जानें कौन थे गिरीश कर्नाड, जिनके योगदान पर फिल्मी दुनिया को है बहुत ही नाज़
मशहूर अभिनेता,लेखक और रंगकर्मी गिरीश कर्नाड ने 81 साल की उम्र में बेंगलूरु में अंतिम सांस ली. वह काफी समय से बीमार चल रहे थे. ज्ञानपीठ, पद्मश्री, पद्मभूषण, फिल्मफेयर और संगीत नाटक एकेडमी जैसे कई अवॉर्ड से उन्हें सम्मानित किया गया था. जिनमें से उन्हें तीन अवार्ड सर्वश्रेष्ठ कन्नड़ निर्देशक के रूप में और चौथा फिल्मफेयर अवार्ड पटकथा लेखन के लिए दिया गया था.
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View In Appइन फिल्मों के अलावा सलमान खान के साथ वो 'एक था टाइगर' (2012) और 'टाइगर ज़िंदा है' (2017) में अहम किरदार में दिखे.
साल 1970 में कन्नड़ फिल्म 'संस्कार' के साथ अपने सिने करियर की शुरुआत करने वाले गिरीश कर्नाड ने एक के बाद एक उपलब्धियां हासिल की. फिल्म संस्कार की पटकथा भी उन्होंने खुद ही लिखी थी. इस फिल्म को कई अवार्ड भी मिले.
गिरीश कर्नाड ने भारतीय सिनेमा की दुनिया में एक अभिनेता, निर्देशक और पटकथा लेखक के रूप में काम किया. बॉलीवुड में अमूल्य योगदान के लिए कर्नाड को भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया था.
गिरीश कर्नाड ने आर के नारायण की किताब पर आधारित टीवी सीरियल मालगुड़ी डेज में उन्होंने स्वामी के पिता की भूमिका निभाई थी. 1990 की शुरुआत में विज्ञान पर आधारित एक टीवी कार्यक्रम टर्निंग पॉइंट में वह होस्ट के रूप में दिखे थे.
हिंदी में उन्होंने 'निशांत' (1975), 'मंथन' (1976) और 'पुकार' (2000) जैसी फ़िल्में कीं. नागेश कुकुनूर की फ़िल्मों 'इक़बाल' (2005), 'डोर' (2006), '8x10 तस्वीर' (2009) और 'आशाएं' (2010) के लिए भी गिरीश कर्नाड ने काम किया था.
गिरीश कर्नाड को कन्नड़ और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में समान पकड़ थी.
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