युगप्रधान आचार्य श्री महाश्रमण के 50वें दीक्षा कल्याणक महोत्सव वर्ष का भव्य शुभारंभ
महाश्रमणजी के 50वें दीक्षा कल्याण महोत्सव का आयोजन बेहद भव्य रूप से किया गया. हजारों लोग इसमें शामिल हुए. इस दिवस को तेरापंथ के युवाओं में युवा दिवस के रूप में भी मनाया गया.
महाश्रमणजी का 50वां दीक्षा कल्याण महोत्सव वर्ष का शुभारंभ सिल्कसिटी सूरत में भव्य रूप में समायोजित हुआ. भगवान महावीर युनिवर्सिटी में आयोजित इस महोत्सव में चतुर्विध धर्मसंघ ने अपने आराध्य की वर्धापना में अपनी-अपनी प्रस्तुतियां दीं. वहीं, इस दिवस को तेरापंथ के युवाओं में युवा दिवस के रूप में भी मनाया गया. इस संदर्भ में तेरापंथ के युवाओं ने विभिन्न माध्यमों से अपने आराध्य की अभ्यर्थना की.
इस महोत्सव के भव्य आयोजन में हजारों लोगों ने शिरकत की तो बाकी लोग पारस चैनल, युट्यूब के तेरापंथ चैनल आदि माध्यमों से जुड़े. अनुशास्ता, अहिंसा यात्रा प्रणेता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी का दीक्षा दिवस है. सूरत में विहार प्रवास कर रहे अनुशास्ता के दीक्षा के 50वें वर्ष के शुभारम्भ का अवसर सिल्कसिटी प्राप्त कर आह्लादित थी. इसके लिए सूरतवासी ही नहीं, देशभर से श्रद्धालु अपने आराध्य की मंगल सन्निधि में पहुंचे हुए थे.
4 मई को सुबह तेरापंथ धर्मसंघ के अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने सिटीलाइट तेरापंथ भवन से भगवान महावीर युनिवर्सिटी के लिए मंगल प्रस्थान किया. मार्ग में कई लोगों को अपने दर्शन और अशीर्वाद देते हुए आचार्यश्री एकबार फिर भगवान महावीर युनिवर्सिटी के परिसर में स्थित भगवान महावीर कान्सेप्ट स्कूल पहुंचे.
आयोजन में आचार्यश्री महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति के अध्यक्ष श्री संजय सुराणा, अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष पंकज डागा, भगवान महावीर, युनिवर्सिटी के चांसलर संजय जैन, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के अध्यक्ष श्री मनसुखलाल सेठिया, आचार्यश्री के संसारपक्षीय भाई सूरजकरण दुगड़ और श्रीचंद दुगड़ ने अपनी-अपनी आस्थासिक्त अभिव्यक्ति दी.
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी उपस्थित जनमेदिनी को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि अनंत काल की जीव यात्रा में वह समय महत्त्वपूर्ण होता है, उसे सम्यक्त्व की प्राप्ति होती है. आज वैशाख शुक्ला चतुर्दशी मेरा दीक्षा दिवस है. दीक्षा दिवस का होना तो सामान्य बात है. सभी चारित्रात्माओं का अपना-अपना दीक्षा दिवस होता है. मेरी संसारपक्षीय मां मुझे संतों के पास ले जाती थीं, जिससे मेरे अंदर भी वैराग्य भाव जागृत हुआ.