Adani-Deloitte Saga: अडानी-डिलॉयट प्रकरण से सतह पर आई बात, 2022-23 में 38 ऑडिटर्स ने दिया इस्तीफा
Adani Ports Deloitte: अडानी समूह एक बार फिर से चर्चा में है. इस बार चर्चा का कारण है कि समूह की एक कंपनी अडानी पोर्ट्स के ऑडिटर डिलॉयट ने समय पूरा होने से पहले रिजायन कर दिया है...
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अडानी समूह की जनवरी से शुरू हुई दिक्कतें समाप्त ही नहीं हो रही हैं. अब समूह के सामने एक नई समस्या डिलॉयट को लेकर आई है. दरअसल डिलॉयट अडानी समूह की कंपनी अडानी पोर्ट्स की ऑडिटर थी, लेकिन हाल ही में उसने इस्तीफा देने का ऐलान कर दिया. इस प्रकरण ने एक अलग ही चिंता को उभार दिया है. दरअसल किसी ऑडिटर के समय से पहले काम छोड़ कर जाने का यह पहला मामला नहीं है. वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान इस तरह के 38 मामले सामने आए थे.
बचा हुआ था सालों का कार्यकाल
बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालिया समय में ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां कंपनियों और उनके ऑडिटर्स के बीच संबंध सामान्य नहीं रहे हैं. इनके कारण कई ऑडिटर्स ने बीच में ही अपना काम छोड़ दिया है. अडानी पोर्ट्स और डिलॉयट के मामले में भी वैसा ही हुआ है. अभी अडानी पोर्ट्स के ऑडिटर के रूप में डिलॉयट का सालों का कार्यकाल बचा हुआ था, लेकिन उसने बीच में ही जाने का फैसला कर लिया.
पहले इतने ऑडिटर्स कर चुके रिजायन
इससे पहले वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 38 ऑडिटर्स ने बीच कार्यकाल में ही काम छोड़ा था, जबकि उससे एक साल पहले यानी वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान बीच में छोड़कर जाने वाले ऑडिटर्स की संख्या 46 थी. वित्त वर्ष 2020-21 में तो ऐसे ऑडिटर्स की संख्या और ज्यादा 65 थी. हाल-फिलहाल की बात करें तो एडुटेक स्टार्टअप बायजू के मामले में भी ऐसा ही वाकया देखने के मिल चुका है.
इस्तीफा देने से नहीं होंगे दोषमुक्त
ऑडिटर्स के द्वारा अपना काम बीच में ही छोड़कर जाने की प्रवृत्ति को एक्सपर्ट हाल के 2 डेवलपमेंट से जोड़कर देख रहे हैं. इसमें पहला डेवलपमेंट है नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी का एक फैसला. अथॉरिटी ने इस साल जून में साफ कहा था कि अगर कोई ऑडिटर बीच में ही ऑडिट का काम छोड़ देती है और बाद में संबंधित कंपनी को लेकर किसी ऐसे फ्रॉड का पता चलता है, जो इस्तीफा देकर जा चुके ऑडिटर के कार्यकाल के समय जाता है, तो ऐसे में इस्तीफा देकर जाना ऑडिटर को दोषमुक्त साबित नहीं करता है.
अहम है सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला
इस लिहाज से सुप्रीम कोर्ट का एक हालिया फैसला भी महत्वपूर्ण है. संयोग से सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला सीधे तौर पर डिलॉयट से जुड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने 4 मई को दिवालिया हो चुकी कंपनी आईएलएंडएफएस फाइनेंशियल सर्विसेज से जुड़े मामले में दिए एक फैसले में एनसीएलटी को दो ऑडिटर्स के खिलाफ उपयुक्त कदम उठाने की अनुमति दी थी. दोनों ऑडिटर्स में एक डिलॉयट है, जबकि दूसरी केपीएमजी की अफिलिएट बीएसआर एंड कंपनी.
कम हो सकती है प्रवृत्ति
बिजनेस स्टैंडर्ड की खबर में अज्ञात विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि इन 2 फैसलों के बाद ऑडिटर्स के द्वारा बीच में काम छोड़कर जाने की प्रवृत्ति में कमी आने की उम्मीद है, क्योंकि अब इस्तीफा देने के बाद भी उनकी जवाबदेही समाप्त नहीं होती है.
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