नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 8 नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद अर्थ जगत का एक धड़ा ऐसा भी है जो उनके इस फैसले का पुरजोर विरोध करता आ रहा है. कई बड़े अर्थशास्त्रियों और वित्त के जानकारों ने उनकी और आरबीआई की भूमिका पर सवाल भी उठाए. अब नोबेल पुरुस्कार से सम्मानित भारतीय अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने पीएम मोदी के बारे में ऐसा कुछ कहा है जो काफी गंभीर आरोप साबित हो सकता है.
भारतीय रिजर्व बैंक के 2 पूर्व गवर्नरों वाई वी रेड्डी और बिमल जालान के बाद अब नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अमर्त्य सेन ने आज केन्द्रीय बैंक की स्वायत्तता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि आजकल बैंक कोई फैसले नहीं करता, सभी फैसले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करते हैं. नोटबंदी की कटु आलोचना करते हुए सेन ने विचार व्यक्त किया कि यह कालाधन को सिस्टम से हटाने में असफल रहा है, हालांकि मोदी को ‘‘संदेह का लाभ’’ मिलता रहेगा.
इंडिया टुडे टीवी को दिए गए साक्षात्कार में उन्होंने कहा, ‘‘लोग सोचते हैं कि प्रधानमंत्री कालाधन खत्म करने के लिए कुछ कर रहे हैं. मोदी को संदेह का लाभ मिलता रहेगा. यह विचार कि धनी लोगों को दिक्कत हो रही है, गरीबों को भा रहा है.’’ 30 दिसंबर के बाद चलन से बाहर हुए नोटों को बदलवाने पर रिजर्व बैंक की रोक पर उन्होंने कहा, ‘‘मुझे नहीं लगता कि यह आरबीआई का फैसला है. यह प्रधानमंत्री का ही होगा. मुझे नहीं लगता कि इस वक्त आरबीआई कोई फैसला करती है.’’ मोदी ने 8 नवंबर की रात देश को संबोधित करते हुए कहा था कि जो लोग 30 दिसंबर तक अपना पुराना नोट जमा नहीं करा सकेंगे, वह ‘‘31 मार्च, 2017 तक भारतीय रिजर्व बैंक की विशेष शाखाओं में जाकर उन्हें एक हलफनामे के साथ जमा कर सकते हैं.’’
इसके अलावा अमर्त्य सेन ने कहा कि रघुराम राजन के कार्यकाल में आरबीआई काफी स्वतंत्र था. उसके लिए आई जी पटेल और मनमोहन सिंह जैसे अच्छे लोगों ने काम किया है. इससे पहले रेड्डी और जालान भी रिजर्व बैंक की स्वायत्तता बचाए रुखने पर जोर दे चुके हैं.