रिटायरमेंट की उम्र में करियर शुरू करने वाली 'शूटर दादी' पर बन रही है फिल्म, जानें उनके स्ट्रगल की पूरी कहानी
फिल्म में भूमि ने चंद्रो और तापसी ने प्रकाशी की भूमिका निभाई है और वे अब भी बुजुर्ग महिलाओं के संपर्क में हैं. उनके घर के पास ‘शूटर दादी’ के बोर्ड लगे हैं जिस पर ‘बेटी बचाओ, बेटी खिलाओ, बेटी पढ़ाओ’ भी लिखा हुआ है. खिलाओ का मतलब खेलने देने से है. प्रकाशी ने कहा, ‘लड़की को खुश होना चाहिए चाहे वह पिता के घर में हो या पति के घर में.’ (सभी तस्वीरें - इस्टाग्राम @shooterdadiofficial)
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View In Appदो हफ्ते बाद उनकी रिश्तेदार प्रकाशी भी उनके नक्शेकदम पर चल पड़ीं. प्रकाशी अब 82 वर्ष की हो गई हैं. चंद्रो बताती हैं कि एक वक्त पर उनका गांव जोहरी आटा चक्की के लिए मशहूर हुआ कर था .लेकिन अब इस गांव में देश भर से शूटर आते हैं. प्रकाशी ने वर्ष 2000 में वेटरन श्रेणी में पहली महिला उत्तरप्रदेश राज्य स्वर्ण पदक पुरस्कार जीता था.
उन्होंने बताया कि उनका दिन सुबह चार बजे शुरू होता है. शुरुआती दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं खेतों में एक जग पानी के साथ अभ्यास करने जाती थी और निशाना लगाती थी और डर लगता था कि कहीं पकड़ी नहीं जाऊं.’
चंद्रो ने कहा, ‘‘मैं जानती थी कि मुझे घर से अनुमति नहीं मिलेगी. लेकिन जब बच्चों ने मुझे प्रोत्साहित किया, मुझमें शूटिंग की रूचि जगी.’
चंद्रो का ये निशाना देखकर क्लब के लड़के और कोच फारूक पठान उनके कौशल से आश्चर्यचकित रह गए और सुझाव दिया कि वह इसकी ट्रेनिंग लें और शूटर बन जाएं.
रेंज में शेफाली जब पिस्तौल में गोलियां नहीं डाल पाई तो चंद्रो ने उसकी मदद की, उसकी जगह पोजिशन लिया, लक्ष्य पर निशाना लगाया और पूरे दस लक्ष्य भेदे जिसे ‘बुल्सआई’ या ‘सांड की आंख’ कहते हैं. फिल्म बन जाने के कारण यह शब्द काफी लोकप्रिय हो गया है जो दिवाली पर रिलीज होगी और इसमें भूमि पेडनेकर तथा तापसी पन्नू ने भूमिकाएं निभाई हैं.
चंद्रो ने 1999 में अचानक शूटिंग शुरू की थी, असल में उनकी पोती शेफाली ने जोहरी राइफल क्लब में शूटिंग सीखना शुरू किया था. तब चंद्रो की उम्र 60 वर्ष के करीब थी. चूंकि क्लब लड़कों का था, इसलिए शेफाली ने अपनी दादी को मनाया और कहा कि वह वहां अकेले जाने में सहज नहीं हैं. इस बाबत चंद्रो ने बताया, ‘मैंने उसे कहा कि मैं तुम्हारे साथ हूं और डरने की कोई जरूरत नहीं है.’
यूपी के एक छोटे से गांव की दो बुजुर्ग महिलाओं की कहानी ने जज्बे की एक अलग ही कहानी बयान की है. उनके जज्बे के आगे नौजवान भी फीके नजर आते हैं.
यहां हम बात कर रहे हैं बागपत के जोहरी गांव की चंद्रो तोमर और प्रकाशी तोमर की कर रहे हैं. अगर आप नाम से नहीं पहचान पाए हैं तो इसे थोड़ा और आसान कर देते हैं आपने ‘शूटर दादी’ का नाम तो जरूर सुना होगा.
इन दोनों महिलाओं की कहानी फिल्मी भले ही लगती है लेकिन ये सभी के लिए प्रेरणादायक है. आपको बता दें कि इन दोनों ने 60 साल की उम्र में स्थानीय राइफल क्लब में शूटिंग सीखनी शुरू की थी. जी हां, इस उम्र में लोग रिटायरमेंट लेते हैं लेकिन इन दोनों ने अपने करियर की शुरुआत के लिए इसे चुना. दोनों खूब लोकप्रिय हुईं, काफी ट्रॉफियां जीतीं और अब उन पर बॉलीवुड की फिल्म ‘सांड की आंख’ रिलीज होने वाली है.
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