बजटः हो सकते हैं नोटबंदी से राहत के उपाय, बढ सकती है इनकम टैक्स छूट की लिमिट
नई दिल्ली: वित्त मंत्री अरण जेटली बुधवार को अपना चौथा और संभवत: सबसे चुनौतीपूर्ण बजट पेश करने जा रहे हैं. माना जा रहा है कि नोटबंदी से हुई परेशानी को दूर करने के लिए जेटली 2017-18 के बजट में कुछ टैक्स छूट और अन्य प्रोत्साहन दे सकते हैं जिससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिल सके.
जेटली ऐसे समय बजट पेश करने जा रहे हैं जबकि सरकार के 86 फीसदी करेंसी को चलन से बाहर करने की वजह से देश में लोगों को परेशानी उठानी पड़ी है और वहीं अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप संरक्षणवादी कदम उठा रहे हैं. ऐसे में लोगों की उम्मीदों का बोझ वित्त मंत्री समेत पूरी बजट टीम पर है और लोगों को इस बजट में ऐसे कदमों की बहुत ज्यादा प्रतीक्षा है जिसके जरिए नोटबंदी से हुए नुकसान को कम किया जा सके, जैसा कि दिग्गज रेटिंग एजेंसियों और आईएमएफ ने कहा है कि नोटबंदी की वजह से भारत की जीडी़पी में 1 से 2 फीसदी की कमी देखी जा सकती है.
सबसे पहली उम्मीद यह है कि जेटली इस बार आयकर छूट की सीमा को 2.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख रुपये करेंगे. वह फील गुड का वातावरण पैदा करने के लिए लोगों के हाथ में ज्यादा पैसा देना चाहेंगे. इससे मांग और आपूर्ति श्रृंखला और कर्ज में हुई बढ़ोतरी पर पड़े निगेटिव असर को कम किया जा सकेगा.
साथ ही वह होम लोन पर दिए गए ब्याज पर कटौती की सीमा को 2 लाख रुपये से बढ़ाकर 2.5 लाख रुपये कर सकते हैं. साथ ही इलाज के लिए भी ज्यादा छूट दी जा सकती है.
इंडस्ट्री जानकारों और कर अधिकारियों का कहना है कि टैक्स छूट के अलावा बजट में सार्वभौमिक मूल आमदनी की घोषणा हो सकती है. हालांकि, कॉरपोरेट टैक्स की दर को 30 फीसदी से नीचे लाना आसान नहीं होगा क्योंकि सरकार के चालू वित्त वर्ष के सकल घरेलू उत्पाद की 7.1 फीसदी की वृद्धि दर के अनुमान में नोटबंदी से पैदा हुए दिक्कतों को शामिल नहीं किया गया है.
चालू वित्त वर्ष के लिए राजस्व संग्रहण लक्ष्य के पार जा सकता है, लेकिन अरुण जेटली 2017-18 में टैक्स रिसीवेबल्स में कोई उल्लेखनीय बढ़ोतरी का अनुमान लगाएंगे, इसमें संदेह ही है. इसके अलावा कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों से भी सरकार की चिंता बढ़ रही है क्योंकि इसके चलते उनके पास सामाजिक और बुनियादी ढांचा योजनाओं में कुछ बड़ा करने की गुंजाइश काफी कम है.
कुल मिलाकर सरकार के पास इस बजट में पूरी करने के लिए उम्मीदों का ढेर है और करने के लिए ढेर सारा काम. आम आदमी जहां हर साल की तरह टैक्स में राहत चाहता है वहीं इंडस्ट्री की कॉर्पोरेट टैक्स, कंपनी टैक्स जैसे टैक्सेस को कम करने की बड़ी मांग है.