नई दिल्लीः देश में एक टैक्स की व्यवस्था को लागू हुए 100 दिन पूरे हो चुके हैं. व्यापारियों, कारोबारियों, ट्रेडर्स की तरफ से अब तक इसके लिए कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. सरकार जीएसटी को देश के लिए अच्छा बता रही है लेकिन व्यापारियों के मन में बहुत सारे सवाल हैं.


एबीपी न्यूज के बिजनेस एडिटर शिशिर सिन्हा ने जीएसटी लागू करने और इसको अमल करने में अहम भूमिका निभाने वाले राजस्व सचिव हसमुख अढिया से चर्चा की है. जीएसटी लागू होने के 100 दिनों में क्या हुआ है और कारोबारियों की अभी तक की दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार ने क्या-क्या किया है, कुल मिलाकर जीएसटी के प्रभावों पर राजस्व सचिव ने पूरे विस्तार से जवाब दिए हैं.


शिशिर सिन्हा: जीएसटी से पैदा हुए व्यापारियों की शिकायतों के लिए सरकार के पास क्या योजनाएं हैं और इन 100 दिनों में कारोबार, व्यापार में सबसे बड़ा बदलाव क्या दिखा है?


डॉ हसमुख अढियाः इन 100 दिनों में व्यापारियों ने जीएसटी को समझने के लिए कोशिशें की हैं. व्यापारियों को आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार भी बदलाव करने पर लगातार नजर रख रही है. जीएसटी को लेकर कंप्लाइंस में भी कमी आ रही है, जैसे जुलाई महीने का कंप्लाइंस 85 फीसदी है जो अगस्त महीने में घटकर 65 फीसदी हो गया है.


शिशिर सिन्हा: 100 दिनों में बड़े पैमाने पर जीएसटी के नियम कानून, टैक्स दरों, अन्य दरों में बदलाव किया गया है जिससे ऐसा लगा कि जीएसटी पर अभी सरकार के सामने ही स्पष्ट तस्वीर सामने नहीं है और भ्रम की स्थिति बन रही है, क्या ये बदलाव जरूरी थे?


डॉ हसमुख अढियाः कोई भी नया कानून बनता है तो शुरुआती तौर पर लोगों के सामने दिक्कतें आती ही हैं और उसमें बदलाव की जरूरत रहती ही है. जब कानून बना तो उस समय लोगों ने गंभीर रूप से इसके नियमों को देखा नहीं. जब इसे लागू करने के बाद लोगों के सामने इंप्लीमेंट संबंधी दिक्कतें आईं तो लोगों ने शिकायतें सामने लानी शुरू कर दी जिसके चलते सरकार को भी जीएसटी नियमों में बदलाव की जरूरत महसूस हुई.


अच्छी बात ये है कि जीएसटी पर सरकार लचीला रुख अपना रही है और ऐसा नहीं कह रही है कि हमने कानून बना दिया और अब इससे आने वाली दिक्कतों से सरकार को कोई सरोकार नहीं है. जब सरकार को लगा कि नियमों में बदलाव करना जरूरी है तो उसमें सरकार ने परिवर्तन किए हैं जिससे दिक्कतों को दूर किया जा सके.


शिशिर सिन्हाः जीएसटी काउंसिल के रेट तय करने के बाद बीच में कुछ आइटम्स पर टैक्स रेट को रिवाइज करने की जरूरत क्यों महसूस हुई? इसके पीछे क्या वजह रही?


डॉ हसमुख अढियाः कुछ रेट स्ट्रक्चर में इसलिए तुरंत बदलाव करना पड़ा कि प्री-जीएसटी में जो रेट लग रहे थे वो काफी ज्यादा थे और जीएसटी के बाद इन पर टैक्स काफी कम हो गया जैसे सिगरेट, कारों की टैक्स की दरों में बढ़ोतरी करनी पड़ी क्योंकि जीएसटी के बाद इन पर टैक्स कम हो गया था. वहीं जरूरत की चीजों पर जीएसटी से पहले इन पर कम टैक्स लगाए जा रहे थे. वहीं कुछ रोजमर्रा की चीजों के लिए सरकार को जीएसटी टैक्स की दरों को कम भी करना पड़ा.



शिशिर सिन्हाः कुछ लोग कह रहे हैं कि देश में इतनी अलग-अलग टैक्स दरें नहीं चाहिए तो क्या आगे चलकर सात की बजाए जीएसटी की चार या पांच दरें या टैक्स स्लैब देखे जा सकते हैं? वस्तुओं पर 0 से लेकर 28 फीसदी तक की दरें हैं और सेवाओं पर भी 0 से लेकर 28 फीसदी की टैक्स की दरें लग रही हैं.


डॉ हसमुख अढियाः दरों के टैक्स में स्लैब में बदलाव करने की बात तो असंभव ही है क्योंकि कुछ ऐसे लग्जरी आइटम्स हैं जिन पर 28 फीसदी का टैक्स तो लगेगा ही लगेगा. सेस का अलग टैक्स है, और गोल्ड की दरें अलग हैं और तीसरी एक्समप्टेड टैक्स रेट हैं जिसको लेकर आप 7 टैक्स की दरों कह रहे हैं लेकिन कुल मिलाकर ज्यादातर आइटम्स चार स्लैब में हैं. सरकार भी मानती है कि देश में एक दर टैक्स की होनी चाहिए लेकिन ऐसी में रेवेन्यू न्यूट्रल कायम रखने के लिए अगर उच्च दर देखी जाए तो 28 फीसदी है लेकिन क्या ये संभव है कि जो टैक्स रेट एक लग्जरी कार पर लग रहा है वो अनाज, गेहूं, चावल, फूड आइटम्स, खाने के तेलों पर नहीं लग सकता है. तो हमारे देश में एक टैक्स की दर को लागू कर पाना व्यव्हारिक रूप से संभव नहीं है.


शिशिर सिन्हाः हैंडमेड और मशीनमेड कार्पेट की अलग-अलग दरों को जीएसटी में एक दायरे में ले आया गया है जिससे हैंडमेड कार्पेट करोबार को नुकसान होने के आरोप लग रहे हैं. इस पर आपको क्या कहना है?


डॉ हसमुख अढियाः एक्साइज ड्यूटी में से पहले हैंडमेड कार्पेट को बाहर कर रखा था लेकिन अब प्रोडक्शन से लेकर बिक्री तक उसकी एक चेन होगी और उस पर टैक्स लगेगा. हमने हैंडमेड और मशीनमेड कारपेट पर 12 फीसदी टैक्स रखा है लेकिन अगर इन्हें अलग-अलग रखते तो टैक्स असेसमेंट अधिकारी के लिए ये अंतर करना मुश्किल होता कि कौनसा कार्पेट हैंडमेड है और कौनसा मशीनमेड? इसी वजह से दोनों को 12 फीसदी के एक ही टैक्स स्लैब में रखा गया है.


वहीं छोटे कार्पेट मर्चेंट को नुकसान न हो इसलिए 20 लाख से 1 करोड़ रुपये तक टर्नओवर वाले व्यापारियों को सिर्फ 2 फीसदी टैक्स देना होगा. इससे ज्यादा राहत की जरूरत कार्पेट कारोबारियों को नहीं है. सरकार फिटमेंट कमेटी को लेकर एक अप्रोच पेपर बना रही है जो सारे मुद्दों पर विचार करेगी और जीएसटी काउंसिल को अपने सुझाव देगी.