदी फिल्में अगर आज दुनियाभर में इतनी कामयाब हैं तो इसका एक बड़ा श्रेय जिस शख्स को जाता है वो हैं दिलीप कुमार. आज दिलीप कुमार अपना 95वां जन्मदिन मना रहे हैं. आइए जानते हैं उनसे जुड़ी ये खास कहानियां...
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