Anil Agarwal Story: 9 बार हुए फेल, फिर भी न मानी हार... अभी लंदन तक चलती है इस बिजनेसमैन की धाक!
Success Story: कहते हैं कि शुरुआत करने की कोई उम्र नहीं होती. इस कहावत को चरितार्थ करने वाले कई उदाहरण हमारे आस-पास मौजूद हैं. यह भी एक शानदार उदाहरण है...
आपने कहावतों में सुना होगा कि किसी चीज की शुरुआत करने की कोई उम्र नहीं होती है. आप कभी भी शुरुआत कर सकते हैं, क्योंकि इसके लिए कभी देर नहीं होती है. इसके साथ ही यह भी बताया जाता है कि सफलता की भी कोई समयसीमा नहीं होती है. हो सकता है कि आपको जल्दी सफलता न मिले, लेकिन इससे निराश नहीं होना चाहिए. कुछ लोगों को सफलता जल्दी मिल जाती है, ता कुछ लोगों को सफल होने में समय लग जाता है.
आज हम आपको एक ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं, जिसमें ये दोनों कहावतें चरितार्थ हो रही हैं. यह कहानी है माइनिंग एवं मेटल सेक्टर के दिग्गज उद्योगपति अनिल अग्रवाल की. अनिल अग्रवाल ने खुद ही अपनी यह कहानी शेयर की है, जिसमें वह बताते हैं कि सक्सेसफुल होने की कोई टाइमलाइन नहीं होती है.
इस डर से दूर हो जाएं युवा
वेदांता चेयरमैन पहले सवाल पूछते हैं कि क्या सक्सेसफुल होने की कोई टाइमलाइन होती है? फिर वे खुद बताते हैं- कतई नहीं. वे आगे लिखते हैं, मुझे लगता है कि हमारी सोसायटी की तरफ से आज के यूथ पर काफी प्रेशर रहता है कि वो जल्दी से जल्दी अपने करियर में शुरूआती झंडे गाड़ दें. मेरी कई ऐसे युवाओं से बात हुई जिन्हें बस इस बात का डर सताता है कि कहीं सफलता की ट्रेन छूट तो नहीं जाएगी! क्या वो तीस साल के होने से पहले खुद को सफल प्रूव कर सकेंगे!
कई बार मिली असफलता
अग्रवाल बताते हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कई बार असफलताओं का सामना किया है. वह बताते हैं, मैंने जीवन में कई असफलताएं देखी हैं - एक नहीं, दो नहीं, बल्कि 9 बार - मैं इसे समझ सकता हू. मैंने निराशा कितनी ही बार झेली, अपने उन विचारों को रिजेक्ट होते देखा जो मेरी नजर में बेस्ट थॉट थे. बंद होने की कगार पर खड़ी फैक्टरियों में रात - रात भर जागने से लेकर अगले दिन कुछ बचेगा भी या नहीं... इतना सोच लेने तक, मैंने अपने 20 और 30 वाली उम्र में बहुत संघर्ष किया.
फिर आया चालीस का दशक. अब मेरे पास एक्सपीरियंस भरपूर था और सिर पे बाल कम ही बचे थे. उस समय, जब सभी ने सोचा होगा कि में हार मान चुका हूं, चालीस की उम्र में मैंने पहली बार सफलता का स्वाद चखा. जिन विचारों को कभी डिसमिस किया गया था, उन्हीं विचारों की अब तारीफ होने लगी.
अभी बाकी है बहुत पिक्चर
बकौल अग्रवाल, सार यही है कि खुद की सोच पर भरोसा रखें, तब भी जब दूसरे उस सोच पर हंस रहे हों. हार को जीत की तरफ ले जाने वाली सीढ़ी मानें। खरगोश और कछुए की कहानी याद है ना! धीमे ही सही, लगातार चलते रहने पर आप रेस जीत सकते हैं. यदि आप तीस साल के होने से पहले ट्राय कर रहे हैं, तो बस याद रखें, पिक्चर अभी बहुत बाकी है दोस्तों...
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