नई दिल्लीः जीवन बीमा पॉलिसी में निवेश की जाने वाली बचत का लगभग एक चौथाई पैसा बेकार जा रहा है. भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्रधिकरण (IRDAI) की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, अधिकतर जीवन बीमा कंपनियों में करीब 25 फीसदी बीमाधारक एक साल बाद प्रीमियम चुकाना बंद कर देते हैं. जिससे उनकी पॉलिसी लैप्स हो जाती है और उन्हें एक भी पैसा नहीं मिल पाता है. उनका जमा किया हुआ पैसा बीमा कंपनियों के पास ही रह जाता है. फिलहाल तकरीबन एक तिहाई पॉलिसी ऐसी ही हैं जिनका प्रीमियम एक साल बाद बीमाधारक नहीं चुकाते हैं.


खास बात ये है कि जीवन बीमा कंपनियों के पर्सिस्टेंस रेशियो (जो बीमाधारक एक साल के बाद भी प्रीमियम चुकाते हैं उसका अनुपात) में सुधार के बावजूद ऐसी स्थिति है. रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2017 में बेची गई कुल पॉलिसियों के मुकाबले एलआईसी के 13वें महीने की पर्सिस्टेंसी 64 फीसदी थी जो 2018 में 66 फीसदी हो गई. इसका मतलब है कि पिछले साल बेची गई पॉलिसियों में से 36 फीसदी खरीदारों ने अगले साल के लिए उसे रिन्यू नहीं कराया. एलआईसी के सूत्रों का कहना है कि प्रीमियम न भरी जाने वाली ऐसी पॉलिसियों में ज्यादातर बीमाधारकों ने कम कीमत का बीमा ले रखा  था. केवल 76 फीसदी बीमाधारक ही दूसरे साल के लिए बीमा रिन्यू कराते हैं.


साल 2016-17 में, एलआईसी ने तकरीबन 22,178 करोड़ रुपये की नियमित प्रीमियम पॉलिसी बेची, जो पूरे बीमा उद्योग का 44 फीसदी था. इनमें से करीब 24 फीसदी बीमाधारकों ने दूसरे साल के लिए पॉलिसी रिन्यू नहीं कराई जिससे तकरीबन 5000 करोड़ रुपये एलआईसी के पास ही रह गए. ये पैसे बीमाधारकों को वापस भी नहीं मिल सकते क्योंकि इन्हीं पैसों में से पहले साल के लिए कंपनी कमीशन सहित दूसरी लागतों के पैसे काटती है.


जब बीमाधारकों से पूछा गया कि वो अपने बीमा रिन्यू क्यों नहीं कराते हैं तो ज्यादातर ने कहा कि उन्हें गलत बीमा बेची गई है इसलिए वो प्रीमियम नहीं भरते. दरअसल, बीमा एजेंट अपना टारगेट पूरा करने की जल्दी में ग्राहकों को कम मूल्य की और खराब बीमा बेच देते हैं जिससे ग्राहक पॉलिसी लैप्स करना ही सही समझते हैं.